
लोकसभा ने मजदूरी संहिता विधेयक 2017 को विचार के लिये श्रम संबंधी संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया है जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी । इस विधेयक को संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था ।
लोकसभा की विधायी शाखा के बुलेटिन में कहा गया है कि सदस्यों को सूचित किया जाता है कि मजदूरी संहिता विधेयक 2017 को विचार के लिये श्रम संबंधी संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया गया है। इसमें कहा गया है कि यह समिति विचार के बाद तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी । लोकसभा में पेश मजदूरी संहिता विधेयक 2017 में केंद्र को सार्वभौम न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार दिया गया है और इससे असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को लाभ होने की उम्मीद है।
इसके माध्यम से चार कानूनों – मजदूरी संदाय अधिनियम 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, बोनस संदाय अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को मिलाकर उसे सरल और सुव्यवस्थित बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
इस विधेयक का खास प्रावधान यह है कि किसी मजदूर को तनख्वाह कम दी गई तो उसके नियोक्ता पर 50 हजार रुपए जुर्माना लगेगा। पांच साल के दौरान ऐसा फिर किया तो 1 लाख रूपये जुर्माना या 3 माह की कैद या दोनों सजाएं एक साथ देने का प्रावधान भी है।
श्रम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नए वेतन संहिता विधेयक से देश में पहली बार सार्वभौम न्यूनतम मजदूरी को लागू किया जा सकेगा | दिहाड़ी श्रमिकों को शिफ्ट समाप्त होने पर, साप्ताहिक श्रमिकों को सप्ताह के आखिरी कार्य दिवस तथा पाक्षिक श्रमिकों को कार्यदिवस समाप्ति के बाद दूसरे दिन भुगतान करना होगा। मासिक आधार वालों को अगले माह की सात तारीख तक वेतन देना होगा। श्रमिकों को हटाने या बर्खास्त करने या उसके इस्तीफा देने पर पगार दो कार्यदिवस के भीतर देनी होगी।
सरकार का कहना है कि इससे असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ मजदूर सार्वभौम न्यूनतम मजदूरी का लाभ उठा पायेंगे । यह विधेयक व्यापक परिदृश्य में लाया गया है। मजदूरों के शोषण की कोई आशंका नहीं रहेगी । देश में 44 श्रम कानून हैं और इन्हें चार संहिता के माध्यम से समाहित किया गया है।