रेरा से संबंधित याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय पहुंचा केंद्र
रेरा से संबंधित याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय पहुंचा केंद्र

उच्चतम न्यायालय आज केंद्र की उस याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया जिसमें मांग की गई है कि रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम (रेरा) की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाए।

सरकार ने इस मामले का उल्लेख प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति अमिताव राय और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ के समक्ष किया और कहा कि इस अधिनियम को चुनौती देने वाली 21 याचिकाएं देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं।

केंद्र ने पीठ से कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित इन याचिकाओं पर फैसला करने के लिए इन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

पीठ ने केंद्र की याचिका पर सुनवाई करने को सहमति जताई और सुनवाई की तारीख चार सितंबर तय की ।

केंद्रीय रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम (रेरा) संसद से पारित होने के एक वर्ष बाद एक मई 2017 को लागू किया गया था।

अधिनियम के मुताबिक, डेवलपरों, परियोजनाओं और एजेंटों को 31 जुलाई तक अपनी परियोजनाओं का रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण में पंजीयन करवाना अनिवार्य था। पंजीकृत नहीं करवाई गई किसी भी परियोजना को नियामक द्वारा अनाधिकृत माना जाएगा।

रेरा के तहत हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश का अपना नियामक प्राधिकरण (आरए) होगा जो इस अधिनियम के मुताबिक नियम बनाएगा।

नई शुरू हुई परियोजनाएं और जारी परियोजनाएं जिनका कंप्लीशन या ऑक्यूपेशन प्रमाण-पत्र हासिल नहीं किया गया है, वे सभी रेरा के अंतर्गत आएंगी।

रेरा के तहत बिल्डर अपनी किसी भी रियल एस्टेट परियोजना को प्राधिकरण में पंजीकृत कराए बिना किसी भी भूखंड, अपार्टमेंट या इमारत को न तो बुक कर सकते हैं, न ही बेच सकते हैं और न ही उनकी बिक्री का प्रस्ताव दे सकते हैं। यही नहीं, किसी व्यक्ति को इन्हें खरीदने के लिए आमंत्रित भी नहीं कर सकते हैं। यह बिल्डर के लिए बाध्यकारी है।

( Source – PTI )

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *