समाज

स्त्रियों का आदर करें

डॉ. दीपक आचार्य

आधे आसमाँ को दें पूरा सम्मान

स्त्रियों का आदर करें

मनुष्य के जीवन में सफलता के लिए पुरुष और प्रकृति का पारस्परिक सहयोग, सहकार और समन्वय सर्वाधिक जरूरी कारक है जिसके बगैर सृष्टि में समत्व, आनंद और शाश्वत संतोष की कल्पना कदापि नहीं की जा सकती है।

सृष्टि में हर वस्तु या व्यक्ति शक्ति से ही संचालित होता है। यहाँ तक कि भगवान शिव भी शक्ति के बगैर कुछ कर पाने में समर्थ नहीं हैं। इसीलिये सौन्दर्य लहरी में जगद्गुरु शंकराचार्य ने पहला ही श्लोक ‘‘शिवः शक्त्यायुक्तो ……प्रभवति।’’ शक्ति के महानतम साामर्थ्य को केन्द्रित कर लिखा है। इसमें स्पष्ट व्याख्या की गई है कि शक्ति के बिना शिव हिलने-डुलने तक में समर्थ नहीं हैं।

धर्मशास्त्रों और पुराणों से लेकर भारतीय साहित्य में हर जगह शक्ति याने स्त्री की अपार महिमा का वर्णन किया गया है। जो लोग स्त्री के भीतर समाहित मातृ तत्व और मातृ स्वरूप को जान जाते हैं वे जीवन का लक्ष्य पा जाते हैं और देवी के अत्यन्त निकट होने का अनुभव कर पाने में समर्थ हो जाते हैं।

इसके विपरीत स्त्री को सिर्फ दासी या भोग्या मानकर जो लोग जिन्दगी भर नासमझ रहा करते हैं उनके लिए जीवन भर समस्याओं और विषमताओं के साथ दुःखों का संसार साथ-साथ चलता रहता है और ऐसे लोग जीवन में कभी भी शाश्वत आनंद और सुख की प्राप्ति नहीं कर पाते बल्कि दैवीय सुख और भाग्य भी उनसे दूर-दूर होने लगते हैं।

हर व्यक्ति को यह स्पष्ट मानना चाहिए कि दुनिया की किसी भी स्त्री को रुष्ट करके वे प्रसन्नता की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं क्योंकि सृष्टि के संचालन और संसार के पालन में दैवीय परम्परा का महत्त्व खूब रहा है। जो लोग स्त्री की अवमानना करने के आदी हैं उनके लिए ईश्वर की उपासना व्यर्थ होती है चाहे करोड़ों जप कर लें अथवा धरम के नाम पर कुछ भी कर लंे।

केवल शक्ति उपासना मात्र से व्यक्ति दैवीय कृपा का अनुभव स्वयं में करने लगता है। स्त्री का निरादर करते हुए दैवी उपासना का कोई मतलब नहीं है बल्कि यह नदी में नमक बहा देने जैसा ही है।

शक्ति तत्व की इकाई अथवा अंश के रूप में स्त्री के महत्त्व को अंगीकार किए बगैर न कोई देवी प्रसन्न हो सकती है, न देव। दुर्गासप्तशती में सभी प्रकार की स्त्रियों में मातृभाव रखने पर जोर देते हुए कहा गया है -‘‘ स्त्रीयः समस्ता सकला जगत्सु ….।’’

श्री माँ और अन्य सिद्ध तपस्विनियों तथा ऋषि-मुनियों ने भी स्त्री की महिमा को महान बताया है। स्वयं माँ की आज्ञा है – ‘‘इस जगत की सभी स्त्रियां मेरा ही स्वरूप हैं। जो तुम्हंे संसार सागर में सुखपूर्वक पार करना है, तो जीवन में कभी स्त्री का त्याग न करें। स्त्री का अनादर निंदा आदि न करें, कोप, कुदृष्टि, कपट, कुटिलता न करें, कटु वचन भी न कहें। स्त्री के मन को दुःख, ठेस पहुंचे ऐसी वैराग्य प्रेरक वाणी न कहें। जैसे कि ‘नारी नरक की खाण’ इत्यादि वाक्य कहकर स्त्री के मन को ठेस न पहुंचाएं। प्रहार तो कभी भूल से भी न करें। क्योंकि महान से महान राजा-महाराजा, देव-दानव आदि समस्त स्त्री के आगे पराजित ही हुए हैं। इसीलिए कहा गया है – ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ और ‘‘नारी त्वं नारायणी।’’

