हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं पर प्रहार करके उनकी भावनाओं को आहत करने वाली मुगलकालीन अत्याचारी सोच के वाहक कट्टरपंथी मुसलमान स्वतंत्र भारत में भी उसी जिहादी जहरीले जनून का बार-बार प्रदर्शन करके अपना घृणित,अड़ियल व हिंसक व्यवहार बनाये हुए हैं।

दशकों से फ़िल्म जगत में ऐसे अनेक चित्रपट जानबूझ कर निर्मित करे व करवाये जाते आ रहे हैं जिनमें प्रायः हिंदुओं के विभिन्न वर्गों का उपहास उड़ाना और उनकी मान्यताओं को अपमानित करना मुख्य लक्ष्य होता है। क्या इन धर्मद्रोहियों को ऐसा करने के लिये उकसाने वाले इसे जन्नत पाने का मार्ग मानते है?

निःसंदेह इस्लामिक शिक्षाओं में जब तक गैर मुस्लिम धर्मानुयायियों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने की शिक्षा दी जाती रहेगी तब तक अविश्वासियों पर प्रहार करने के असंख्य मार्ग जिहादी पुस्तकों में लिखे जाते रहेंगे।इसी कुटिल सोच वाले कट्टरपंथियों ने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अनुचित लाभ उठा कर पुनः हिंदुओं के देवी-देवताओं पर अपमानजनक  “तांडव” वेव सीरीज का निर्माण करने का दुःसाहस किया। इसकी जितनी निंदा की जाय उतनी कम है।इस अपराध के लिए क्षमा मांगने और आपत्तिजनक दृश्यों को हटाने से कोई समाधान नहीं हो सकता।सत्य सनातन हिन्दू संस्कृति का निरंतर मान-मर्दन करने वाले कभी भी क्षमा योग्य नहीं हो सकते।

मुगलकालीन इतिहास इसका प्रमाण है कि अनेकों बार हिन्दू वीरों ने इन आतताईयों पर दया की परंतु अवसर मिलते ही उन दरिंदों ने दयावान हिन्दू शरणदाताओं को बल व छल से नष्ट करने में कोई विलम्ब नहीं किया।सैकड़ों वर्षों से हमारे अस्तित्व को चुनौती देने वाली रेगिस्तानी संस्कृति और शिक्षाओं का जब तक देश में पूर्ण बहिष्कार नहीं होगा तब तक ऐसे तत्वों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।

अतः इस कुत्सित जिहादी प्रवृत्ति की जड़ों पर प्रहार करके ही ऐसे सभी आत्याचारों से छुटकारा मिल सकता है।

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