डॉ. वेदप्रताप वैदिक

मैं आज इंदौर में हूं। यहां के अखबारों में एक खबर बड़े जोरों से छापी है कि भिंड-मुरैना में सिंथेटिक दूध के कई कारखानों पर छापे मारे गए हैं। राजस्थान और उप्र के पड़ौसी प्रांतों के सीमांतों पर भी नकली दूध की ये फेक्टरियां मजे से चल रही हैं। इस मिलावटी दूध के साथ-साथ घी, मक्खन, पनीर और मावे में भी मिलावट की जाती है। दिल्ली, अलवर तथा देश के कई अन्य शहरों से भी इस तरह की खबरें आती रही हैं। यह मिलावट सिर्फ दूध में ही नहीं होती। फलों को चमकदार बनाने के लिए उन पर रंग-रोगन भी चढ़ाया जाता है और सब्जियों को वजनदार बनाने के लिए उन्हें तरह-तरह की दवाइयों के इंजेक्शन भी दिए जाते हैं। यह मिलावट जानलेवा होती है। दूध में पानी मिलाने की बात हम बचपन से सुनते आए हैं लेकिन आजकल मिलावट में ज़हरीले रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए देश में लाखों लोग अकारण ही बीमार पड़ जाते हैं और कई बार मर भी जाते हैं। लेकिन सरकार ने इन मिलावटियों के लिए जो सजा रखी है, उसे जानकर हंसी आती है और दुख होता है। अभी कितना ही खतरनाक मिलावटी को पकड़ा जाए, उसे ज्यादा से ज्यादा तीन महिने की सजा और उस पर 1 लाख रु. जुर्माना होता है। वह मिलावट करके लाखों रु. रोज कमाता है और तीन माह तक वह सरकारी खर्चे पर जेल में मौज करेगा। वाह री सजा और वाह री सरकार ! कौन डरेगा, इस तरह के अपराध करने से ? मोदी सरकार को चाहिए था कि मिलावट-विरोधी विधेयक वह संसद की पहली बैठक में ही लाती और कैसा विधयेक लाती ? ऐसा कि उसकी खबर पढ़ते ही मिलावटियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जातीं। मिलावटियों को कम से कम 10 साल की सजा हो और उनसे 10 लाख रु. जुर्माना वसूलना चाहिए। खतरनाक मिलावटियों को उम्र-कैद और फांसी की सजा तो दी ही जानी चाहिए, सारे देश में उसका समुचित प्रचार भी होना चाहिए। उनका सारा कारखाना और सारी चल-अचल संपत्ति जब्त की जानी चाहिए। मिलावट करनेवाले कर्मचारियों के लिए भी समुचित सजा का प्रावधान होना चाहिए। मिलावट को रोकने का जिम्मा स्वास्थ्य मंत्रालय का है। स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन थोड़ा साहस दिखाएं तो हर सांसद, वह चाहे किसी भी पाटी का हो,  उनके इस कठोर विधेयक का स्वागत करेगा। यह इस सरकार का सर्वजनहिताय एतिहासिक कार्य होगा।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *