हिंदुत्व ने बदल दिया है द्रविड़ आंदोलन का चेहरा

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साक्षात्कार : एस. वेदांतम, अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद

भारत के धुर दक्षिण में एक अनूठी मूक क्रांति हो चूकी है। विश्व हिंदू परिषद के रचनात्मक प्रकल्पों और सामाजिक गतिविधियों ने इस क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन का श्रीगणेश किया।  इस परिवर्तन के परिणाम स्वरूप हिंदू समाज की कथित अति दलित, अछूत व पिछड़ी जातियों से जुड़े कोई तीन लाख लोग सनातन वैदिक परंपरा के अनुरूप, विधि-विधान पूर्वक धार्मिक कार्य सम्पन्न करने वाले पुरोहित-पंडित बन चुके हैं। 

vendantaमूलत: केरल के रहने वाले श्री एस. वेदांतम विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष हैं। चेन्नई उनका केंद्र है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में विश्व हिंदू परिषद प्रेरित इस महान क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन को गति देने में उनकी भूमिका अग्रणी रही है। 1949 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के रूप में अपनी सामाजिक यात्रा प्रारंभ की। सन् 1970 में अपनी प्रतिष्ठापूर्ण नौकरी से पूर्ण रूपेण अवकाश लेकर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक बन गए। कालांतर में संघ की ओर से उन्हें विश्व हिंदू परिषद के कार्य में भेज दिया गया। और फिर इतिहास साक्षी है। इसी दीपावली पर चेन्नई में मान्यवर अशोक सिंहल जी की प्रेरणा से उन्होंने इंटरनेट अर्थात कंम्पयूटर के वैश्विक महाजाल पर तमिल वेब टी.वी. का विधिवत् शुभारंभ किया। इस अवसर पर  प्रवक्‍ता प्रतिनिधि को दिए गए विशेष साक्षात्कार में उन्होंने न सिर्फ हिंदू आंदोलन को प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी के साथ चलने की आवश्यकता पर बल दिया वरन् भूत-वर्तमान और भविष्य का सम्यक विवेचन कर भविष्य पथ निर्धारित करने की सलाह भी दी। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत के सम्पादित अंश – सम्पादक

 

प्रश्न- दक्षिण भारत में आपके प्रयासों से सामाजिक समरसता के आंदोलन को बहुत बल मिला है। इसे शुरू करने की प्रेरणा कहां से मिली।

उत्तर- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही मूल प्रेरणा है। संघ ने ही मुझे विश्व हिंदू परिषद के कार्य में भेजा। ये बात कोई सन् 1972 की है। तब मैं विश्व हिंदू परिषद का प्रांत संगठन मंत्री नियुक्त किया गया। तमिलनाडु की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति द्रविड़ आंदोलन के उभार के साथ ही हिंदू और सनातन परंपरा के विपरीत होती चली गई। 1967 से लेकर लगातार अब तक तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन से जुड़े राजनीतिक लोग ही सत्तारूढ़ होते चले आ रहे हैं। द्रविड़ आंदोलन उस विचार से निकला है जिसके अनुसार आर्य आक्रमणकारी थे और उन्होंने द्रविड़ों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की। इनका प्रारंभ से यह विचार रहा कि हम एक अलग राष्ट्र हैं तमिलों की संस्कृति और तमिलों का राष्ट्र अत्यंत प्राचीन हैं और यह सर्वश्रेष्ठ है। हमारा हिन्दुओं से कोई लेना देना नहीं है। हिन्दुत्व हमें कदापि स्वीकार नहीं है। दक्षिण में हिंदी के विरूध्द द्रविण नेताओं ने ही जहर उगलना प्रारंभ किया। उनका उस समय का एक नारा आज भी लोगों की मानस पटल पर तैरता है कि – ”हिंदी नेवर एण्ड इंग्लिश एवर” अर्थात् ”हिंदी कभी नहीं और अंग्रेजी सदा के लिए”। द्रविण आंदोलनकारियों ने अपने-अपने परिवारों में और समाज में ऐसा माहौल पैदा किया कि लोग एक बारगी आस्था और विश्वास आदि धार्मिक क्रियाकलापों से परहेज करने लगे।

 

प्रश्न – द्रविड़ आंदोलन हिन्दुत्व के विरूध्द क्यों गया? इसके पीछे का रहस्य क्या है?

