राजनीति

आजम खान बतायें: हिन्दुओं की बात सम्प्रदायिक और कट्टरपंथी मुस्लिम की

azam khanअरूण पाण्डेय
बात हिन्दुत्व के पुरोधा अशोक सिंधल के जन्मदिन की है उस दिन उनके जीवन पर लिखी किताब को प्रकाशित किया जाना था और मंच पर सिंधल के गुरू के अलावा भारत सरकार के केन्द्रीय मंत्री राजनाथ , हर्षवर्धन समेत कई मंत्री उपस्थित थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के सर्वसंध चालक मोहन भागवत , साध्वी ऋतंम्भरा भी मौजूद थे। देश से आये तमाम साधु ,संत मौजूद थे । उस समय एक बात को लेकर हलचल चल रही थी कि भारत सरकार, हिन्दुत्व के पुरोधा सिंधल को लेकर किस तरह का सोच रही है। जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो राजनाथ जी ने इस बहस पर विराम लगाया यह कहते हुए कि हिन्दू की एक ऐसी कौम है जो दुश्मन को भी अपने दरवाजे पर खडा होने देती है और उसका स्वागत , सत्कार करती है । यह हमारे कर्म ही है जो संस्कार बनकर विश्व को रोशन कर रहें है इससे किसी को गुरेज नही होना चाहिये। फिर भी हिन्दुत्व की बात, विचारधारा की बात हो रही है यह ठीक नही है। बात थम गयी और राजनाथ अपनी बात बेबाकी से कहकर चले गये। इसके बाद फिर नयी बात चल पडी कि सरकार है, संघ व संत है और विहिप के कदावर नेता भी मौजूद है , वैसे भी जन्म दिन पर तोहफे देने का रिवाज है तो सभी मिलकर अशोक सिंधल को तोहफे में राममंदिर क्यों नही दे देते। यह वह सवाल था जिसका जबाब अशोक सिंधल को जीतेजी मिलना चाहिये था कि जिस राममंदिर के लिये उन्होने अपना सबकुछ हनुमान की तरह त्याग दिया , वह वहीं बनेगा की नही लेकिन नही मिला और जन्मदिन के कुछ दिनों बाद ही उनका बेदांता अस्पताल में उनका निधन हो गया।
बात यहीं खत्म हो जाती तो ठीक था लेकिन इसबात को खीचा जा रहा है और मुस्लिमों के रक्षक व उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान ने एबीवीपी पर अपने कार्यक्रम के दौरान कहा कि यदि अगर जायज जमीन पर मस्जिद बनी है तो उसे पाक ही समझा ही समझा जाना चाहिये और यहंा यह बता देना भी उचित होगा कि इसी राममंदिर -बाबरी मस्जिद विवाद के एक पक्षकार का कहना था कि हिन्दूओं को राममंदिर इसलिये भी बनाने देना चाहिये क्योकि वह उनके पूज्य का जन्म स्थान है। जिसका अर्थ यह निकलता है कि वह जमीन नापाक है,अब नापाक का फार्मूला क्या है यह या तो पक्षकार बता सकते है या फिर आजमखान जो सरकार में मंत्री है लेकिन यह बात सत्य है कि राममंदिर बन गया तो मुस्लिम नेताओं के पास कौम को बरगलाने का कोई मामला नही रह जायेेगा। इसके बाद कांग्रेस ने इस बात का विरोध किया और मुस्लिमों का रहनुमा बनते हुए पूरे देश में आदंोलन चलाया । आखिर कार रामंमदिर नही बना और समस्या जो खत्म हो रही थी उसे विवादों में बने रहने दिया। इसके बाद मुलायम सिंह , मायावती कांग्रेस के पीछे हो लिये और मुस्लिमों के वोटों पर अपना अधिकार जमाने के लिये हिन्दूओं को अपने ही राज्य में हाशिये पर ला दिया। मानों यह उनका राज्य न हो।
अब सवाल यह नही कि यह देश या राज्य किसका है, आजम खान की बात ही मान लेते है कि यह देश तेरा है न मेरा है , अभी न समझे तो नुकसान हमसब का है। किन्तु यह बात आजम साहब ही नही जानते कि वह क्या कह रहें है एबीवीपी का कार्यक्रम प्रायोजित था लेकिन आजम खान के जबाब कई सवालों को जन्म दे गये जिसकी प्रासंगिकता ही विवादों में घिरी है। उन्होने कहा कि कारगिल की लडाई मुस्लिमों ने जीती और जिस अधिकारी ने जीती वह मुस्लिम था। यहां यह बात देना होगा कि आजम खान जी सेना देश की होती है और वहां कोई हिन्दू मुस्लिम नही होता , वास्तव में कुछ लोग आज भी समझ से परेय है। कब क्या बोलते है और उसका क्या मतलब होता है यह बात आज तक आजमखान नही समझ सके। वह यह भी नही जानते कि जिस मुसलमान ने कारगिल की जंग जीती, वह भारतीय है और धार्मिक आस्था के चलते मुसलमान बना है । अरब से आया होता तो वह भी वैसा ही बोलता जैसा आजम जी बोलते है।
बात निकली है तो यह भी बता दें कि आजम खान साहब इमाम को नही मानते , जब ओबैदुल्लाह कुरैशी उत्तर प्रदेश में आकर अपने को मुसलमानों का हितैशी बताकर चुनाव लडने की बात करते है तो उनको हैदराबाद में बिरयानी खाने की सलाह देते है और खुद इस्लामिक नियमों का पालन नही करते। वह जब मुल्क या घर की बात आती है तो सभी अपनी जान देने को तैयार हो जाते है लेंकिन जब उनकी पार्टी की बात आयी तो नेताजी पर अपना सबकुछ दे बैठे। जिनकी वजह से पार्टी है और फिरका मुलायम का साथ दे रहा है, वहां उनकी जगह पर वंशवाद पनप रहा है और जुबानी हमलों का दौर चल रहा है।
खैर देवांग ने कुछ इस कार्यक्रम में किया हो या न किया हो, एक काम जरूर किया कि आजम को सडक पर खडा कर दिया , जहां से आजम को खुद तय करना है कि वह किधर जाये । एक सवाल के जबाब में आजम ने कहा कि वह चार बार जीतकर इसलिये आये है क्योंकि वह सम्प्रदायिक नही है , तो फिर मोदी को सम्प्रदायिक कहकर हर चुनाव में क्यों रोते है जबकि वह चार बार मुख्यमंत्री रहे है और अब प्रधानमंत्री हैं। अब उनसे यह पूछा जाना चाहिये कि हिन्दू की बातें करना सम्प्रदायिकता है तो मुस्लिमों व सिर्फ मुस्लिमों की बातें करना सम्प्रदायिकता की श्रेणी में नही आता। एक एखलाख व एहसान जाफरी पर हंगामा होना चाहिये , सबकुछ होना चाहिये बाकी धर्मावलंबियों पर क्यों नही । आखिर कबतक यह सब चलेगा ? इसका अब अंत तो होना ही चाहिये।