लेख

मानवता के नाम एक सम्मान -नोबेल शांति पुरस्कार 2025

हाल ही में वर्ष 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार 58 वर्षीय मारिया कोरिना मचाडो(वेनेज़ुएला) को दिया गया है। पाठकों को बताता चलूं कि मारिया कोरिना मचाडो वेनेज़ुएला की एक प्रमुख राजनीतिक नेता, इंजीनियर और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।उन्हें ‘लोकतंत्र की लौ जलाए रखने वाली महिला’ और ‘विरोधी एकजुटकर्ता’ कहा गया है। उन्होंने वर्षों से अपने देश में तानाशाही शासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया है। वेनेज़ुएला में लोकतंत्र, मानवाधिकार और शांति की स्थापना के लिए (अहिंसक संघर्ष के लिए) उन्हें यह पुरस्कार दिया गया है।मचाडो को नोबेल दिया जाना वास्तव में बहुत ही सुखद व स्वागत योग्य है। गौरतलब है कि वेनेज़ुएला में एक लंबे समय से तानाशाही शासन था,मचाडो ने इस तानाशाही शासन के विरोध में लोकतंत्र बहाली का अभियान चलाया। दरअसल, उन्होंने महिलाओं और युवाओं को राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं उन्होंने मानवाधिकार हनन, मीडिया दमन और चुनावी धांधली के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार अपनी आवाज उठाई। उन्हें कई बार गिरफ़्तार और धमकाया गया, लेकिन उन्होंने अहिंसा और जनशक्ति के बल पर अपने संघर्ष को जारी रखा।उन्हें राजनीतिक उत्पीड़न तक का सामना करना पड़ा, तथा उन्हें संसद से बरखास्त किया गया और उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया।नोबेल समिति ने उनके बारे में यह बात कही है कि -‘मारिया कोरिना मचाडो ने साहस, नैतिक दृढ़ता और अहिंसक संघर्ष के माध्यम से वेनेज़ुएला में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की लौ जलाए रखी।’ बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि यह पुरस्कार लैटिन अमेरिका में लोकतंत्र के लिए लड़ने वालों के लिए एक प्रेरणा है। मचाडो ने यह दिखाया कि शांति और परिवर्तन के लिए हिंसा नहीं, बल्कि साहस और सत्य की आवश्यकता होती है।मचाडो सदैव शांति और लोकतंत्र के पक्ष में समर्पित रहीं हैं। यदि हम यहां पर उनके प्रारंभिक जीवन और शिक्षा की बात करें तो मारिया कोरिना मचाडो का जन्म 7 अक्टूबर 1967 को वेनेजुएला में हुआ था। उन्होंने एंड्रेस बेलो कैथोलिक यूनिवर्सिटी से औद्योगिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में वित्त विषय में स्नातकोत्तर किया। उनके राजनीतिक जीवन और संघर्ष की बात करें तो वे वेनेजुएला में लोकतंत्र-सपोर्टर और विपक्ष की प्रमुख नेता हैं। उन्होंने 2002 में सुमाते नामक नागरिक समूह की सह-स्थापना की, जो चुनाव की निगरानी और मताधिकार की रक्षा करने के लिए काम करती थी। 2013 में उन्होंने वेंटे वेनेजुएला नामक राजनीतिक दल की स्थापना की और इसका नेशनल समन्वयक बनीं। 2011–2015 के बीच वह वेनेज़ुएला की नेशनल असेंबली (संसद) की सदस्य भी थीं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2023 की विपक्षी प्राथमिक चुनावों में उन्होंने स्पष्ट बहुमत से जीत हासिल की, लेकिन 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें प्रत्याशी बनने से रोका गया।जब उन्हें चुनाव लड़ने से रोका गया, उन्होंने एडमंडो गोंजालेज उरुतिया का समर्थन किया, जो बाद में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। बहुत कम लोग जानते होंगे कि मचाडो को ‘आयरन लेडी’ की उपाधि दी गई है, जो उनके दृढ़ और अडिग नेतृत्व को दर्शाती है। जिस दौर में अधिकतर सत्ताधारी नेता तानाशाही करने लगे हैं, उस दौर में मारिया जैसे कुछ स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता भी हैं, जो लोकतंत्र का झंडा बुलंद किए हुए हैं।