उत्तर – अब ये तो इतिहास की बात है। संक्षेप में इतना ही समझना पर्याप्त है कि इस आंदोलन के संस्थापक ई.वी. रामस्वामी नायकर अपने जीवन के प्रारंभ में एक राष्ट्रवादी नेता थे। कांग्रेस में उनका बड़ा स्थान था। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे। ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस के कुछ राज्य स्तरीय नेताओं से अध्यक्ष पद के सवाल को लेकर उनके मतभेद हो गये। यहीं से उनके मन में ब्राह्मण विरोध पैदा हुआ जो आगे चलकर हिन्दुत्व के विरोध में परिवर्तित हो गया और तो और उन्होंने आजादी के आंदोलन में भी नकारात्मक भूमिका अपना ली और भारत में ब्रिटिश राष्ट्र के वे समर्थक बन गये। इसी में से द्रविड़ आंदोलन उपजा और द्रविड़ पार्टी की स्थापना तमिलनाड़ में हुई। उन्होंने विधिवत अंग्रेजी राज के समर्थन में प्रस्ताव तक पारित कर दिया। ब्राह्मणों, संस्कृत, हिन्दी, उत्तर और कुल मिलाकर संपूर्ण सनातन हिंदू विचार के वे प्रबल विरोधी बन गये।

द्रविड़ आंदोलन तो अब सत्ता के आंदोलन के रूप में ही बचा है। उसका मूल तत्व, मूल स्वर सब स्वाहा हो गये। उनकी विचारधारा जैसी कोई चीज अब देखने को नहीं मिलती। वर्तमान सत्तारूढ़ द्रमुक पार्टी को ही लें तो उनके एक-दो वरिष्ठतम नेताओं को छोड़कर अधिकांशत: सभी भगवद् भक्ति करने लगे हैं। उनके परिवार और स्वयं वे भी उन मंदिरों में दर्शन के लिए जाने लगे हैं, जिन मंदिरों में जाने से उन्होंने कभी लोगों को रोका था।

प्रश्न – क्या इसमें अंग्रेजों की भी कोई भूमिका दिखाई देती है?

उत्तर – वास्तव में यह एक स्थापित सत्य है कि ईसाई मिशनरियों ने ब्रिटिश सरकार के माध्यम से भारत के दक्षिण भाग में स्वतंत्रता आंदोलन के विरूध्द अलगाववादी आंदोलन प्रारंभ किया। मिशनरियों की प्रेरणा से ही दक्षिण में द्रविड़ आंदोलन की नींव पड़ी। रामास्वामी नायकर देशभक्त थे। कांग्रेस में उनके अहम् पर लगातार चोट की गई थी। कहीं न कहीं वह आहत हुए। मिशनरियों ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया। ईसाई मिशनरी तमिलनाडु में ईसाइयत के प्रचार के लिए व्यग्र थे। उनके कार्य में ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से सबसे बड़े बाधक थे। मिशनरियों ने रणनीति बनाई और उन्होंने यह प्रचारित करना शुरू किया कि तमिल संस्कृति और ब्राह्मण संस्कृति सामाजिक एवं दार्शनिक आधार पर अलग-अलग हैं। एक बार यह सिध्दांत पैदा हुआ तो फिर दूसरे चरण में तमिल साहित्य और तमिल भाषा के पौराणिक ग्रंथों में भी इस प्रकार की अलगाववादी जहर डालने के प्रयास शुरू किये गये। इस कार्य के लिए मिशनरियों ने द्रविड़ आंदोलन को प्रचारित प्रसारित करने में अप्रत्यक्ष रूप में पूरी मदद की। आगे चलकर द्रविड़ कडगम का विभाजन हो गया और द्रविड़ मुनेत्र कडगम नामक एक नए दल का गठन हुआ। कालांतर में इसमें भी विभाजन हुआ और आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम की नींव पड़ी। इन सभी संगठनों ने तमिलनाडु में हिन्दुत्व के उत्थान में भारी बाधाएं खड़ी की। सनातन हिंदू विचारधारा को मानने वाले लोगों की संख्या में तेजी से क्षरण होने लगा, लेकिन विधाता की इच्छा से द्रविड़ आंदोलन में ही कुछ ऐसी चीजें घटित हुई कि जिनके कारण दक्षिण में हिन्दुत्व का बीज पुन: अंकुरित होने लगा। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम के नेता एम.जी. रामचंद्रन की इसमें बड़ी भूमिका रही। यद्यपि वे द्रविड़ नेता थे द्रविड़ आंदोलन की उपज थे लेकिन उनका हृदय कहीं न कहीं आध्यात्मिक एवं भक्ति भावना से ओत-प्रोत था। द्रविड़ आंदोलन की परंपरा से हटकर उन्होंने मंदिरों और देवी-देवताओं के प्रति अपनी परंपरागत आस्था को बनाए रखा। वे भगवद् शक्ति में वे गहरी आस्था रखते थे और उसे प्रकट भी करते रहते थे। रामचंद्रन लगभग दस साल तक तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री रहे और उनके कार्यकाल में ही द्रविड़ आंदोलन की हिंदू विरोधी भावनाएं धीरे-धीरे शांत होने लगीं। यह कट्टर द्रविड़ आंदोलन के लिए गहरा झटका था। किंतु द्रविड़ आंदोलन के कारण हिंदू धर्म के प्रति साधारण समाज में जो अनास्था फैलाई गई थी, कहीं न कहीं उसने अपना विघातक रूप भी दिखाया। 1982 में मीनाक्षीपुरम में बड़ी संख्या में लोग इस्लाम धर्म में मतांतरित हुए। धर्म में अनास्था के कारण समाज में जो रिक्तता आई उसका लाभ हिंदू विरोधी शक्तियों ने उठाना प्रारंभ कर दिया। बड़ी संख्या में मतांतरण की घटनाएं सामने आने लगीं। ब्राह्मण-अब्राह्मण, ऊंच-नीच, अगड़े-पिछड़े, आर्य-द्रविड़ के भेद से जो सामुदायिक शत्रुता पनपाई गई उसके दुष्परिणाम सामने आए। भिन्न-भिन्न जातियों में परस्पर अहंकार जनित संघर्ष भी प्रारंभ हुए। इस विकट परिस्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने समाज की एकता और राष्ट्रीय अखण्डता बनाए रखने के लिए विभिन्न रचनात्मक उपायों पर बल दिया और जब हमने सामाजिक एकता का कार्य अपने हाथों में लिया, परिस्थिति बदलते देर न लगी। मुझे यह बताने में गर्व होता है कि हमने सचमुच परिस्थितियों को बदल डाला। पुजारी आंदोलन ने इस कार्य में बड़ा भारी योगदान दिया। न केवल परिस्थिति बदली वरन् हिंदुओं के सामाजिक इतिहास ने भी निर्णायक मोड़ ले लिया।

