कविता

जिंदगी

-रवि श्रीवास्तव-

life

हो गया हूं मैं थोड़ा इस जिंदगी से निराश,

पर कही जगी हुई है, मेरे अंदर थोड़ी आस।

 

लाख कोशिशें कर ली मैंने, वक्त पर किसका जोर है,

हाय तौबा मची जहां में, हर तरफ तो शोर है।

 

वक्त का आलम है ऐसा, कर दिया जिसने मजबूर,

खेला ऐसा खेल मुझसे, कर दिया अपनों से दूर।

 

चल रहा हूं यूं तो तनहा, न है मंजिल न ठिकाना,

चेहरे पर रखनी हसी है, कितना भी हो ठोकर खाना।

 

इन कटीले रास्तों पर जिंदगी जीने का ऐहसास,

हो गया हूं मैं थोड़ा इस जिंदगी से निराश।