‘दान’ में निदान : डायरी-21 Part-2

सनातन किष्किंधा मिशन की अर्थनीति को परिष्कृत करने में आदिलाबाद के गुरुजी रवीन्द्र शर्मा का बड़ा योगदान है। उनसे हमने समझा कि पारंपरिक भारतीय समाज में धन का हस्तांतरण कई रूपों में होता था जैसे- ‘दान’, ‘दक्षिणा’, ‘भिक्षा’, ‘तेगम (हिस्सा)’, ‘मान’, ‘मर्यादा’, ‘नोम’, ‘न्यौछावर’, ‘शगुन’, आदि। इन सब शब्दों के बहुत गहरे अर्थ हैं। उनसे जुड़ी हुई विशिष्ट प्रक्रियाएं और विधान हैं।

गुरूजी के अनुसार ‘दान’ की विभिन्न पद्धतियों का उद्देश्य, लोगों के अंदर ‘छोड़ने वाला’ मानस तैयार करना था। व्यक्ति एवं समाज को समृद्ध बनाने में ‘दान’ एवं ‘देते रहने’ के इन तरीकों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। ‘दान’ देने की यह प्रक्रिया केवल धनी लोगों तक सीमित नहीं थी। इसमें किसान, मजदूर सहित सभी लोगों को शामिल होने का मौका मिलता था।

हमारे मनीषियों ने ‘दान’ को लेकर एक विस्तृत प्रक्रिया विकसित की थी जिसे भारत का पारंपरिक समाज आज भी मानता है।

दान देने वाले के मन में स्वार्थ या अहंकार उत्पन्न न हो जाए, इसके लिए उसे व्रत आदि करके स्वयं को पवित्र बनाना होता है और इस प्रकार दान देने की पात्रता हासिल करनी पड़ती है। वहीं दान लेने वाले के मन में हीनभावना न आए, इसलिए उसे दान-दाता को आशीर्वाद देने के लिए कहा जाता है। दान लेने के बाद धन्यवाद कहने की परंपरा भारत में नहीं रही है। जहां दान दाता के लिए कुछ नियम हैं, वहीं दान प्राप्तकर्ता के लिए भी स्पष्ट निर्देश हैं। उसे सादगीपूर्ण विशिष्ट जीवनशैली अपनानी पड़ती है और जन-हित में जीवन जीना होता है।

सनातन किष्किंधा मिशन ने दान की इसी प्राचीन परंपरा को आधार बनाकर जन-जन से सहयोग लेने का निर्णय लिया है। आप चाहे धनाढ्य हों, मध्यवर्गीय हों या सर्वहारा वर्ग से हों, आप सभी सनातन किष्किंधा मिशन के इस यज्ञ में पूरी गरिमा के साथ यजमान बन सकते हैं। सच कहें तो हम उस विचार को चुनौती देना चाहते हैं जिसमें मान लिया गया है कि सामाजिक कार्य के लिए धन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी केवल बड़ी-बड़ी कंपनियों, पूंजीपतियों और सरकार की ही है।

विशेष प्रक्रियाः

आज युगाब्द 5123 की विजयदशमी है। इस दिन से हम मिशन तिरहुतीपुर के लिए दान स्वीकार करने की अपनी विशिष्ट प्रक्रिया का शुभारंभ कर रहे हैं। हमारे जो शुभचिंतक हमें आर्थिक सहयोग देना चाहते हैं, उनसे अपेक्षा है कि वे कृपया-

(1). दशमी के दिन “सनातन किष्किंधा मिशन” को दान देने का संकल्प लें।

(2). एकादशी के दिन यथाशक्ति एकादशी व्रत का पालन करें। किसी कारण वश यदि व्रत करने में समस्या हो तो श्री हरि विष्णु या अपने ईष्ट को प्रणाम कर लें।

(3). द्वादशी के दिन व्रत का यथोचित पारण करने के बाद संकल्पित राशि का दान करें।

एक बार मैं फिर कहूंगा कि दान की मात्रा को लेकर हमारा कोई आग्रह नहीं है। हमारा आग्रह केवल प्रक्रिया को लेकर है। उसका पालन करते हुए हमें जो भी मिलेगा उसे हम बड़े आदर के साथ स्वीकार करेंगे।

इस बारे में अन्य आवश्यक विवरण जानने के लिए मेरे मोबाइल नंबर– 9582729571 पर व्हाट्सऐप के माध्यम से कृपया Yes लिख कर भेजें। साथ में यदि आप का कोई सुझाव या प्रश्न है तो उसे भी भेजें। अगर आप अपनी प्रतिक्रिया ईमेल से भेजना चाहते हैं तो कृपया मेरे व्यक्तिगत ईमेल- vimal.mymail@gmail.com का प्रयोग करें।

इस बार इतना ही। आगे से मिशन तिरहुतीपुर की डायरी रविवार को नहीं बल्कि प्रत्येक दशमी को प्रकाशित होगी। इस प्रकार अगली डायरी अब कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की दशमी अर्थात 1 नवंबर, 2021 को आएगी। तब तक के लिए नमस्कार।

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