लेख

अराजकता के इस‌ दौर में देश में सैनिक शासन की संभावनायें

मेरा बड़ा बेटा स्टेशनरी की दुकान चलाता है|वहीं पर कम्प्यूटर फोटो कापी इत्यादि भी उप‌लब्ध हैं सेवा निवृति के बाद मैं भी इस दुकान में बैठकर कंप्यूटर पर लेखन का काम करता हूं|कभी कभी काउंटर पर बैठकर रुपये गिनकर दुकान की आर्थिक हैसियत का अंदाज भी लगा लेता हूं|एक दिन एक ग्यारह बारह साल का लड़का दुकान में आया और कहने लगा की अंकल अंकल जब हमारे देश में इतना भ्रष्टाचार हो रहा है,बड़े बड़े नेता और मंत्री लोग इतना पैसा खा रहे हैं तो हमारे देश की सेना क्यों नहीं संसद पर हमला करके सब भ्रष्टाचारियों को अरेस्ट कर लेती और जेल भेज देती और गोबर की मूर्तियों जैसे हमारे प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति को कुर्सी से हटाकर खुद सत्ता हथिया लेती?

प्रश्न बड़ा बेतुका और बचकाना सा था||भारत वर्ष में सैनिक शासन यह सोचना ही महा पाप जैसा था यथार्थ में तो क्या सपने में भी कोई भारतीय इस देश में सैनिक शासन की सोच रखता हो |फिर भी वह बच्चा एक अनुत्तरित प्रश्न तो मेरे दिमाग की टेबिल पर तो छोड़ ही गया था| भारत का मजबूत लोकतंत्र और सैनिक शासन आज नहीं तो कल या कभी भविष्य मे यह कीड़ा मेरे दिमाग में कुलबुलाने लगा था| इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते की भारत दुनियां का सबसे बड़ा और पुख्ता लोकतंत्र है|आजादी के बाद सैकड़ों कठिनाइयों झंझावातों को सहता हमारा लोकतंत्र हिमालय के समान मजबूत और‌ स्थाई रूप में खड़ा है विश्व बाज़ार में उसकी साख बढ़ी है और आज हम एक परमाणु संपन्न देश हैं |अमेरिका सरीखे देशों को हमारी आवश्यकता महसूस होने लगी है| किंतु देश मे बेकाबू होती मंहगाई और नित नये नये घोटालों के भंडाफोड़ ने देश के ऐसे विकास पर एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया है| प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का पहला कार्यकाल तो हंगामेदार रहा ही है दूस्ररा कार्यकाल तो भ्रष्टाचारा की पराकाष्टा ही है| ऐसा लगने लगा है की सरकार सिर्फ खाने के लिये ही बैठी है| रोज नये नये घोटाले और वह भी करोड़ों अरबों रुपयों के ,|कोई रोकने वाला नहीं जिसको जहां मौका मिले खाये जाऒ| सरकार चुप मनमोहन मिट्टी के माधव सिद्ध हो रहे है तो सोनियां गांधी मोम की गुड़िया|| बड़े बड़े घोटालों के बाद सरकार इन घुटालिस्टों को जी जान से बचाने में जुटी है| उनको निर्दोष सिद्ध करने में लगी है| वह तो भला हो भारतीय उच्च न्यायालय का जिसके दबाव में सरकार को भ्रष्टों के खिलाफ मजबूरन कदम उठाना पड़रहे हैं|सरकार के ऐसे मजबूरी मैं उठाये कदम सरकार को हर बार कठघरे में ही खड़ा करते है| न्यायालायों के सख्त कदम के बाद ही दोषियों पर कार्यवाई सरकार की ढुलमुल नीति एवं जहां तक बन सके दोषियों की सहायता करने की ही मानसिकता दर्शाती है| राजा को निर्दोष बतानेवाली सरकार के राजा आज जेल में हैं |कलमाड़ी के पेरोकार बने सरकार के लगभग सभी मंत्री कलमाड़ी साहब को जेल में देख रहे हैं|लोगों का सता धीशों के प्रति विश्वास खोता जा रहा है| आम आदमी की नज़र में नेता आज चोरों डाकुओं की श्रेणी में आ  गया है|लोगों में गलत काम करने में भय नहीं लगता| वे जानते हैं कुछ भी करो सजा नहीं होगी अदि जेब में पैसा है और राजनैतिक संरक्षण है| इस अराजक स्थिति से निपटने का क्या कोई विकल्प है, ऐसा विकल्प जिसमें लोगों में गलत अमानवीय और दुष्कृत्य कार्यों का भय हो|क्या सरकार बदलने से बदलाव आयेगा? क्या राष्ट्रपति शासन से बदलावा आयेगा? नहीं नहीं आयेगा ,वोटों की राजनीति के चलते कोई भी सरकार मुजरिमों की गुलाम हो जाती है |राजनीति के अपराधीकरण के इस दौर जहां सता प्राप्ति ही एक मात्र उद्देश्य हो हो जाता है अपराधियों को शरण देना सरकार की मजबूरी हो सकती है|राष्ट्रपति शासन भी इस देश में विकल्प नहीं हो सकता| भारत का राष्ट्रपति संसद का मुखौटा तो होता ही है दलों की अपने पसंद का राष्ट्रपति चुनने देना भी राष्ट्रपति की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है |यदि ऐसा नहीं होता तो निसंदेह अब्दुल कलाम आज भी भारत के राष्ट्रपति होते| राजनैतिक दलो ने अपने क्षुद्र स्वार्थों के चलते योग्य व्यक्तियों का इस पद प्रतिष्ठापन नहीं होने दिया| तीसरा विकल्प शायद सैनिक शासन है जिसकी भारत जैसे सहिष्णु देश में संभावना नहीं के बराबर है| पर एक विकल्प तो है ही|एक ऐसा विकल्प जो लोगों में दहशत पैदा करे कि गलत करेंगे तो दंड मिलेगा| कुछ देशों में था या शायद अब भी हो कि यदि कम तौला तो हाथ काट दिये जायेंगे,बुरी नज़र से देखा तो आंखें फोड़ दी जायेंगीं चोरी की तो हाथी के पैरों तले कुचल दिया जायेगा| अलबत्ता आज इतना क्रूर तो नहीं हुआ जा सकता किंतु एक हद तक सख्त तो हुआ ही जा सकता है कि लोगों में गलत करने के प्रति भय हो|किंतु सैनिक शासन भी अपने आप में एक भय हैं जो तानाशाह हो सकता है और आम लोगों की कठिनाइयां और बढ़ा सकता है|

