ज्ञान के महासागर थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।

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   प्रथम भारत रत्न  डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण की  आज 131वीं जयंती है।उनके जन्म दिवश को शिक्षक दिवश के रूप में हर वर्ष  5 सितम्बर को देश भर में बढ़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है।बदलते सामाजिक परिवेश और भारतीय पारम्परिकता और भारतीय संस्कृति के आधुनिकता के दौर में जहाँ गुरु और शिष्य के बीच मात्र एक बिजनेस सम्बन्ध रह गया हो, ऐसे में शिक्षक दिवश गुरु शिष्य के बीच सम्बंध स्थापित करने में  सेतु का कार्य करता है।वैसे तो भारत भूमि हमेशा से ही विद्वानों और महापुरूषो से शुशोभित होती रही है ,लेकिन 20वीं शताब्दी में डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने आप मे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।भारतीय संस्कृति के संवाहक,हिन्दू परम्परा के हिमायती और हिंन्दू विचारक डॉ0 सर्वपली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर सन 1888 को तिरुतनी (तमिलनाडु) में हुवा था।इनके पिता का नाम  सर्वपली वीरास्वामी तथा माता जी का नाम सीताम्मा था।इनके पूर्वज पहले ‘सर्वपल्ली’नामक ग्राम में रहते थे और 18वी शताब्दी में तिरुतनी में आकर बस गए थे।उनके पूर्वजों की इच्छा थी कि उनके नाम के साथ हमेसा उनके पैतृक गाँव का नाम जुड़ा रहे इसीलिए इनका परिवार अपने नाम के साथ ‘सर्वपल्ली’ जोड़ते थे।।डॉ0 राधकृष्णन की बेसिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई।

     प्रारम्भिक शिक्षा के उपरांत उनकी आगे की शिक्षा मद्रास  क्रिश्चियन कॉलेज में हुई।इनकी याद करने की क्षमता और स्मरण शक्ति इतनी तेज थी कि स्कूल के दिनों में ही इन्होंने बाइबिल के महत्वपूर्ण अंशों को कंठस्थत कर लिया था।इसके लिए इनको विशिष्ट योग्यता सम्मान दिया गया था।डा0 सर्पल्ली राधाकृष्णन स्वामी विवेकानन्द और वीर सावरकर से अत्यधिक प्रभावित थे  इसलिए उनके दर्शन में हिंदुत्व की साफ झलक नजर आती है।

 विलक्षण प्रतिभा के धनी,दार्शनिक,शिक्षक,मनोवैज्ञानिक,प्रखर वक्ता,कुशल प्रशासक और दूरदृष्टा डॉ0 सर्वपल्ली राधकृष्णन देश का सर्वोच्च नागरिकत्व का सम्मान”भारत रत्न “पाने वाले पहले व्यक्ति थे। इनके साथ अन्य दो हस्तियों को भी सन 1954 में ये सम्मान दिया गया जिनमे ,महान वैज्ञानिक सी वी रमन तथा श्री राजगोपालाचार्य सामिल थे।भारतीय संस्कृति और सभ्यता के संवाहक,विद्ववानों के विद्वान डॉ0 राधाकृष्णन की जीवनी और उपलब्धियों को एक लेख या निबन्ध के रूप में नहीं समेटा जा सकता है।प्रथम भारत रत्न के साथ ही आप भारत के पहले उपराष्ट्रपति भी रहे। तथा सन 1962 से 1967 तक देश के दूसरे राष्ट्रपति बने।उनके राष्ट्र्पति के कार्य काल मे  भारत तथा चीन के साथ 1962 तथा 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुए।उनके राष्ट्रपति कार्यकाल की एक और भी रोचक तथ्य ये भी है कि उन्होंने अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में 5 प्रधानमंत्री भी देखे जो अपने आप मे एक विचित्र घटना है 1-जवाहर लाल नेहरू 2-गुलजारी लाल नन्दा(कार्यवाहक) 3-लाल बहादुर शास्त्री 4-गुलजारी लाल नन्दा(कार्यवाहक)5-इंदिरा गांधी।।