 

प्रश्न – आज की परिस्थिति में द्रविड़ आंदोलन को उसके मूल रूप में आप कितना प्रभावी मानते हैं?

उत्तर – द्रविड़ आंदोलन तो अब सत्ता के आंदोलन के रूप में ही बचा है। उसका मूल तत्व, मूल स्वर सब स्वाहा हो गये। उनकी विचारधारा जैसी कोई चीज अब देखने को नहीं मिलती। वर्तमान सत्तारूढ़ द्रमुक पार्टी को ही लें तो उनके एक-दो वरिष्ठतम नेताओं को छोड़कर अधिकांशत: सभी भगवद् भक्ति करने लगे हैं। उनके परिवार और स्वयं वे भी उन मंदिरों में दर्शन के लिए जाने लगे हैं, जिन मंदिरों में जाने से उन्होंने कभी लोगों को रोका था।

 

प्रश्न – क्या आप कुछ उदाहरण बता सकते हैं जिससे ये बात सिध्द हो सके?

उत्तर – हां, मेरे तो बहुत से अनुभव हैं। वर्तमान सरकार के अनेक मंत्रियों के घरों में मुझे जाने का अवसर मिला है और मैंने देखा है वे बड़ी तल्लीनता से अपने पूजा घरों में पूजा-पाठ करते हैं। इसलिए अब तमिलनाडु द्रविण विचारधारा के नाम पर कोई चीज बची है ऐसा मैं नहीं देखता। हां, सत्ता के आधार पर संपूर्ण राज्य में स्थान-स्थान पर लाभ प्राप्त करने वाले ऐसे समूह जरूर खड़े हो गए हैं जो दल विशेष को सत्ता में बनाए रखने के लिए अपनी ताकत झोंक रहे हैं, लेकिन इन सभी निजी जीवन में देखे तो उनका रूझान हिन्दू संस्कृति और त्योहारों के प्रति स्पष्ट दिखाई देता है।

