
फतेहपुरी शाही मस्जिद के इमाम मौलाना मुफ्ती मुकर्रम अहमद का कहना है कि दिल, मधुमेह और अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित रोजेदार तबीयत बिगड़ने पर अपना रोजा तोड़ सकते हैं और इस्लाम में उन्हें ऐसा करने की रियायत दी गई है।
मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने भाषा से कहा कि रोज़ा रखने की वजह से अगर बीमारी बढ़ने का डर हो तो इस्लाम में इससे रियायत दी गई है और ऐसे रोजादार रोजा तोड़ भी सकते हैं।
केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद् में शोधकर्ता डॉ सैयद अहमद खान ने भी बताया कि जो लोग दिल, उच्च रक्तचाप और मधुमेह की बीमारियों से पीड़ित हैं वे डॉक्टरों से सलाह मशविरा कर के रोजा रख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि मधुमेह के मरीज दो तरह के होते हैं एक इंसुलिन पर निर्भर और दूसरे दवाइयों पर। अगर मधुमेह के मरीजों की शुगर नियंत्रित है और वे सुबह शाम इंसुलिन या दवाइयां लेते हैं तो वह रोजा रख लें और इंसुलीन या दवाइयां सेहरी में :सूरज निकलने से पहले खाया जाने वाला खाना: और इफ्तार :रोजा तोड़ने का समय: में लें।
डॉ खान ने भाषा को बताया कि मधुमेह के मरीजों को दोपहर के बाद अपने रक्त में ग्लूकोज की जांच करनी चाहिए और अगर इसका स्तर 100-200 के बीच है तो ठीक है लेकिन 75 या इससे नीचे जाता है तो उन्हें पेरशानी हो सकती है और ऐसी स्थिति में उन्हें अपना रोजा तोड़ देना चाहिए और तुरंत कुछ मीठा खा लेना चाहिए।
उन्होंने कहा रक्त में ग्लूकोज कम होने से चक्कर आ सकते हैं और चलने में दिक्कत होती है ।
रोज़ा तोड़ने के बाबत इस्लामिक विद्वान और फतेहपुरी शाही मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि रोज़ा रखने की वजह से अगर बीमारी बढ़ने का डर है तो इस्लाम में इससे रियायत दी गई है और रोजा तोड़ा भी जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इस्लाम में ऐसी गर्मवर्ती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी रोजा रखने से रियायत दी गई है जिन्हें डॉक्टरों से रोजा नहीं रखने की सलाह दी हो।
( Source – पीटीआई-भाषा )