कविता

कैसी आजादी

independence15 अगस्त 1947  को हुआ भारत आज़ाद 

धरती रोई रोया अम्बर और रोया ताज।

करोड़ो बेघर हुए लाखो हुए हलाल

इतना खून बहा धरती पर धरती हो गई लाल

घर लुटा अस्मत लुटी, लुट गए सब कारवाँ ,

देख दशा भारत माँ की बिलख उठा आसमां।

बिछड़ गए लाखो अपने चली न कोई तदबीर

याद उन्हें करके भर आता नैनो में नीर

राजनीती की बलिवेदी पर खूब हुआ नर संहार

देख खून निर्दोषों का ,मानवता हुई शर्मशार

आज़ादी का जश्न मानाने वालो  कद्र न उनकी जानी

लाज शर्म बेच दी आँखों का मर गया पानी

टुकड़े हो भारत माँ के, मनाते तुम जश्न ए  आजादी

पहले गैरो ने लूटा अब तुमने क्र दी बर्बादी  .

दर्द सहा बंटवारे का जिसने वोबुधि आंखें भर आती हैं

लुटे चमन की याद दिल में एक कसक सी छोड़ जाती है

कराह रही भारत माँ अब न खून बहाव तुम,

नफरत की लाठी तोड़ो और एक हो जाओ तुम

आँखों से अश्क बहा रही फटा हुआ चीर है

देख दशा भारत माँ की मन होता अधीर है

अधीर है

 

चन्द्र प्रकाश शर्मा