 द्रमुक के वर्तमान उपमुख्यमंत्री स्टॉलिन और एक अन्य केन्द्रीय मंत्री अझागिरी का उदाहरण भी सामने हैं। दोनों द्रमुक नेता और मुख्यमंत्री करुणानिधि के सुपुत्र हैं। दोनों मंदिर जाते हैं और दोनों का परिवार भी नियमित तौर पर दर्शन पूजन करता है। हाल ही में एक रोचक विवरण अखबारों में आया। अझागिरि केंद्रीय मंत्री बनने के बाद आझागिरि जब चेन्नई आए तो वह पूजा के लिए एक नवगृह मंदिर में गए। पत्रकारों ने इस अवसर पर जब उन्हें घेरा तो उन्होंने पत्रकारों से आग्रह किया कि जो प्रश्न पूछना है आप पूछ लें लेकिन कृप्या कोई फोटो न खींचे। तो सच्चाई यह है कि करूणानिधि के परिवार में ही करूणानिधि को छोड़कर शेष सभी पूजा पाठी हो गए हैं। जहां तक मेरी जानकारी है करूणानिधि के पौत्र हिंदी भी सिख रहे हैं। दिपावली और अन्य हिंदी त्योहार भी उनके परिवार में धूमधाम से मनाया जाने लगा है। हाल ही में करूणानिधि ने खंडन करते हुए कहा कि मेरे पौत्रों की पटाखों में दिलचस्पी में न कि त्योहार में। लेकिन असलियत क्या है सभी जानते हैं। करूणानिधि खुद दिपावली त्योहार का अपने घर पर आनंद उठाते हैं। वास्तव में तो ये लोग तमिलनाडु की जनता को मूर्ख बनाते आए हैं। तमिलनाडु में द्रविड़ विचारधारा का अनुसरण करते हुए दो पीढ़िया गुजर चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद इस पड़ाव पर वे लगभग अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। विचारधारा के स्थान पर जातियों और समुदायों की राजनीति की जा रही है। पिछले दो विधानसभाओं के चुनाव बताते हैं कि द्रमुक जैसे दल को भी सरकार में बने रहने के लिए अन्य बाहरी दलों का सहारा लेना पड़ रहा है। यह उनकी पतली हालत को दर्शाता है। आज द्रमुक और अन्ना द्रमुक कोई भी अकेले दम पर सत्ता में नहीं आ सकता उन्हें बाहरी समर्थन की जरूरत पड़ती है।

 

प्रश्न – राष्ट्रवादी आंदोलन के नाते तमिलनाडु में भाजपा का भविष्य आप किस रूप में देख रहे हैं?

उत्तर – राज्य में भाजपा का एक भी विधायक या सांसद नहीं है। पहले राज्य विधानसभा में कुछ विधायक जरूर थे और कुछ सांसद भी थे लेकिन अब एक भी नहीं है। तो इसका विश्लेषण उन्हें स्वयं ही करना चाहिए। विश्लेषण्ा इस बात का भी करना चाहिए कि उनके विधायकों और सांसदों की भूमिका अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों में किस प्रकार की रही है? जन शिकायतों के निवारण में उन्होंने कितनी सक्रियता बरती है? जनता के हितों के सवाल पर उन्होंने क्या किया है? विशेष रूप में जो पिछड़े और वंचित वर्ग के लोग हैं, श्रमिक हैं, अथवा जिन्हें हम आम आदमी कहते हैं उनके उत्थान के लिए पार्टी ने क्या नीति-रणनीति अपनाई है? समाज और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में भाजपा नेतृत्व की भूमिका क्या रही है? ऐसे अनेक गंभीर मुद्दे हैं जिन पर भाजपा को गहराई से आत्मावलोकन करना चाहिए कि वह तमिलनाडु में क्यों असफल हो गई। मेरा विचार पूछेंगे तो मैं कहूंगा कि भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं किया। दिल्ली हो या चेन्नई, मैं एक बात समान रूप से घटित होते हुए देख रहा हूं कि हमारे जनप्रतिनिधि जनसेवा के बजाय अपना अधिकांश समय धनार्जन में लगा रहे हैं। आप इनकी आर्थिक स्थिति देखिए हर चुनाव के समय इनकी संपत्ति में कहीं डेढ गुनी तो कभी दो गुनी वृध्दि होती है। नामांकन के समय दाखिल होने वाले शपथ पत्रों को पढ़कर ही हम इसे समझ सकते हैं। ये कैसे संभव है इसका मतलब है कि हमारे नेता अपने काम के प्रति ईमानदार नहीं है और वे दूसरे अन्य कार्यों में सक्रिय है। भाजपा इसमें अपवाद नहीं बची है। भाजपा को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वह किस प्रकार के लोगों को अपना प्रत्याशी बना रही है? क्या केवल धन ही टिकट प्राप्त करने का अथवा चुनाव जीतने का एक मात्र पैमाना बन गया है।

 

प्रश्न – आप दक्षिण में हिन्दू जागरण में विश्व हिन्दू परिषद की भूमिका क्या मानते हैं। आपका काम करने का तरीका क्या है? और इसके परिणाम कैसे प्राप्त हो रहे हैं?

