मोदी और ट्रंप बम-बम

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह अमेरिका-यात्रा उनकी पिछली सभी अमेरिका-यात्राओं से अधिक महत्वपूर्ण और एतिहासिक मानी जाएगी। इसलिए कि संयुक्तराष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन में भाग लेने के लिए सौ-सवा-सौ राष्ट्राध्यक्ष हर साल न्यूयार्क पहुंचते हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर अमेरिकी राष्ट्रपति से हाथ तक नहीं मिला पाते हैं जबकि मोदी इस यात्रा के दौरान उनसे कई बार बात करेंगे और मिलेंगे। ह्यूस्टन में प्रवासी भारतीयों की जो विशाल जन-सभा हुई है, वह एतिहासिक है, क्योंकि पहली बात तो यह कि अमेरिका का कोई भी नेता इतनी बड़ी सभा अपने दम पर नहीं कर सकता। दूसरी बात, यह कि यह शायद पहला मौका है, जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति किसी अन्य देश के प्रधानमंत्री के साथ इस तरह की जनसभा में साझेदारी कर रहा हो। तीसरी बात यह कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में ‘इस्लामी आतंकवाद’ और सीमा-सुरक्षा के सवाल उठाकर सभा में उपस्थित 50-60 हजार लोगों का ही नहीं, भारत और दुनिया के करोड़ों टीवी दर्शकों का दिल जीत लिया। अमेरिका के जो प्रवासी भारतीय कट्टर डमोक्रेट हैं और ट्रंप की मजाक उड़ाते रहते हैं, वे भी मंत्र-मुग्ध थे। दोनों नेताओं के भाषण सुनकर ऐसा लगा कि वे अपनी-अपनी चुनावी-सभा में बोल रहे हैं। मोदी ने ट्रंप के दुबारा राष्ट्रपति बनने का भी समर्थन कर दिया। मोदी ने लगे हाथ समस्त गैर-हिंदीभाषियों को भी गदगद कर दिया। उन्होंने कई भारतीय भाषाओं में बोलकर बताया कि ‘भारत में सब कुशल-क्षेम है।’ वह है या नहीं है, यह अलग बात है लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हिंदीवाले बयान को लेकर गलतफहमी फैलानेवाले कई भारतीय नेताओं के गाल पर मोदी ने प्यारी-सी चपत भी लगा दी। पाकिस्तान का नाम लिये बिना मोदी और ट्रंप ने यह स्पष्ट कर दिया कि इमरान की इस अमेरिका-यात्रा का हश्र क्या होनेवाला है। क्या कोई पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस तरह की संयुक्त जन-सभा अमेरिका में आयोजित करने की कल्पना कर सकता है ? हां, खबरें कहती हैं कि ह्यूस्टन की सभा के बाहर एक पाकिस्तानी मंत्री के सानिध्य में पाकिस्तान के कुछ प्रवासियों और सिखिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी भी की लेकिन इस एतिहासिक जनसभा के अलावा मोदी ने वहां कश्मीरी पंडितों, सिखों और दाउदी बोहरा प्रतिनिधि मंडलों से भी भेंट की। इसके अलावा मोदी के ह्यूस्टन-प्रवास की एक महत्वपूर्ण घटना यह भी है कि भारत की गैस और तेल की आपूर्ति के लिए अमेरिका की 17 बड़ी कंपनियों के कर्णधारों से भी बात की। एक और भी काम हुआ है, जिससे हर भारतीय का सीना गर्व से फूल सकता है। भारतीय कंपनी पेट्रोनेट अब ह्यूस्टन में 2.5 बिलियन डाॅलर का निवेश करेगी ताकि उसे अगले 40 साल तक 50 लाख मीट्रिक टन गैस हर साल अमेरिका से मिलती रहे। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!