नई दिल्ली, (प्रेस रिलीज) चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क ने शुक्रवार 16 जुलाई को ” संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2020″ सम्मान समारोह का ऑनलाइन आयोजन किया। जिसमें ऐसे 5 विशेष लेखकों के काम को सम्मानित किया गया जिन्होंने पिछले 6 महीनों में, देश के ग्रामीण और दूरदराज के कुछ क्षेत्रों से ऐसे मुद्दों पर रिपोर्टिंग की है जिन्हें आमतौर पर राष्ट्रीय स्तर की “मुख्यधारा” मीडिया में जगह नहीं मिल पाती है। इन 5 पुरस्कार विजेताओं को पिछले साल 11 राज्यों से प्राप्त 37 आवेदनों में से चुना गया था।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘अहिंसा कन्वर्सेशन’ की संस्थापक रजनी बख्शी ने पुरस्कार विजेताओं को संबोधित किया और उन्हें बधाई दी। अपने संबोधन में रजनी बख्शी ने संजॉय घोष के साथ काम करने के अपने अनुभवों को साझा किया, जिन्होंने 1994 में इस विश्वास के साथ चरखा की स्थापना की थी, कि यदि विकास प्रक्रियाओं से समाज के सबसे गरीब वर्गों को लाभ पहुंचाना है तो ग्रामीण समुदायों को नीति स्तर पर सुना जाना चाहिए। याद रहे कि 1997 में असम में उल्फा ने संजॉय का अपहरण करके उनकी हत्या कर दी थी। संजॉय घोष को याद करते हुए रजनी बख्शी ने कहा कि, “उनका जीवन प्रेरणादायी है। उन्होंने हमें सिखाया कि कैसे प्रभावी पत्रकारिता के लिए निडरता, रचनात्मकता और असंभव को संभव बनाने का जज़्बा अनिवार्य है। चरखा ग्रामीण भारत की विकास चुनौतियों को उजागर करने के लिए इन तीन मूल्यों के साथ काम कर रहा है। यह पुरस्कार समकालीन दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश कर रहे लोगों के बीच पुल बनाने का एक महत्वपूर्ण मंच है।”

इस अवसर पर चरखा के अध्यक्ष तिलक मुखर्जी ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन पर केंद्रित मुद्दों पर इन विजेताओं के योगदान को स्वीकार किया। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में पुरस्कार विजेताओं द्वारा किए गए कामों को प्रदर्शित करने वाला एक लघु वीडियो भी दिखाया गया।ऑनलाइन समारोह को अतिथि वक्ता और जमीनी स्तर की पत्रकार, नीतू सिंह ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने “संकट के समय में ग्रामीण रिपोर्टिंग: कैसे कोविड-19 ने भारत में ग्रामीण रिपोर्टिंग संकट को गहरा किया है” विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से नियमित रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण है। आपदाओं, महामारी और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के मामले में, इसे बढ़ाया जाना चाहिए, और मुख्यधारा की मीडिया द्वारा अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले समूहों की चिंताओं को वृहद स्तर पर दर्ज किया जाना चाहिए, ”उन्होंने ग्रामीण पत्रकारों के सामने खासकर कोविड -19 के समय में आने वाली विशिष्ट चुनौतियों पर जोर देते हुए यह बात कही। उनका मानना है कि यह पुरस्कार ग्रामीण लेखकों को वित्तीय सहायता प्रदान करके ग्रामीण पत्रकारिता को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अवसर पर थिएटर कलाकार और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व छात्रों प्रियंका पाठक और मुक्ति दास ने बाबा नागार्जुन, कात्यायनी और गुलज़ार द्वारा लिखी गई ग्रामीण भारत की चुनौतियों को दर्शाती कविताओं का पाठ किया।

सभी विजेताओं को पुरस्कार में प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। पुरस्कार विजेताओं को अपने चुने हुए विषय पर पांच लेख लिखना आवश्यक था। इनका चयन वरिष्ठ मीडियाकर्मी की एक प्रतिष्ठित जूरी द्वारा किया गया। इन 5 पुरस्कार विजेताओं में बिस्मा भट (श्रीनगर), राजेश निर्मल (यूपी), रमा शर्मा (राजस्थान), रुख़सार कौसर (पुंछ) और सूर्यकांत देवांगन (छत्तीसगढ़), द्वारा लिखे गए कुल 25 लेख थे। जिन्हें चरखा की त्रिभाषी फीचर सेवा के माध्यम से हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में प्रकाशित किये गए हैं। यह कार्यक्रम चरखा के सीईओ स्व. मारियो नोरोन्हा को समर्पित था, जिनका अप्रैल में कोविड -19 के कारण निधन हो गया।

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