कविता

एक नारी की अभिलाषा करवाचौथ पर


मेरी मांग के सिन्दूर भी तुम,
मेरी आंख के काजल भी तुम,
मेरी उम्र लग जाए अब तुमको,
मेरे सर के सरताज भी तुम।।

मेरे बालो के गजरे हो तुम,
मेरी नाक की नथनी हो तुम।
सजधज के आई तुम्हारे लिए,
बताओ अब मेरे कौन हो तुम ?

मेरे माथे की बिंदिया भी हो तुम,
मेरी रातों की निंदिया भी हो तुम।
रह नही सकती तुम्हारे बगैर मै,
मेरे जीवन की चिंदिया हो तुम।।

मेरे सोलह श्रृंगार भी हो तुम,
मेरा सारा संसार भी हो तुम।
तुम्हारे बिन लगता सब सूना,
मेरे जीवन के आधार हो तुम।।

अगर मैं रूठ जाऊं मनाना तुम,
अगर मैं रोऊं बहलाना भी तुम।
पति पत्नी में यह चलता रहता,
एक दूजे को मनाते रहे हम तुम।।

न मांगू मै तुमसे सोने का हार,
न मांगू मै तुमसे हीरो का हार।
मांगू तो बस एक ही चीज मांगू,
मिल जाए तुम्हारा सच्चा प्यार।।

आर के रस्तोगी