कविता कविता/ यह कैसा लोकतंत्र ? November 21, 2010 / December 19, 2011 by राजीव दुबे | 2 Comments on कविता/ यह कैसा लोकतंत्र ? -राजीव दुबे मानवीय संवेदनाओं पर होता नित निर्मम प्रहार, सीधे चलता जन निर्बल माना जाता, रौंदा जाता जनमत प्रतिदिन…, यह कैसा लोकतंत्र – यह कैसा शासन ? सत्ता के आगारों में शासक चुप क्यों बैठा, जनता हर रोज नए सवालों संग आती है – क्या आक्रोश चाहिए इतना कि उठ जाये ज्वाला, पिघलेगा पाषाण हृदय […] Read more » poem on loktantra:Rajiv Dubey लोकतंत्र