फिर भी यह एक विकल्प तो है ही भले कुछ ही समय के लिये हो| बीमार को कड़वी दवा पिलाई ही जाती है फिर चाहे वह कितनी भी कड़वी हो|सन 1974‍‍..75 में जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति का नारा लेकर मैदान में थे|उस समय भी यही परिस्थितियां थीं जो आज हैं|उस समय सरकार की मुखिया इंदिरा गांधी थी आज की तुलना में कई गुना सश‌क्त नेता|भ्रष्टाचार चरम पर था सब मनमानी पर उतर आये थे|ऐसे में आये में आया था संपूर्ण क्रांति का नारा| तानाशाही के विरुद्ध जय‌प्रकाशजी को सेना को बगावत करने के लिये सलाह देना पड़ी थी|परिणाम सामने था |इंदिराजी ने आपातकाल घोषित करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया था|ज नता की आवाज को कुचलने का परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा| कांग्रेस का तीस साल पुराना लोकतंत्र का जहाज भ्रष्टाचार की नदी में डूब गया| एक गैर कांग्रेसी सरकार दिल्ली की राज गद्दी पर बैठने का सुअवसर पा सकी|| आज भी कुछ इसी तरह की चाल और चरित्र कांग्रेस में स्पष्ट दिखाई दे रहा है|

अन्ना हज़ारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम,बाबा रामदेव का काला धन वापिसलाओ आंदोलन, युवाओं में सरकार के प्रति बढ़ता आक्रोश सरकार के लिये मुश्किलें पैदा कर रहा है और सरकार डंडे की ताकत से उसे कुचलना चाहती है जो एक क्रांति का रूप धारणकरता जा रहा है| वह तो देश की संस्कृति एवं सहिष्णुता का परिणाम है कि जनता चुप चाप सब सह रही है| पर आखिर कब तक? चिंगारी को शोला बनने में कितना समय लगेगा|

भर्ष्टाचार मंहगाई तानाशाही आखिर अंत तो होगा ही…….किंतु कैसे….सत्ता परिवरतन राष्ट्रपति शासन या सैनिक शासन| सैनिक शासन महज एक विचार है|भारतीय सेना का मनोबल इतना ऊँचा नहीं रहा की अपने प्रधान मंत्री अथवा राष्ट्रपति को अरॆस्ट कर सता हथिया ले|

हालाकि पड़ोसी देश में यह परंपरा उनकी आज़ादी के बाद से ही चली आ रहीहै| आज़ादी के बाद देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का कद इतना ऊंचा था कि सैना उनके घुट‌नों के बराबर भी नहीं थी| उस समय नैतिकता थी जनता की आवाज थी और बहुत हद तक ईमानदारी भी थी| बाद के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री तो शालीनता सच्चाई ईमानदारी की साक्षात मुर्ति थे| सैना के लिये वे

श्रद्धेय संत जैसे थे|इंद्रिरा जी ने पाकिस्तान पर हमला बोलकर और बंगला देश को जन्म दिलाकर सैना में अपनी जबरदस्त पैठ बना ली थी|किंतु बाद के वर्ष जब उन्होंने तानाशाही का सहारा लिया उन्हें मंहगे पड़े|जय प्रकाशजी की आवाज पर सैना में सुगबुगाहट हो पाती इससे पाले ही आपातकाल घोषित गया|

आनेवाले समय की कहानी सबको मालूम है‍|चुनाव जीतने के लिये गुंडों एवं धन का सहारा इंदिराजी देन था| राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण आगे की दास्तान ब्यां करती है|अटलबिहारी बाजपेई ने स्वच्छ प्रशासन देने का प्रयास किया और कुछ हद तक वे सफल भी हुये पर मिलीजुजी सरकार में दूसरे दलों का असहयॊगात्मक रवैये ने उन्हें परेशान रखा|

अब तो सब भगवान भरोसे है|रोज रोज के भ्रष्टाचार और मंहगाई से जनता ऊब गई है|सरकार कान में तेल डाले सो रही विपक्ष भी केवल दिखावा कर अपनी राजनैतिक गोटियां सेंकने में लगा हैं|संसद में बेमतलब का शोर शराबा जिसका कोई हल न हो करने का क्या र्थ हो सकता हैं| इससे तो मछली बाज़ार अच्छे हैं जहाँ मछली का भाव तो पता लग जाता है|मुख्य विषय से हठकर एक दूसरे की टाँग खीचना ही एक सूत्रीय कार्यक्रम बचा है जिसे संसद में रोज होते देखकर आम आदमी को सरकार नेता नाम के शब्दों से चिढ़ हो गई हैं

ऐसी अराजक स्थिति में क्या सैनिक शासन एक विकल्प हो सकता है जो इन बिगड़े नबाबों को ठोक पीटकर ठीक कर सके फिर बैरिकों में वापस चली जाये?