आप देश के किसी हिस्से में जाइए। छोटे-छोटे मंदिर हों, गुफा या कंदरा। भोले बाबा का त्रिशूल आपको दिख ही जाएगा। इसकी पूजा-अर्चना भी होती है। दरअसल, त्रिशूल त्रिदेवों में एक, सृष्टि के संहारक महादेव शंकर का अस्त्र है। इसे धारण करने से ही शिव का शूलपाणि भी कहा जाता है। वैसे, त्रिशूल से मतलब त्रि+शूल यानि तीन शूलों, तीन नुकीले सिरों वाले अस्त्र से है। भगवान आशुतोष के अस्त्र का नाम पिनाक है। दिलचस्प है कि आज हमारे देश में इसी नाम पर आधारित ‘पिनाका’ नाम की एक मिसाइल भी विकसित की गई है।
इसके तीन सिरों में संसार के तीन रहस्य मौजूद हैं। पूरी दुनिया केइंसानों में तीन गुण होते हैं। सत, रज और तम। त्रिशूल केतीनों सिरे इन्हीं प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। और महादेव रूद्र के हाथ में अस्त्र होने का आशय है। कि मनुष्य की तीनों प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। वैसे भी, तीनों गुणों में संतुलन से ही जीवन संतुलित और सुखी हो सकता है। इससे विचलन समस्याएं पैदा करता है। जो जीवन में शूल की तरह चुभती हैं। तीनों प्रवृत्तियों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए शास्त्रों में त्रिशूल की पूजा का विधान है।
त्रिशूल के ऐतिहासिक साक्ष्य भी मौजूद
शिव संहारक हैं और यह अस्त्र इसी मकसद को पूरा करता है। शिव ने अपने त्रिशूल का एक सिरा देवी आद्य शक्ति को प्रदान किया था और इस अस्त्र से देवी ने दैत्य महिषासुर का संहार किया था। यूं भी, ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि अपने देश में त्रिशूल अहम हथियार के तौर पर इस्तेमाल हुआ है। महाभारत काल में धातु का बना तीन नुकीले सिरों वाला हथियार लकड़ी के डंडे पर लगा होता था।
ज्योतिष में भी त्रिशूल अहम
ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि हथेली पर त्रिशूल का निशान होने से जीवन सुखी, समृद्ध, भाग्यशाली और राजयोगी का होगा। इसके अलग-अलग प्रभाव हैं। मसलन, अनामिका के नीचे सूर्य रेखा के अंत में त्रिशूल होना राजयोगी बनाता है। इससे नाम, धन और सांसारिक भोगों की प्राप्ति होती है। वहीं, तर्जनी के नीचे गुरु पर्वत पर जाने वाली हृदय रेखा के आखिर में निशान होने से जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। इसके अलावा मान्यता है कि सपने मे अगर त्रिशूल दिख जाए तो काम में सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
त्रिशूल पर टिकी काशी
श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद में है। इसका पुराना नाम काशी है। कहते हैं, काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है। जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इसे आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र आदि नामों से भी जाना जाता है।
सुद्धमहादेव का त्रिशूल
जम्मू से करीब 120 किमी दूर पत्नीटाप के पास समुद्रतल से 1225 मीटर ऊंचाई पर यह तीर्थ स्थल स्थित है। यहां श्रवण पूर्णिमा (जुलाई-अगस्त) की रात त्रिशूल और छड़ी की पूजा का बड़ा महात्म है। ऐसी मान्यता है कि यह छड़ी व त्रिशूल भगवान शिव के हैं।