उत्तर – हम तमिलनाडु में कई स्तरों पर और कई माध्यमों से काम कर रहे हैं हमें जनता का अपार समर्थन मिल रहा है। चाहे हमारा एकल विद्यालय हो, हमारा पुजारी प्रशिक्षण कार्यक्रम हो, हमारे शिक्षा के प्रयास हो अथवा चिकित्सा और राहत के कार्य सभी को अपार सराहना मिली है। हम राजनीति से पूरी तरह अलिप्त है। लेकिन हिन्दू जागरण के कार्य के लिए प्रत्येक सामाजिक मोर्चे पर हमने दस्तक दी है। पिछले 25-30 सालों में हमारे कार्यकर्ताओं ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टतम कार्य किये हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच हमारा एक कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है। हर वर्ष 25 से 30 हजार स्कूली बच्चों को हम एकत्रित कर उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा से परिचित कराते हैं। जाति-भेद की दीवारें लांघ कर इसमें हर वर्ग के बच्चे हिस्सा लेते हैं। इस माध्यम से हमने समरसता के भाव को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाया है अपनी संस्कृति और धर्म का प्राथमिक परिचय बच्चों को कराने में यह कार्यक्रम अत्यंत लाभदायक सिध्द हुआ है।

तमिलनाडु में हमने पुजारी आंदोलन शुरू किया। अनुसूचित जाति-जनजाति एवं अन्य जाति से जुड़े लगभग 1 लाख पुजारी इस आंदोलन के नियमित सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त 2 लाख अन्य लोग भी इस पुजारी आंदोलन से जुड़ गये हैं। 1996 में हमनें ऐसे पुजारियों का विराट सम्मेलन आयोजित किया और इसमें उस समय की मुख्यमंत्री जयललिता को आमंत्रित किया। द्रविण आंदोलन के इतिहास में यह पहला अवसर था जब कोई द्रविण नेता  विश्व हिन्दू परिषद के मंच पर आया। सन् 2001 में हमने पुन: सम्मेलन आयोजित किया और इस बार करूणानिधि मंच पर पधारे उन्होंने मंच से हमारे मांग पत्र के नवबिंदुओं में से 8 बिंदुओं को तत्काल पूरा करने की घोषणा की। घोषणा के आधार पर 60 वर्ष अथवा उससे ऊपर की आयु के 3000 पुजारियों को प्रतिमाह 750/-रूपये मासिक भत्ता मिलना प्रारंभ हो गया। करूणानिधि ने पुजारियों के लिए एक बोर्ड भी गठित करने की घोषणा की जिसके द्वारा उनके चिकित्सकीय एवं अन्य जरूरतों को पूरा किया जाता है। करूणानिधि के लिए यह बात आश्चर्यजनक थी कि जिन्हें वह कथित तौर पर हिंदू समाज का अछूत वर्ग मानते रहे आज वे पुजारी बन कर हिन्दू धार्मिक क्रियाकलापों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यही कारण है कि नास्तिक होते हुए भी करूणानिधि हमारे मंच पर आए। यह विश्व हिन्दू परिषद के कार्य का जादू है जो तमिलनाडु में अब गहरे उतर रहा है।

 

प्रश्न – आप गैर ब्राह्मण लोगों को और उसमें भी कथित अछूत जातियों के लोगों को पुजारी परंपरा से जोड़ने की ओर कैसे प्रेरित हुए ये विचार आपके मन में कब आया?

उत्तर – 1982 में मीनाक्षीपुरम में घटी मतांतरण की घटना ने हमें हिला कर रख दिया। संपूर्ण देश इस घटना से स्तब्ध रह गया था। तभी ऐसे अनेक लोग सामने आये जिन्होंने परिस्थिति को बदलने का बीड़ा उठाया। समाज के सहयोग से हमने सेवा बस्तियों में मंदिर निर्माण शुरू किये। हमने प्रभावित लोगों के बीच जाकर उनकी माली आदत को सुधारने की दिशा में प्रयास शुरू किया। उनके लिए पीने के पानी, रहने के लिए वर्षा और आग से सुरक्षित मकान आदि के निर्माण में सहयोग प्रदान किया। लगभग 200 ग्रामों में हमने जरूरी नागरिक सुविधाएं मुहैय्या कराई। हमने मंदिर बनाए तब यह समस्या खड़ी हुई कि वहां नियमित विधि-विधानपूर्वक पूजा कौन संपन्न करवाएगा और इसमें से ही पुजारी आंदोलन की नींव पड़ी हमने अनुसूचित जाति और जन जाति के लोगों को ही तैयार किया और उनके प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की।

 

प्रश्न – जब आपने अनुसूचित जातियों में पुजारी आंदोलन शुरू किया तो उस समय उच्च जातियों की प्रतिक्रिया क्या थी?