भारतीय संस्कृति के इन्हीं आदर्श प्रशस्ति वाक्यों को याद रखके स्त्री को सम्मान देकर, स्वयं के सम्मान की गरिमा एवं गौरव प्राप्त करें। जहां स्त्री का सम्मान होता है, वहां देवगण नित्य निवास करते हैं।

एक स्थान पर श्री माँ स्पष्ट चेतावनी देती हुई कहती हैं- ‘‘सावधान एक बात ध्यान में रखो, हमेशा डरते रहना कि तुम्हारे अविवेक, अपराध या आज्ञा उल्लंघन के कारण कठोर दंड हेतु माँ कभी कहीं तुम पर ही हाथ न उठा दे। माँ की आज्ञा का उल्लंघन, अनादर होने से सभी कार्यों में निराशा एवं असफलता ही प्राप्त होती है। इसलिए स्त्री को सम्मान देते हुए माँ का स्नेह एवं शुभाशीर्वाद प्राप्त करें, जिससे संसार सागर सुखपूर्वक पार करके उत्तम यशस्वी जीवन को प्राप्त कर सकें।’’

इसी प्रकार के भावार्थ और आदेश भारतीय संस्कृति के कई ग्रंथों में स्पष्ट वर्णित हैं। इसके बावजूद स्त्री का निरादर करना और उसके प्रति अपशब्द प्रकटाना आज देखा जाता है।

एक बात स्पष्ट रूप से स्वीकारनी होगी कि किसी भी स्त्री का अपमान करके अथवा उसे रुष्ट रखकर देवी की कृपा कभी प्राप्त नहीं की जा सकती।

जो लोग देवी साधना में सिद्धि या सफलता प्राप्ति के इच्छुक हैं उन्हें सभी प्रकार की स्त्रियों का आदर करना सीखना होगा चाहे घर हो अथवा बाहर।

जो लोग देवी उपासना में निपुण हैं उन्हें इस महत्त्व के बारे में अच्छी तरह पता है। स्त्री को मातृभाव में देखें और उनके प्रति बेहूदा हँसी-मजाक न करें। ऐसा वे ही लोग करते हैं जिनमें कहीं न कहीं महिषासुर का अंश हुआ करता है।

इन लोगों को समझना चाहिए कि महिषासुर भी पशु बुद्धि ही था और उसकी जो गति माँ ने की, वह इतिहास विख्यात है। एक बात यह भी अच्छी तरह हृदयंगम कर लेनी चाहिए कि जिन लोगों की दुर्गति या संहार होने वाला होता है वे ही पशु बुद्धि वाले लोग स्त्रियों के प्रति खराब भावना रखकर मौत के मुँह में पहुंचने को स्वयं उतावले होते हैं। स्त्री का निरादर करने वाले लोग मरें नही ंतो अधमरे जरूर हो जाते हैं।

बात सिर्फ पुरुषों के लिए ही नहीं है बल्कि स्त्रियों को भी अपने दैवीय महत्त्व को स्वीकार करना होगा। स्त्रियों को भी शेष स्त्रियों का सम्मान और आदर भाव रखना चाहिए।

कुल मिलाकर बात यह है कि स्त्री के भीतर विद्यमान मातृ शक्ति का कभी निरादर न करें तथा स्त्रियों को पूरा सम्मान दें। जो लोग स्त्रियों का सम्मान नहीं कर सकते हैं उन्हें चाहिए कि शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ, रक्तबीज और महिषासुर से जुड़ी हुई कथाओं का जीवन में एक बार अवश्य श्रवण कर लें ताकि उनके कई सारे अहंकार और भ्रमों की असलियत सामने आ सके।