समाज

ऐतिहासिक फैसला या ऐतिहासिक चूक

-धीरेन्द्र प्रताप सिंह

भारत की राष्‍ट्रीय अस्मिता के प्रतीक भगवान श्रीराम चंद्र की जन्म स्थली अयोध्या में एक विदेषी आक्रान्ता द्वारा तोड़ कर बनाई गई बाबरी मस्जिद पर राम मंदिर स्वीकार करने की 60 साल लंबी चली कानूनी कार्रवाई के बाद आखिरकार गुरूवार के दिन फैसला आ ही गया। फैज़ाबाद की अदालत से चलता हुआ ये मामला इलाहाबाद पहुंचा और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनउ बेंच के माध्यम से निस्तारित किया गया। ये फैसला न सिर्फ देश के करोड़ो हिन्दुओं के लिए बल्कि देश को विकास की राह पर ले जाने वालों के लिए भी राहत भरा कहा जा सकता है।

गुरूवार को सुनाए अपने फैसले में उच्च न्यायालय की लखनउ खंडपीठ के तीनों माननीय न्यायाधीशों ने एक मत से ये बात स्वीकार की उक्त स्थल पर हिन्दू आस्थ के प्रतीक भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था इसलिए उक्त स्थान को हिन्दू मतावलंबियों की पूजा पाठ की हद में रखा जाना आवष्यक है। माननीय न्यायालय का ये फैसला बेहद उचित और तर्क पूर्ण माना जा रहा है। मैं भी माननीय न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं लेकिन स्वतंत्र अभिव्यक्ति का सांवैधानिक अधिकार होने के नाते मैं कह रहा हूं कि ये मामला भविष्य में एक ऐतिहासिक भूल बनने जा रहा है। जिस तरह से अदालत ने अपने फैसले में दोनों पक्षों या कहे निर्मोही अखाड़ा को भी एक पक्ष मान लिया जाए तो तीनों पक्षों को संतुष्ट करने का प्रयास किया है वह आने वाले दिनों में इस मामले को उलझा कर रख देगा।

चूंकि ये आस्था और विश्वास का मामला है और एक ही जगह पर मंदिर और मस्जिद होने के जो दुष्परिणाम आमतौर पर आते है वे यहां भी प्रभावी भूमिका दिखाएंगे। चूंकी अदालत का मामला है तो इस पर कोई टिप्पणी करना उसकी मानहानि हो सकती है। इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करने की बजाय हम भारतीय संसद से और विशेष कर केन्द्र सरकार से इस मामले को हल करने की अपील कर सकते है। अभी भी वक्त है अगर केन्द्र सरकार चाहे इस मामले को गंभीर होने से बचा सकती है। इसके कई रास्ते है। जिनमें से एक तो यही है कि केन्द्र प्रथम राश्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद की तरह इसे देष के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्था का विषय मानते हुए हिन्दुओं को सौंप दे या खुद उस स्थान पर राममंदिर का निर्माण कराए।

दूसरा मुस्लिम भाईयों से बातचीत कर इसका समाधान भी तलाश सकती है।

तीसरा जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानों मामले में संसद में कानून बनाकर एक इबारत लिखी थी उसी तरह अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए संसद में कानून बनाए। यदि उपरोक्त किसी भी प्रक्रिया को अपनाते हुए इस विवाद को हल नहीं किया गया तो निष्चित ही आने वाले समय में दोनों समुदायों में जो जहर फैलेगा उसका असर कई सदियों तक दिखेगा।