अनुशासन हीन को सजा

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खड़ी परीक्षा सिर पर थी,
दिन शेष बचे थे चार|
भालू को पढ़ने न देता,
रूम पार्टनर सियार|

नोट्स किया करता था भालू,
जैसे ही तैयार|
फाड़ फूड़ कर सियार भाई,
कर देते बेकार|

कड़क जेब थी भालूभाई,
लाये पेन उधार|
जैसे मौका मिला सियार को,
पेन कर दिया पार|

कष्ट‌ देखकर भालूजी का,
सबने किया विचार|
भालू दादा सीधे सादे,
सियार बड़ा मक्कार|

सबने डांटा बेईमान को,
न बन तू होशियार|
अगर नहीं तू अब भी सुधरा,
तुझे पड़ेगी मार|

जिसे नहीं है शालाओं में,
अनुशासन से प्यार|
उसे हटाने प्रिंसपाल को,
मिला हुआ अधिकार|

समझाने पर भी ना माना,
जब वह ढीठ गवांर|
प्रिंसपाल वन के राजा ने,
उसको किया डिबार|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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