            डॉ0 सर्पल्ली राधकृष्णन उस ऐतिहासिक समारोह के भी गवाह रहे हैं ,जिसको प्राप्त करने के लिए लाखों भारतीय वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी,और वो ऐतिहासिक पल था 15 अगस्त 1947 से पहले 14 अगस्त की रात को  स्वतन्त्रता प्राप्ति होने की खुशी में संसद भवन में आयोजित सभा ।जिसमें मुखयतः संविधान सभा के प्रतिनिधि मौजूद थे।और देश के सभी राजनेता,स्वतन्त्रता सेनानी,प्रबुद्धजन,सहित्यकार उपस्थित थे।प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा अपनी किताब”भारत गांधी के बाद”(India After Gandhi) पेज 6 में उस दृश्य का वर्णन कुछ इस तरह लिखते हैं—-“बन्दे मातरम और ध्वज प्रस्तुतिकरण के बीच भाषण का दौर चला।उस रात बोलने वाले तीन मुख्य वक्ता थे इसमें से एक थे चौधरी ख़ालिकज्जमा जिनको  हिंदुस्तानी मुसलमानों के नुमाइंदगी के लिए चुना गया था—।दूसरे वक्ता के तौर पर दर्शनशास्त्र के मसहूर ज्ञाता डॉ सर्वपली राधाकृष्णन को चुना गया जो एक प्रसिद्ध वक्ता भी थे।राधकृष्णन ने पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता के बीच सामंजस्य के बिंदु खोजने की दिशा में काफी काम किया था।इस ऐतिहासिक समारोह में भारत के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था-‘मध्य रात्रि की इस बेला में जब पूरी दुनियां नींद के आगोश में सो रही है ,हिंदुस्तान एक नई जिंदगी और आजादी के वातावरण में अपनी आँख खोल रहा है”डॉ0 राधकृष्णन के जीवन पुंज की उपलब्धियों को एक माला के रूप में क्रमशः पिरोया जा सकता है—

जन्म–5 सितम्बर 1888

स्थान-तिरुतनी,तमिलनाडु

पिता-सर्वपल्ली वीरास्वामी

माता-सिताम्मा

प्रारंभिक शिक्षा-लुथर्न मिशन स्कूल

मैट्रिक परीक्षा–1902 प्रथम श्रेणी

विवाह-1903 में 16 वर्ष की आयु में।पत्नी का नाम सीवाकामू

कला स्नातक—1908 प्रथम श्रेणी।

 स्नातकोत्तर—-1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए.।

शिक्षक के रूप में–1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त। 1918 से 1921 तक मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे।

आक्सफोर्ड में—1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विस्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे।1953 से 1962 दिल्ली विश्वविद्यालय के चान्सलर रहे।

1946 में यूनिस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में चुने गए।

1931 से 1936 तक आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।

सोवियत संघ में भारत के राजदूत–1949 में

प्रथम उराष्ट्रपति बने——1952-1968

भारत रत्न–  ———– 1954

द्वितीय राष्ट्रपति बने—–14 मई 1962 -13 मई 1967

पुरस्कार और अलंकरण–––

1938––ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्त

1954––नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान “भारत रत्न”

1954––जर्मन”कला और विज्ञान विशेषज्ञ।

9161––जर्मन बुक वुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”

1962––5 सितम्बर को उनके जन्म दिन को भारत मे शिक्षक दिवस के रुप में घोषित ।

1963––”ब्रिटिश आर्डर ऑफ मेरिट”के का सम्मान

1968––साहित्य अकादमी द्वारा सम्मान

1975––अमेरिकी सरकार द्वारा “टेम्पलटन” पुरस्कार।इस पुरस्कार को पाने वाले प्रथम गैर ईसाई व्यक्ति ।

1989––ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा राधाकृष्णन की याद में “डॉ0 राधा कृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था”की स्थापना।

पुस्तकें––

इंडियन फिलासफी

द हिन्दू व्यू आफ लाइफ

रिलीजन एंड सोसाइटी

द भगवतगीता  द प्रिंसिपल ऑफ द उपनिषद, द ब्रहासूत्र,फिलॉसफी आफ़ रविन्दरनाथ टैगोर।

मृत्यु–– भारत का प्रचण्ड विद्वान डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन  के रूप में उगा सूरज 17 अप्रैल सन 1975 में 87 वर्ष की आयु में अस्त हो गया।उनके दर्शन और शिक्षा रूपी प्रकाश पुंज  से भारत ही नहीं अपितु विश्व भी अभी तक रोशन हो रहा है।उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि शिक्षकों के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की जाए ।क्योंकि कहावत है “शिक्षक उस मोमबती के समान है जो खुद जलकर औरों को रोशनी देता है”

आई0 पी0 ह्यूमन

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