सुप्रीम कोर्ट का मनोबल बढ़ाने वाला फैसला !

हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक व बड़े फैसले में केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में महानिरीक्षक(आईजी) स्तर तक के आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति कम करने का निर्देश दिया है, ताकि कैडर अधिकारियों को अधिक अवसर मिल सकें। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कैडर अधिकारिक के लिए मनोबल बढ़ाने वाला फैसला कहा जा सकता है। पाठकों को यहां यह बताता चलूं कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि केंद्रीय सशस्त्र बलों (सीएपीएफ) में कैडर अधिकारियों की पदोन्नति में विलंब से उनके मनोबल पर ‘प्रतिकूल प्रभाव’ पड़ सकता है। गौरतलब है कि माननीय कोर्ट ने यह बात कही है कि जब सीएपीएफ को ओजीएएस घोषित किया गया है, तो ओजीएएस को उपलब्ध सभी लाभ स्वाभाविक रूप से सीएपीएफ को मिलने चाहिए, यह नहीं हो सकता कि उन्हें एक लाभ दिया जाए और दूसरे से वंचित रखा जाए।यह बहुत ही काबिले-तारीफ है कि अब केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ओजीएएस(संगठित समूह ए सेवा) के लिए बाकायदा छह माह की समय-सीमा भी तय कर दी गई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सीएपीएफ अधिकारियों की पदोन्नति और उनको फाइनेंशियल प्रोफिट(लाभ) की उम्मीदें बंध गई हैं।इस क्रम में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने चार वर्ष से लंबित कैडर रिव्यू प्रक्रिया, उक्त अवधि में ही पूरी किए जाने के आदेश दिए हैं। यहां पाठकों को यह बताता चलूं कि 3 सितंबर 2015 के दिन अदालत ने अपने फैसले में सीएपीएफ को 1986 से ‘संगठित समूह ए सेवा’ घोषित कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें इसका फायदा नहीं मिल पा रहा था। गौरतलब है कि  सीएपीएफ (केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल) में ओजीएएस का मतलब है ‘संगठित समूह ए सेवा।’ दरअसल,ओजीएएस एक ऐसा संगठन है जो भारत सरकार द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए बनाया गया है, जैसे कि आईएएस, आईपीएस, आईआरएस आदि। वास्तव में, सीएपीएफ को ओजीएएस का दर्जा मिलने का मतलब है कि सीएपीएफ के अधिकारी भी आईएएस, आईपीएस, आईआरएस और अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों के समान लाभ प्राप्त करेंगे, जैसे कि पदोन्नति और गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 3 जुलाई 2019 को, सर्वोच्च न्यायालय ने सीएपीएफ को ओजीएएस का दर्जा देने का आदेश दिया था। बहरहाल,सुप्रीम कोर्ट ने यह बात मानी है कि सीएपीएफ अधिकारी, देश की सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और वे कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। दरअसल ,अदालत ने यह बात कही है कि ‘देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के साथ-साथ हमारी सीमाओं की रक्षा करने और देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में उनकी समर्पित सेवा को अनदेखा या अनदेखा नहीं किया जा सकता है।’ इसके बावजूद, सीएपीएफ के कैडर अधिकारी, अपने करियर में बहुत अधिक ठहराव का सामना कर रहे हैं। अदालत ने इन बलों में बतौर प्रतिनियुक्ति बाहर से आने वाले अधिकारियों की संख्या (सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड के स्तर तक) को धीरे-धीरे कम किए जाने के साथ ही उनकी सेवा अवधि अधिकतम 2 वर्ष तक सीमित करने की बात भी कही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस ग्रेड में आईजी(महानिरीक्षक)रैंक वाले अधिकारी आते हैं। यानी कुछ वर्षों के दौरान इन बलों में आईजी रैंक तक आईपीएस प्रतिनियुक्ति को खत्म किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा है कि प्रतिनियुक्ति पदों में यह कमी सीएपीएफ कैडर अधिकारियों को बलों के प्रशासनिक कामकाज में अधिक भागीदारी करने की अनुमति देगी और लंबे समय से चली आ रही शिकायतों का समाधान करेगी। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आदेश दिया है कि सभी सीएपीएफ में कैडर समीक्षा, जो वर्ष 2021 में होनी थी, आज से छह महीने की अवधि के भीतर पूरी की जाए। हालांकि, गृह मंत्रालय ने सीएपीएफ कैडर अधिकारियों की याचिका का विरोध करते हुए यह बात कही है कि आईपीएस अधिकारी पदानुक्रम का एक ‘महत्वपूर्ण हिस्सा’ हैं। मंत्रालय ने यह बात कही कि चूंकि ये बल विभिन्न राज्यों में तैनात हैं, इसलिए आईपीएस अधिकारी सीएपीएफ के प्रभावी संचालन के लिए जरूरी हैं, जिससे संबंधित राज्य सरकारों और उनके संबंधित पुलिस बलों के साथ सहयोग की सुविधा मिलती है, जिससे संघीय ढांचे को संरक्षित किया जा सकता है। अंत में यही कहूंगा कि शीर्ष अदालत ने सीएपीएफ में महानिरीक्षक स्तर तक के आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति दो वर्षों में ‘उत्तरोत्तर’ करने का आदेश दिया है, ताकि कैडर अधिकारी अपने जायज हक से वंचित न हों और उन्हें पदोन्नति के अधिक अवसर मिलें। यह काबिले-तारीफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) को संगठित समूह-ए सेवाओं (ओजीएएस) का हिस्सा माना जाना चाहिए, न केवल गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) प्रदान करने के उद्देश्य से, बल्कि कैडर समीक्षा सहित सभी कैडर-संबंधी मामलों के लिए भी।वास्तव में, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अदालत के आदेश से सीएपीएफ कर्मियों को बड़ी राहत मिलेगी, जो उच्च स्तर पर आइपीएस से बड़ी संख्या में प्रतिनियुक्ति के कारण अपने करियर में ठहराव का आरोप लगा रहे थे। उम्मीद की जा सकती है कि इस फैसले से पांचों केंद्रीय पुलिस बलों-सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी के कैडर अफसरों को उनका जायज हक (पदोन्नति, वित्तीय लाभ आदि) मिल सकेगा और उनकी कर्तव्य भावना और मजबूत हो सकेगी।

सुनील कुमार महला

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