उत्तर – हमने सारा काम मौन रहकर किया, चुपचाप किया, कोई हल्लागुल्ला नहीं मचाया। कुछ समय बाद जब लोगों ने इसे देखा तो उन्हें समझ आया कि सामाजिक परिवर्तन क्या होता है। हमें समाज के सभी वर्गों का पूरा समर्थन मिला। और तो और पूज्य शंकराचार्यों ने हमें पूरा समर्थन दिया । अनेक उच्च कोटि के विद्वान-ब्राह्मण आगे आए। बहुत से साधु-महात्मा और संत आगे आए। उन्होंने इस कार्य को अपना समर्थन और आशीर्वाद दिया। हमारे विरोधियों ने इस सामाजिक क्रांति पर यह कहकर टिप्पणी की कि हम नव ब्राह्मण पैदा कर रहे हैं।

 

प्रश्न – क्या यह सभी प्रशिक्षित पुजारी अपने व्यक्तिगत जीवन में हिन्दू जीवन मूल्यों का अनुसरण करने लगे हैं?

उत्तर – हिन्दू जीवन मूल्यों के अनुसरण का सवाल पुजारी बनने या न बनने से नहीं जुड़ा है। व्यापक तौर पर एक आस्थावान हिंदू चाहे वह कोई भी कार्य क्यों न करता हो, निजी जीवन में हिन्दू जीवन मूल्यों के अनुसरण का भरसक प्रयास करता है और हमें प्रसन्नता है कि हमारे पुजारी भी उसी पथ पर चल रहे हैं। आप उनके माथे पर तिलक देखेंगे, वे शिखा रखते हैं, वे यज्ञोपवीत धारण करते हैं और भी जो हिन्दू प्रतीक चिन्ह हैं उन सभी का वे अनुसरण करते हैं। पुजारी बनने के पूर्व के कथित दमित व दलित जीवन की तुलना में स्वाभाविक ही वे भिन्न और सुसंस्कृत जीवन पथ पर चलने लगे हैं। समाज पर भी उनका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अपनी जिस जाति से वह संबंधित रहते हैं, उनमें सैंकड़ों स्थानों पर ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जहां अपने पुजारियों के प्रेरक जीवन को देखकर, उनकी प्रेरणा से लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है, जहां लोग धुम्रपान से दूर हो गये हैं। ये सचमुच एक बड़ा भारी परिवर्तन हो रहा है। हमारे सम्मेलन में जब करूणानिधि आये थे तब उन्होंने पूछा था कि क्या ऊंची जातियों को ये पुजारी स्वीकार हैं । तब मैंने उन्होंने बताया था कि हम यह किसी प्रचार के लिए नहीं कर रहे हैं हमारी मान्यता है कि जैसे-जैसे यह कार्य आगे बढ़ेगा परिवर्तन अपने आप दृष्टिगोचर होने लगेगा और वह दिख रहा है क्योंकि लोग उसे स्वीकार कर रहे हैं। जब जयललिता से पुजारियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मिले थे तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित थी कि अनुसूचित जाति-जनजाति से जुड़े लोग माथे पर तिलक और यज्ञोपवित धारण कर रहे हैं। उन्होंने वहां खड़े अपने पार्टी सदस्यों से कहा कि जो हम सिर्फ भाषणों में कहते हैं विश्व हिन्दू परिषद उसे धरातल पर सच करके दिखा रही है।

 

प्रश्न – आप विश्व हिन्दू परिषद के शीर्ष नेतृत्व में प्रमुखतम स्थान रखते हैं। वर्तमान परिस्थिति में हिन्दू आंदोलन के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?

उत्तर – इस संपूर्ण आंदोलन के दो आयाम है पहला तो यह है कि हमारे हिन्दू नेतृत्व ने चाहे वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हो, या विश्व हिन्दू परिषद में इस नेतृत्व ने महान् तपस्या की है। हिन्दू विचार के प्रभाव के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए महान् त्याग और समर्पण किया है। सभी ने मौन रहकर साधना की है। मेरा मानना है कि ये साधना यूं ही व्यर्थ नहीं जाएगी। हमारे कार्य का आधार धर्म है और यदि धर्म हमारे साथ है तो निश्चित रूप से हम विजय प्राप्त करेंगे। क्षणिक आघात-प्रतिघात लग सकते हैं लेकिन अंतत: हम अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे। मैं बहुत आशावादी हूं। मेरा मानना है कि सन् 2010 के बाद हिन्दू धर्म के संदर्भ में हमें महान् परिवर्तन देखने को मिलेंगे। सारा संसार सामी सभ्यताओं और उनकी जीवन शैली के दुष्परिणामों को झेल रहा है। सबके लिए आशा की किरण हिन्दुत्व है। भारतवर्ष है। हमारे पास एक जीवन दृष्टि है, एक जीवन शैली है। इस वसुंधरा को बचाने के लिए हमारे पास दुनिया को दिशा दिखाने वाला संदेश है। केवल एक काम है जो हमें लगातार करते रहना है कि हमें अपने काम को तेजी से करना है। संसार जीवन शैली के प्रश्न पर एक बड़े परिवर्तन की बाट जोह रहा है और इसलिए हिंदू आंदोलन आज भी प्रासंगिक है।

 

प्रश्न- आपको लगता है कि संसार की बढ़ती समस्याओं का समाधान हिंदू विचार एवं जीवन पथ द्वारा हो सकता है?

 उत्तर-संसार के पास हिंदू विचार पथ पर आने के सिवाय कोई रास्ता भी नहीं बचेगा। वह समय निकट आ गया है। शरीर, मन, बुध्दि, आत्मा, सृष्टि और परमेष्टि के बीच समन्वय के बिना संसार का कल्याण नहीं है और ऐसा केवल हिंदू जीवन पथ के अनुसरण द्वारा ही संभव है। मेरा अपने संगठनों को एक सुझाव है कि हमें शीघ्र अपने अतीत, अपने वर्तमान और अपने भविष्य का सम्यक अध्ययन कर, सम्यक विश्लेषण कर रणनीति बनानी चाहिए। हमें समयबध्द लक्ष्य तय करने चाहिए। इस कार्य में विशेषज्ञों के साथ सलाह परामर्श करना चाहिए। वस्तुत: मुगल काल से लेकर और बाद में ब्रिटिश काल में भी हिन्दुओं के मनोविज्ञान पर बड़ा भारी दुष्प्रभाव पड़ा है। हिंदू मन अनेक ऐसे दुर्गुणों की चपेट में आ गया जो उसके विकास को हमेशा बाधित करते हैं। पराजित मानसिकता, हतमनोबल, अहंकार आदि दुर्गुणों का प्रभाव हमारे सामाजिक जीवन पर ज्यादा पड़ा तो हमें इनसे मुक्ति पाने के रास्ते खोजने होंगे और तरीके तलाशने होंगे। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि वर्तमान युग प्रौद्योगिकी एवं तकनीक आधारित युग है। प्रौद्योगिकी का प्रभाव बढ़ रहा है प्रौद्योगिकी अथवा टेक्नालॉजी तो हीरे के समान है। हमें परंपरा रूपी स्वर्ण में इस हीरे को भी जड़ना होगा। टेक्नालॉजी के माध्यम से अपने विचार का प्रसार और समाज पर तक व्यापक पहुंच बनानी होगी। यह समय की मांग है। कुछ बिंदुओं पर हमें अपने पैर पीछे करने होंगे और कुछ बिंदुओं पर पूरी ताकत से काम करना होगा। शिवाजी से हमें प्रेरणा लेनी होगी कि हमें कब-कहां, किस समय और  क्या करना है।

 

प्रश्न- युवा पीढ़ी के लिए आप के पास क्या संदेश है?

उत्तर-हमारे युवा हमारी ताकत है। पूरे विश्व में हमारे युवा बड़े-बड़े महान् कार्य कर रहे हैं। दुनिया में सर्वाधिक युवकों की संख्या आज हिंदू समाज के पास है। लेकिन सवाल यह है कि इस युवा शक्ति को हिंदू विचारधारा की ओर अधिक से अधिक किस प्रकार आकर्षित कर सकते हैं। कैसे उन्हें अधिकाधिक ढंग से हम अपने काम में लगा सकते हैं। इस लक्ष्य और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमें रणनीति बनानी होगी। हमारा युवा वर्ग बहुत पराक्रमी, तेजस्वी और सक्रिय है वह स्वयं ही अपने धर्म, समाज और विरासत और अपनी परंपरा में बहुत कुछ करना चाहता है। प्रश्न तो हमारे सामने खड़ा है कि क्या हम उनकी कसौटी पर खरे उतर सकते हैं? हमारे शत्रु अमीबा की तरह बहुत तीव्र गति से वृध्दि कर रहे हैं। उनकी तुलना में हमारी गति धीमी है तो इस कमी को दूर करने में हमारा युवा वर्ग ही हमारी शक्ति बन सकता है। हमें अपने युवकों की अपेक्षाओं के अनुरूप अपनी चाल-ढाल में परिवर्तन लाना होगा।

8 COMMENTS

  1. अति सुन्दर, प्रेरक, ज्ञानवर्धक साक्षात्कार है.

