कविता कविता:बुरा दिन-मोतीलाल June 6, 2012 / June 6, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment रोशनी का बुरा दिन देखने योग्य बची कहाँ है कि खिझा हुआ अँधकार अपने लंबे नाखूनोँ वाले पंजे फैलाकर चपेट ले सारी रोशनियोँ को और कोई त्रासद संगीत नेपथ्य मेँ बज उठे तब क्या देखने योग्य चीजेँ बाजार मेँ उतारे जाएगेँ और क्या सुलाए जा सकेगेँ चीखते हुए बच्चोँ को खामोश पलोँ मेँ रोशनी […] Read more » poem by motilala कविता:बुरा दिन कविता:बुरा दिन-मोतीलाल