राजनीति

मोदी को टोपी पहनाने की राजनीति

बीते दिन देश के महा महिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की इफ्तयार दावत थी, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में ही मौजूद थे और मौजूद ही नहीं इफ्तयार दावत से चंद फासले की दूरी पर कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे थे। तभी यह मसला तेजी से उठा और सवाल खड़े किए गए कि आखिर राष्ट्रपति की इस इफ्तयार दावत में प्रधानमंत्री ने जाना क्यों उचित नहीं समझा और आरोप यह भी लगाया गया कि अपने आप को कट्टर हिंदुवादी नेता साबित करने के लिए मोदी ने जान-बूझकर इफ्तयार से दूरी बनाने का फैसला लिया। बहरहाल विपक्षी दल कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने इस मसले पर राजनैतिक रूप से मोदी को टोपी पहनाने की भरसक कोशिश करते हुये मुसलमानों के दिलों में जहर भरने का हर संभव प्रयास किये लेकिन मसला जितना बड़ा नहीं है उस मसले को विपक्षी दलों ने जिस लहजे से परोसने की कोशिश की वह कोशिश कितनी सफल हुई यह तो बताया नहीं जा सकता लेकिन दिलों की खाईयों को भरने की वजाय देश की राजनैतिक पार्टियां अपने राजनैतिक लाभ के लिये दिलों की खाईयों को और गहरा करें तो इससे अफसोस जनक बात भला और क्या हो सकती है। यूं तो प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी अपने दिल में मुसलमानों के प्रति द्वेश रखते हुये इफ्तयार में शामिल होने का ढोंग कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा न करते हुये मुसलमानों के प्रति ईमानदारी से प्रयास करने की ज्यादा जरूरत समझी। बजाय इस तरह की मजहबी राजनीति में पडऩे की। हालांकि संदेश जो भी गया हो विपक्षी दलों ने यही कोशिश की कि देख लो भारत के मुसलमानों एक प्रधानमंत्री जो सब को साथ लेकर सब का विकास करने की बात करता है वह दरअसल आपके (मुसलमानों) के कितने साथ है। यह सब कुछ राजनैतिक रूप से आपके समक्ष आया है। आपने महसूस किया और अपने-अपने तरीके से इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी। पहले गुजरात के एक सम्मेलन में मुसलमान मेहमान से टोपी पहनने से इंकार करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने यहां भी बिना कुछ कहे सब कुछ साफ करने की कोशिश की। मेरे अनुसार एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री होने का किरदार अदा कर रहे नरेंद्र मोदी ने इन सब बातों में पडऩे से बेहतर मुसलमानों के हित में कुछ करना जरूरी समझा है। एक जानकारी आप तक पहुंची होगी और यह देखने में आया होगा कि एक हिंदु छवि को लेकर सत्ता के सिरमौर बने नरेंद्र मोदी ने कभी भी मुस्लिम समुुदाय से भेदभाव परिलक्षित नहीं किया। यह अपने आप में सब कुछ समझ लेने जैसा है। जानकारी यह भी आ रही है कि पिछली सरकारों की तुलना में मोदी सरकार माइनर कम्युनिटी खासकर मुस्लिम समुदाय को शिक्षित और आत्म निर्भर बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। इसके लिए सरकार ने कई योजनाओं और नीतियों का निर्धारण किया है। कुछ वर्षों में इसके परिणाम सामने होंगे और जब मुस्लिम समुदाय के लोग अपने ऊपर हुये इन कार्यों को मेहसूस करेंगे तब शायद वह समझ सकें कि अब तक जो होता आया वह सही था या अब जो कुछ हुआ वह सही है। मोदी की प्रशंसा करने का मेरा कतई मन नहीं है परंतु सच स्वीकार्य करना जरूरी समझते हुये मैं यह कह सकता हूं कि इस मसले पर राजनीति की कतई आवश्यकता नहीं थी और तो और इस मुद्दे को लेकर मोदी को घेरने की कोशिश देना उन तमाम विपक्षी दलों को कुछ हासिल होने की बजाय एक बड़े हिंदु वर्ग का छिटक जाना जरूर हासिल हुआ। मोदी का पिछले दिनों मुस्लिम समुदाय से यह कहना कि आपके इस प्रधान सेवक की रात 12 बजे भी जरूरत होगी तो वह हाजिर होंगे। क्या एक इफ्तयार में न जाने से उनका यह बयान झुठला गया ऐसा कहना पूरी तरह से आधार हीन होगा। दरअसल मोदी ने जिस अंदाज और लहजे में मुस्लिम समुदाय से उनके साथ खड़े रहने का बयान जारी किया है मुझे लगता है कि वह इस बयान पर हमेशा अडिग रहेंगे और समुदाय के साथ कभी भेदभाव-पक्षपात नहीं होगा। बहरहाल मोदी को टोपी पहनाने की राजनीति किस नीति से किस पार्टी के हिस्से में बतौर नफा कितनी बैठी यह तो आने वाला कुछ समय सामने लायेगा।
अतुल गौड़