मचाडो को नोबेल पुरस्कार दिए जाने से दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों को निश्चित ही बल मिलेगा, क्यों कि उन्होंने अपनी लड़ाई लोकतंत्र को बचाने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से लड़ी। उनको पुरस्कार दिए जाने से विशेष रूप से अमन-चैन के पक्ष में महिलाओं का मनोबल भी कहीं न कहीं बढ़ेगा। पाठकों को बताता चलूं कि मचाडो ने इस पुरस्कार को वेनेजुएला के लोगों की स्वतंत्रता की लड़ाई और बलिदान की मान्यता बताया है, जिन्होंने तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष जारी रखा।उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रति भी अपना आभार व्यक्त किया है, जिन्होंने कठिन समय में उनके संघर्ष का समर्थन किया और लोकतंत्र की बहाली के लिए अपना समर्थन दिया।वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना ने 10 अक्टूबर (शुक्रवार को) जब नोबेल सम्मान की खबर सुनी, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने पूरा श्रेय स्वयं न लेते हुए कहा कि यह नोबेल शांति पुरस्कार पूरे आंदोलन और समाज की जीत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि उन्होंने अपने सम्मान का श्रेय पूरे समाज को दिया है और यही वास्तव में एक सच्चे नेता की पहचान है। उधर,दूसरी ओर,अमेरिकी राष्ट्रपति खुलकर शांति का नोबेल मिलने की बात कह रहे थे, जैसा कि उन्होंने बीते कुछ समय में कथित रूप से करीब सात युद्धों को समाप्त कराया है। पाठकों को बताता चलूं कि इस क्रम में ट्रंप के समर्थकों ने नोबेल न मिलने पर अपनी नाराजगी का भी इजहार किया है। व्हाइट हाउस ने अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया में यहां तक कहा है कि नोबेल समिति ने शांति पर राजनीति को प्राथमिकता दी है। बहरहाल, गौरतलब है कि नोबेल की घोषणा से ठीक पहले इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम(सीजफायर) और एक संभावित शांति समझौते के साथ इन अटकलों को बल मिला था कि ट्रंप को नोबेल मिल सकता है तथा रूस, इजरायल, पाकिस्तान, अजरबैजान, आर्मेनिया, थाईलैंड और कंबोडिया सहित कई देशों ने ट्रंप का पक्ष लिया था, लेकिन नोबेल समिति ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया। हाल फिलहाल, यहां यह उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार हेतु 338 नामांकन प्राप्त हुए थे, जिनमें 244 व्यक्ति और 94 संगठन शामिल थे। बहरहाल, आज जब संपूर्ण विश्व हिंसा, युद्ध और विभाजन की आग में झुलस रहा है। ऐसे में मानवता को एकता, सह-अस्तित्व और करुणा की शरण की आवश्यकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि शांति ही वह पुल है, जो इस विश्व को विनाश से बचा सकता है। यह बहुत अच्छी बात है कि दुनिया में सवा तीन सौ से अधिक लोग और संगठन शांति प्रयासों में लगे हैं, और उनके प्रयासों में कमी नहीं आनी चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने विश्व शांति की दिशा में अच्छे प्रयास किए हैं और उन्हें यह चाहिए कि वे इस दिशा में और तेजी तथा ईमानदारी लाएं।विशेषकर उन्हें यह सोचना चाहिए कि पाकिस्तान जैसे आतंकी पोषक देश की निगाह में शांति दूत होना वास्तव में खुद को धोखा देने के समान है। बहरहाल, वेनेजुएला जैसे देश में जहां तानाशाही ताकतें लोकतंत्र को उभरने का कोई मौका नहीं देना चाहतीं, वहां मचाडो जैसी विपक्ष को एकजुट करने वाली शख्सियत को शांति पुरस्कार के लिए चुनना निस्संदेह स्त्री के संकल्प, सत्य और लोकतंत्र का सम्मान है।मचाडो की शांति नोबेल जीत मानवता की जीत का प्रतीक है।यह संवाद, सद्भाव और सहयोग की नई दिशा दिखाती है। वास्तव में,उनकी जीत विश्व में अहिंसा और सह-अस्तित्व के मूल्यों की पुनर्स्थापना है।दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल सम्मान भले न मिल सका हो, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ दशकों में यह पहला अमेरिकी प्रशासन है, जिसने विश्व को किसी नए युद्ध या सैन्य कार्रवाई में नहीं झोंका है। अमेरिका ने युद्धरत देशों पर आर्थिक  दबाव बनाकर कहीं न कहीं युद्धों को विराम देने की भरपूर व बड़ी कोशिशें की हैं।


सुनील कुमार महला