
उत्तम मुखर्जी
आज मैं भी एक मुग़ल शहज़ादे को लेकर आपसे रु ब रु होना चाहता हूं । इंटरनेशनल मीडिया भी इस पर इधर दिलचस्पी ले रहा है । आइए ! अगड़म-बगड़म कुछ गप्प करते हैं…
इधर मोदी सरकार भी मुग़ल शहज़ादे दारा शिकोह की कब्र की तलाश में जुट गई है । सरकार के शहज़ादे के प्रति झुकाव के पीछे राजनीति क्या है इस पर बिना लिखे यह बताना चाहता हूं कि दिल्ली के आज के हुक्मरान मुगल सल्तनत को लेकर बहुत ही गंभीरता से काम कर रहे हैं । शाहजहां के बेटे और औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह को लेकर केंद्र ने पुरातत्वविदों की एक कमिटी बनाई है। टीम का नेतृत्व पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ सैयद जमाल हसन कर रहे
हैं ।
दरअसल हिंदुस्तान के तख्त और ताज़ की लड़ाई के खून से सने अध्याय का एक उदार चरित्र है शहजादा दारा । शाहजहां के बाद दारा ही हिंदुस्तान की गद्दी संभालने वाले थे लेकिन दूसरे भाई औरंगज़ेब ने पिता को आगरा में कैद कर लिया और दारा को युद्धबन्दी बनाकर खिज़ाबाद के जेल की एक अंधेरी कोठरी में डाल दिया। मैले-कुचले कपड़े में दारा बेहद असहाय लग रहे थे । औरंगज़ेब के लोगों ने खंजर से उसे लहूलुहान कर दिया और उसी हालत में हुमायूं के मकबरे के परिसर में दारा को भी दफना दिया । उस परिसर में डेढ़ सौ कब्रें हैं । इनमें से दारा की कब्र को अब ढूंढा जा रहा है ।
इतिहास में दारा की तस्वीर एक उदार धर्म निरपेक्ष चरित्र के रूप में बनाई गई है। वे सभी समुदाय के विद्वानों के साथ बैठकर दर्शन और विचारों को साझा करने में विश्वास रखते थे । उनके प्रयास से ही बनारस के पंडितों की मौजूदगी में हिन्दू धर्म के उपनिषदों का फारसी में अनुवाद हुआ था। बाद में फारसी से लेटिन एवं अन्य भाषाओं में हिंदू ग्रन्थों का अनुवाद हुआ और इन ग्रंथों की पब्लिसिटी अन्य मुल्क़ों में भी हुई। साहित्य , संस्कृति और कला की हिफाज़त के लिए भी दारा शिकोह समर्पित भावना से काम करते रहे।
अंदर की बात चाहे जो भी हो मुग़ल सल्तनत देश और देश के बाहर आज भी शोध का विषय है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है । वर्तमान सरकार की दिलचस्पी ने इसे और मज़बूत बनाया है । मुगल सिर्फ हमलावर नहीं रहे बल्कि उनके खानदान में भी अच्छे और सच्चे पैदा हुए। तीन शताब्दी बाद भी मुगल शहज़ादे का मक़बरा देश को संदेश देने का दम रखता है यह कोई मामूली बात नहीं है।