कविता

ये मौसम भी बेईमान है

ये हवाएं भी बदचलन हैं ,
पहले जैसी चलती नहीं।
ये भी रुख बदल देती हैं,
हमारी बाते कहती नहीं।।

चलो इन हवाओं का रुख मोड़ दे,
और प्यार भरी बाते हम करे
कब ये रूख बदल दे अपना,
हमे पता लगने देती नहीं।।

बेबस हो जाती है धड़कने,
जब ख्याल मेंआ जाते हो ।
कहने को तो बहुत कहना है,
पर कुछ तुमसे कहती नहीं ।।

मांग लूं रब से यह मन्नत,
हर जन्म में तूही मिले ।
कर ली मिन्नते बहुत मैंने,
रब से इजाजत मिलती नहीं ।।

ये मौसम भी बेईमान है,
किसी की सुनता नहीं ।
प्यार के मौसम के हिसाब से,
अब ये ऋतुएं बदलती नहीं ।

चारो तरफ फैला है डर
प्यार अब कैसे करे कोई ।
ये हवाएं और ये फिजाएं ,
क्यो नही है समझती नहीं।।

ये लॉक डाउन भी अब,
कितना कमिना हो गया ।
डर के मारे मेरी महबूबा ,
घर से अब निकलती नहीं ।।

आर के रस्तोगी