  2. साधू! साधू!!
    कभी बाला साहेबदेवरस ने तमिल नाडू के युवा संघ प्रचारकों को देख काफी आशा प्रगट की थी
    उसीका एक अध्याय हिन्दू मुन्नानी था (विश्व हिन्दू परिषद् को पहले इसी नाम से जाना जाता था )
    मेरे अपने अनुभव तमिलनाडू और तमिलों के साथ काफी अच्छे रहे हैं – वहां की अपनी १६ यात्राओं में
    चेन्नई, मदुरै तो कई बार गया पर मैंने अन्नामलाई,थिरुवान्नामालाई,कांचीपुरम,वेल्लोरे,चिदंबरम,तिर्चेंदुर,त्रिची,रामेश्वरम, तिरुनेलवेली,कन्याकुमारी,कद्दलोरे,ठंजवुर,ओइम्बतोरे,चेंगुल्पुत,नागरकोविल,पोत्तेर्री, की यात्राएं भी की हैं -सांगठनिक वा दर्शनीय स्थानों की –
    यदि किसीने तमिलनाडु नहीं घुमा तो उसने भारत नहीं देखा मन लीजिये
    मैं तो उस दिन को देखना चाहता हूँ जबकि वहां से जयललिता जैसी कोई देश की प्रधानमंत्री बने जो हिन्दुत्ववादी भी हो और उसकी छबि भी स्वच्छ हो
    बहुत अच्छा सकशात्कार लगा
    आज मुझ वहानके शिवराम याद आते हैं, शंमुखानंद, जाना कृष्णामूर्ति का ओजस्वी भाषण जब वे चुनाव लड़ रह थे, ठंजवुर के गणेश , नागरकोविल के कानन , कद्दोरे के अवदियाप्पन और पता नाहे कोन -कोण . मेरे संगठन NMO की केवल मदुरै शाखा बन पाई डॉ श्रवनम की परिश्रम से पर उसेक ओज को भुला नहीं पौँगा- डॉ आबाजी थत्ते ने उसे मुझसे मिल्नेकहा था
    तमिलनाडू में शक्ति भी है और भक्ति भी – वह अथा और विश्वाश का संगम है- उसके बिना हिंदुत्व अपूर्ण है, भारत अपूर्ण है- काम्पुचिया तक जिसने धर्मध्वजा लहरा दी उसे हम उत्तर के लोग मुइग्लों से त्रस्त हो भूल गए – जिन्होंने आदर्श काम सध्नावत किया है जिसका उदहारण यह लेख है उन्हें नमन
    शिवाजी को कोई ब्राह्मण विरोध क्यों करेगा – उन्होंने मराठों की नहीं हिन्दू पद पादशाही की स्थापना की थी
    शिवाजे एक समर्थन आयर प्रान्त के नाम पर भाषा के नाम पर दुसरे हिन्दुनको कास्ट देनेवाल्ला शिवाजी का विरोधी है

  3. स्वमी विवेकानंद ने कहा था भविष्य का विश्व धर्म वेदांत haiऔर संसार उसी और बढ़ रहा है. विश्व हिन्दू परिषद् को sadhuwad

  4. श्रीमान गोपाल पाटील जी।
    इस लेख में तो शिवाजी का आदर्श माना गया है।
    पर शायद श्री गोपाल पाटील कुछ अन्य स्थानों पर होने वाली गलतियों का संदर्भ इस लेख से जोड रहें हैं।
    मेरी मान्यता तो है, कि शिवाजी ना होत तो सुनता होत सबकी।
    कवि भूषण ने जो गाया है।
    कि, काशी जी की कला जाती।
    मथुरा की मक्का होती।
    शिवाजी न होत तो?
    सुनता होत सबकी॥
    चाहे तो, आप भी ऐसे आंदोलन छेड सकते हैं।
    क्यों कि, जनतंत्र में आप किसे भी रोक नहीं सकते! मैं तो मानता हूँ, कि===>शिवाजी की बदनामी हो ही नहीं सकती। मराठा समाज की बदनामी मैं ने कहीं पढी नहीं है।

  5. हिन्दू समाज को अगर एक होना है तो पहेले मराठोकी बदनामी रोके

  6. ब्राह्मण समाज ने छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास गलत क्यों दिखाया इससे हिन्दू धर्म और शिवाजी की बदनामी नहीं क्या

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