आतंक पर लगाम बिना बातचीत का औचित्य नहीं

 

बीते हफ्ते शुक्रवार को रूस के उफा में हिंदुस्थानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपने समकक्ष पाक प्रधान नवाज़ शरीफ से हुई मुलाक़ात के कई गहरे अर्थ निकाले जा सकते हैं। modi nawazहालांकि शुक्रवार को दोनों की मुलाक़ात के बाद जारी साझा बयान में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं था किन्तु एक दिन बाद ही पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी और नवाज कश्मीर मुद्दे पर बैक चैनल डिप्लोमेसी अर्थात पर्दे के पीछे चलने वाली बातचीत, जिसका औपचारिक एलान नहीं होता; से बात करने पर राजी हो चुके हैं। उनके इस बयान ने इस बात की आशंका जता दी है कि बिना कश्मीर मुद्दे के सुलझे, दोनों देशों के बीच किसी भी स्तर की वार्ता बेमानी है। इससे पहले दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच एक घंटे से अधिक बातचीत हुई थी और कहा जा रहा था कि दोनों शांति और तरक्की पर सार्थक चर्चा हेतु संकल्पित हैं। दोनों ने ही आतंकवाद के सभी स्वरूपों की निंदा की और इस बुराई से निपटने के लिए कदम उठाने का निर्णय किया। यहां गौर करने योग्य तथ्य यह है कि यदि दोनों आतंकवाद की निंदा करते हैं और इससे निपटने के लिए कदम उठा सकते हैं तो उनका यह संकल्प यथार्थ के धरातल पर क्यों नहीं उतर पा रहा? दरअसल पाकिस्तान में सरकार पोषित आतंकवाद को सेना का मजबूत समर्थन है। पाकिस्तान सरकार यदि इसकी नकेल कसना भी चाहे तो सैन्य ताकत के पूर्व के कटु अनुभवों को देखते हुए उसे अपने कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। हालांकि वैश्विक दबाव को देखते हुए सरकार की थोड़ी-बहुत सख्ती दिखाई देती है किन्तु यह हिंदुस्थानी हितों को देखते हुए नाकाफी ही है। ज़रा सोचिए, जिस दिन रूस में मोदी-नवाज़ की मुलाक़ात चल रही थी, हमारे सैनिक पाक सेना समर्थित आतंकवादियों से कश्मीर में लोहा ले रहे थे। इन हालातों में सार्थक वार्ता का क्या औचित्य?

हालांकि सरताज अजीज के दावे के उलट राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि मोदी-नवाज मुलाकात में कश्मीर की बात नहीं हुई, संदेह को जन्म दे रहा है। चूंकि पाकिस्तान ने साफ़ कर दिया है कि बिना कश्मीर मुद्दे के हिन्दुस्थान से बात करने का औचित्य नहीं कहीं न कहीं कुछ छुपाने की ओर इंगित कर रहा है। पाकिस्तान के लिए हमसे बात आगे बढ़ाने को तीन अहम मुद्दों पर चर्चा और समाधान जरूरी है। पहला मुद्दा है- कश्मीर। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच 1947 से मतभेद हैं। 1947, 1965, 1971 में जंग और 1999 में कारगिल युद्ध हो चुका है। कश्मीर का 43% हिस्सा हिन्दुस्थान में है। 37% हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। बाकी हिस्सा अक्साई चीन है जो चीन के आधिपत्य में है। दूसरा अहम मुद्दा है- सर क्रीक। यह 96 किलोमीटर लंबी समुद्री रेखा है जो पाकिस्तान के सिंध और हिन्दुस्थान के गुजरात को अलग करती है। यहां सीमा-रेखा तय नहीं है। इस वजह से दोनों तरफ के मछुआरों को सेना कई इलाकों से गिरफ्तार कर लेती है। तीसरा मुद्दा जो दोनों देशों के बीच अहम है, वो है सियाचिन। 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस ग्लेशियर में सीमा को लेकर विवाद है। 1984 से यह हिस्सा हिन्दुस्थान के स्वामित्व में है लेकिन पाकिस्तान इसे अपना बताता है। ऑक्सीजन की कमी और बेहद ठंड के कारण यहां कई जवानाें की मौत हो जाती है। यहां सेना का एक दिन का खर्च 5 करोड़ रुपए के करीब है। यदि मुंबई हमले को भी बातचीत के एजेंडे में शामिल कर लिया जाए तो यह भी एक संवेदनशील मुद्दा है। अब आप स्वयं अंदाजा लगाइए कि बिना इन ज्वलंत मुद्दों के सुलझे; दोनों देश आतंकवाद के खात्मे को लेकर कैसे संकल्पित हो सकते हैं? यह ख्याल दिल को तसल्ली देने के लिए अच्छा है मगर इसका हकीकत से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है।
वैसे मोदी-नवाज़ के बीच हुई मुलाक़ात बेमानी भी नहीं है। पाकिस्तान पर हमेशा से शक रहा है और यह देखना होगा कि इस बार भी पाकिस्तान का नेतृत्व कितना गंभीर है? हालांकि इसकी संभावना कम ही है क्योंकि सेना के दबाव में पाक सरकार हिन्दुस्थान से अमन-चैन के रिश्ते कायम नहीं कर सकती। ऐसे में हिन्दुस्थान यदि अपनी लीक पर कायम रहता है कि बिना आतंकवाद के खात्मे के बातचीत मंजूर नहीं तो इससे दुनिया में यह संदेश जाएगा कि हिन्दुस्थान की सार्थक और दोस्ताना पहल के बावजूद पाकिस्तान सुधरने को तैयार नहीं है। हमारी यह ताकत पाकिस्तान को वैश्विक परिदृश्य में अलग-थलग कर देगी और उसपर चौतरफा दबाव भी बनेगा। अगले साल इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मलेन से पहले पाकिस्तान के कदम पर भी गौर करना होगा। कुल मिलाकर मोदी-नवाज़ की मुलाक़ात पर देश को बहुत उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के लिए एक अच्छी बात यह रही कि 13 महीने में मोदी और नवाज 3 बार मिले लेकिन इस दौरान पाकिस्तान ने 500 से ज्यादा बार सीजफायर तोड़कर सीमा पर गोलीबारी की; यानि अच्छाई पर बुराई हावी रही है। ऐसे में हम पाकिस्तान के क्या और कितनी उम्मीद रखें?

Previous articleस्मित नयन विस्मृत बदन !
Next article43 साल…बेमिसाल..
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,851 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress