सागर छोटा पड़ जाएगा

आज उजाला मत ढूंढो,

कल उजाला खुद ही आयेगा।

दीप जले दीवाली हो तो,

होली रंग लगायेगा।

 

सावन की फुहारें मत ढूंढो,

मधुमास स्वतः छा जायेगा।

बस पतझड़ को जाने तो दो,

मलोज ‘‘मौन’’

होली रंग लगायेगा।

 

 

दूर गगन पर रंग है बिखरे,

नदियों में परछाइयां हैं।

दूर खड़े रखोगे खुद को तो,

रास न कुछ भी आयेगा।

 

जीवन की गहराई इतनी,

सागर छोटा पड़ जायेगा।

मौन समर हर दिन हो तो,

राह खुद दिख जायेगा।

 

भिड़ जा तू, रंगीन समर से,

मधुमास तुझे तो मिलना है।

जीवन सत पहचान तू, कांटों से आगे बढ़ना,

दीप जलेगें, दीवाली होगी,

होली रंग लगायेगा, उजाला खुद ही आयेगा।

 

आज उजाला मत ढूंढो,

कल उजाला खुद ही आयेगा।

दीप जले दीवाली हो तो,

होली रंग लगायेगा।

 

सावन की फुहारें मत ढूंढो,

मधुमास स्वतः छा जायेगा।

बस पतझड़ को जाने तो दो,

मलोज ‘‘मौन’’

होली रंग लगायेगा।

 

दूर गगन पर रंग है बिखरे,

नदियों में परछाइयां हैं।

दूर खड़े रखोगे खुद को तो,

रास न कुछ भी आयेगा।

 

जीवन की गहराई इतनी,

सागर छोटा पड़ जायेगा।

मौन समर हर दिन हो तो,

राह खुद दिख जायेगा।

 

भिड़ जा तू, रंगीन समर से,

मधुमास तुझे तो मिलना है।

जीवन सत पहचान तू, कांटों से आगे बढ़ना,

दीप जलेगें, दीवाली होगी,

होली रंग लगायेगा, उजाला खुद ही आयेगा।

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मनोज श्रीवास्‍तव 'मौन'
जन्म 18 जून 1968 में वाराणसी के भटपुरवां कलां गांव में हुआ। 1970 से लखनऊ में ही निवास कर रहे हैं। शिक्षा- स्नातक लखनऊ विश्‍वविद्यालय से एवं एमए कानपुर विश्‍वविद्यालय से उत्तीर्ण। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में पर्यावरण पर लेख प्रकाशित। मातृवन्दना, माडल टाइम्स, राहत टाइम्स, सहारा परिवार की मासिक पत्रिका 'अपना परिवार', एवं हिन्दुस्थान समाचार आदि। प्रकाशित पुस्तक- ''करवट'' : एक ग्रामीण परिवेष के बालक की डाक्टर बनने की कहानी है जिसमें उसको मदद करने वाले हाथों की मदद न कर पाने का पश्‍चाताप और समाजोत्थान पर आधारित है।

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