कविता

गीत ; सड़ी डुकरियां ले गये चोर – प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

इसी बात का का होता शोर

सड़ी डुकरियां ले गये चोर|

 

रजत पटल पर रंग सुनहरे

करें आंकड़े बाजी

बजा बजा डुगडुगी मदारी

चिल्लाये आजादी

भरी दुपहरिया जैसे ही वह

रात रात चिल्लाया

सभी जमूरों ने सहमति में

ऊंचा हाथ उठाया

उसी तरफ सबने ली करवट

बैठा ऊंट जहां जिस ओर|

सड़ी डुकरियां ले गये चोर|

 

कोई नहीं गरीब यहां पर

सब अमीर जादे हैं

दो दिन में या चार दिनों में

रोटी पा जाते हैं

तीस रुपट्टी पाने वाला

मजे मजे रहता है

झोपड़ियों में हंसी खुशी से

प्रजातंत्र कहता है

भाषण से भर जाता पेट

आश्वासन से खुशी बटोर|

सड़ी डुकरियां ले गये चोर|

 

सड़ी पुरानी चीजों को हम

कहां रखें टिकवायें

किसी तरह भी कैसे भी

इनसे छुटकारा पायें

जिनके पास नहीं धन दौलत

उनको हटना होगा

निर्धन और गरीबों से तो

शीघ्र निपटना होगा

इसी बात पर राज महल में

होती रहती बहस कठोर|

सड़ी डुकरियां ले गये चोर|