आज, ग्लासगो क्लाइमेट समिट से बमुश्किल 50 दिन पहले संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली (यूएनजीए) का 76वां सत्र शुरू हुआ है। इस बैठक से तमाम उम्मीदें हैं खास तौर से इसलिए क्योंकि इसमें होने वाली चर्चाएँ और निर्णय वैश्विक जलवायु नीतियों की दशा और दिशा बदल सकते हैं।

ग्लासगो क्लाइमेट समिट एक बहुपक्षीय बैठक है जो आईपीसीसी की ताज़ा रिपोर्ट से निकले रेड अलर्ट के प्रति धनी देशों की प्रतिक्रिया को एक मंच उपलब्ध कराएगी और यह जलवायु वित्त संबंधी प्रतिज्ञा में उनकी वाजिब हिस्सेदारी तथा वैक्सीन वितरण में समानता के मसले का समाधान निकालने का भी मौका साबित होगी।

यूएनजीए की बैठक से जुड़ी सम्‍भावनाओं पर विचार करने के लिये सोमवार को आयोजित एक वेबिनार में यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन की सीईओ लॉरेंस टूबिआना, टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्लेचर स्कूल की डीन रेचल काईट, फ्यूचर्स हॉफमैन डिस्टिंग्विश्ड फेलो फॉर सस्टेनेबिलिटी चाथम हाउस में रिसर्च डायरेक्टर बरनीस ली और जेनीजेनी सस्टेनेबल फाइनेंस की प्रबंध निदेशक मलांगो मघोघो ने महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की और इस बात पर अपने नजरिए पेश किए कि हम मुख्य आर्थिक पक्षों से क्या उम्मीद कर सकते हैं और यूएन जनरल असेंबली की यह बैठक सीओपी26 से पहले जलवायु कूटनीति को किस तरह प्रभावित कर सकती है।

लॉरेंस टूबिआना ने कहा कि यूएनजीए की बैठक में अफगानिस्तान के मुद्दे पर बातचीत होगी लेकिन उम्‍मीद है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से ध्यान नहीं हटने देने की पूरी कोशिश करेंगे। जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट है। हमें 2030 और 2050 के लक्ष्यों के लिए एक मजबूत वित्तीय पैकेज जारी करना चाहिए। वैश्विक तापमान में बढ़ोत्‍तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना अब भी संभव है और यूएनजीए एक विश्वसनीय मंच है। यह धरती के भले के लिए विचार विमर्श करने से जुड़ी नहीं बल्कि पूरी दुनिया के व्यापक हित से जुड़ा मामला है। मुझे उम्मीद है कि यूएनजीओ की बैठक में इस भावना को ध्यान में रखा जाएगा।

बरनीस ली ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा जब पहले की अपेक्षा ज्यादा संख्या में देश यूएनजीए के सत्र में हिस्सा लेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के विभिन्न हिस्सों के डायनामिक्‍स कैसे काम करते हैं। चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका समेत सभी मध्यम आय वाले देश इस सत्र में क्या भूमिका निभाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।

जलवायु सम्‍बन्‍धी लक्ष्‍यों की प्राप्ति की दिशा में चीन के रवैये का जिक्र करते हुए बरनीस ने कहा कि चीन एक बड़ा देश है और ऐसा नहीं लगता कि वह जलवायु संबंधी अपने लक्ष्यों मैं किसी तरह का बदलाव करेगा मगर इसके बावजूद कुछ सकारात्मक पहलू हैं। पिछले हफ्ते चीन के नीति एवं अनुसंधान समूह ‘चाइना काउंसिल फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट’ की बैठक हुई जिसमें यह सिफारिश की गई कि कार्बन उत्सर्जन संबंधी नियमों की अवहेलना करने वालों को दंड दिया जाए। इसके अलावा चीन खुद दूसरे देशों में कोयले से जुड़ी अपनी परियोजनाओं पर सार्वजनिक वित्त पोषण को रोके। चीन ओवरसीज कोल फंडिंग में 13% का योगदान करता है।

उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है दुनिया में सभी जगह आंतरिक राजनीति जटिल होती जा रही है। मगर इसे दोष नहीं दिया जाना चाहिए। ब्लेम गेम को ताक पर रखकर एक साथ तेजी से आगे बढ़ना ही एकमात्र रास्ता नजर आ रहा है, ताकि हम अपनी हिफाजत के साथ-साथ दूसरे की सुरक्षा भी कर सकें। वैश्विक तापमान में बढ़ोत्‍तरी को 1.50 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखने का लक्ष्य अब भी हासिल किया जा सकता है।

जेनीजेनी सस्टेनेबल फाइनेंस की प्रबंध निदेशक मलांगो मघोघो ने कहा कि जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से विकराल रूप लेता जा रहा है। आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट से यह साफ जाहिर हो गया है कि दुनिया का कोई भी हिस्सा इसके असर से अछूता नहीं है। पूरी वैश्विक बिरादरी को और अधिक संगठित और व्यवस्थित तरीके से इस समस्या से निपटना होगा। यूएनजीए इस दिशा में सार्थक विचार-विमर्श के लिए एक बेहतरीन मंच साबित हो सकता है।

उन्‍होंने कहा कि जहां तक अफ्रीका का सवाल है तो आईपीसीसी की रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की बहुत भारी मार अफ्रीका पर पड़ी है। जलवायु परिवर्तन के आर्थिक नुकसान के मामले में अफ्रीका सबसे बड़ा भुक्तभोगी है। दक्षिण अफ्रीका की पर्यावरण से जुड़ी एक एजेंसी ने बताया है कि अफ्रीका में जलवायु अनुकूलन की योजनाओं और उन पर अमल के बीच खासा अंतर है, जिसका समाधान किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर अफ्रीका के गरीब देश वर्ष 2030 तक 30% रेसिलियंट हो जाने चाहिए। वहीं, 2050 तक यह आंकड़ा 90% तक ले जाये जाने का लक्ष्‍य है लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा होना बहुत मुश्किल लग रहा है।

टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्लेचर स्कूल की डीन रेचल काईट ने कहा कि ज्यादातर सदस्य देश यूएनजीए की इस बैठक में शामिल होंगे। उनके मन में कई महत्वपूर्ण मुद्दे होंगे। इनमें जलवायु संरक्षण के लिए वैश्विक एकजुटता के साथ साथ वैश्विक टीकाकरण अभियान भी शामिल होगा। जनरल असेंबली के नए अध्यक्ष बनने जा रहे मालदीव के पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि इस बार की जनरल असेंबली में टीकाकरण अभियान के विभिन्न पहलुओं को उनकी संपूर्णता में शामिल किया जाएगा।

इस वेबिनार में जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के विकसित और विकासशील देशों द्वारा पूर्व में व्‍यक्‍त किये गये संकल्‍पों, उन पर हुई प्रगति, व्‍याप्‍त बाधाओं और उनके समाधान पर भी व्‍यापक चर्चा की गयी। साथ ही इस बात पर भी राय रखी गयी कि यूएन‍जीए के सदस्‍य देश अपने संकल्‍पों के प्रति कितने संजीदा हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *