लेख

आखिर देश में कब तक बनते रहेंगे ‘लाक्षागृह’ और मरते रहेंगे निर्दोष



ज्ञान चंद पाटनी


महाभारत में जिक्र आता है कि पांडवों को खत्म करने के लिए दुर्योधन ने ‘लाक्षागृह’ का निर्माण करवाया था। विदुर का संकेत समझकर वे तो वहां से बच निकले थे लेकिन प्रशासनिक लापरवाही, पैसा कमाने की भूख और जन सामान्य में जागरूकता की कमी के कारण देश में जगह—जगह बने ‘लाक्षागृह’ लोगों की जान ले रहे हैं। इस बार पर्यटन के लिए विख्यात गोवा के ‘लाक्षागृह’ में 25 जानें गईं। गोवा का नाइट क्लब अग्निकांड केवल एक स्थानीय त्रासदी नहीं है बल्कि एक बार फिर पूरे देश के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है। इस हादसे से स्पष्ट हो गया है कि हम सुरक्षा व्यवस्था के प्रति कितने लापरवाह हैं। व्यापार करने वालों को आर्थिक लाभ की तो चिंता है लेकिन वे सुरक्षा से जुड़े नियमों की पालना नहीं करना चाहते। इस तरह वे लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं। गोवा में नाइट क्लब के अंदर लगी आग की वजह से 25 लोगों की जान चली गई। यह हादसा हमारी व्यवस्था और मानकों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

हादसे के बाद यह बात सामने आई है कि नाइट क्लब का प्रवेश द्वार असामान्य रूप से संकरा था, जिसके कारण आग लगने के बाद लोगों के सुरक्षित बाहर निकलने में बाधा आई। साथ ही क्लब में ताड़ के पत्तों से अस्थाई संरचना बनाई गई थी। इससे आग को तेजी से फैलने का रास्ता मिला। इससे पता चलता है कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी हुई और यह लापरवाही भारी पड़ी। सरकार ने हादसे के बाद एक विशेष जांच समिति का गठन किया है, जो अग्निकांड के कारणों और जिम्मेदारों की शीघ्र पहचान करेगी। यह समिति न केवल प्रशासनिक कमी को उजागर करेगी, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस सुझाव भी देगी। हर मृतक के सबसे करीबी रिश्तेदार को 5 लाख रुपए और घायलों को 50 हजार रुपए की सहायता राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण फंड से देने की घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा है कि किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और दोषी अधिकारियों तथा क्लब मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। कहीं भी होने वाले हादसे के बाद इसी तरह के बयान सामने आते हैं लेकिन ठोस कदम नहीं उठाए जाते। इसलिए ऐसे हादसों पर भी अंकुश नहीं लगता।

यह दावा करना कि नाइट क्लब के संचालक और स्टाफ की लापरवाही के कारण ही नाइट क्लब ‘लाक्षागृह’ बना, गलत होगा। इसके लिए नियामक एजेंसियों की लापरवाही भी जिम्मेदार है। क्लबों को बिना उचित जांच के लाइसेंस जारी कर दिया जाता है, मुनाफे के नाम पर व्यवसायी सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देते हैं। पुलिस, अग्निशमन विभाग और स्थानीय प्रशासन से जुड़े अधिकारी इन स्थानों का नियमित निरीक्षण नहीं करते। इससे समय रहते सुरक्षा कमियों की तरफ ध्यान नहीं जाता और हादसा हो जाता है।

इस घटना से सबक लेना होगा कि सार्वजनिक स्थानों पर विशेष रूप से भीड़ वाली जगहों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम बनाए जाएं और उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए। सिर्फ कड़े फायर सेफ्टी मानकों को अपनाना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि व्यक्ति स्तर पर जागरूकता, प्रशिक्षित स्टाफ और आपातकालीन व्यवस्थाएं भी पूरी होनी चाहिए। साथ ही, सामुदायिक सहभागिता और स्थायी निगरानी तंत्र भी आवश्यक हैं।

देश में कहीं न कहीं आग लगने की घटना सामने आती ही रहती है। हाल ही राजस्थान की राजधानी जयपुर स्थित सवाई मान सिंह अस्पताल के ट्रोमा सेंटर के आईसीयू में लगी आग दिल दहलाने वाली थी। इसी तरह दो वर्ष पूर्व गुजरात के राजकोट का  गेमिंग जोन अग्निकांड भी भुलाया नहीं जा सकता। धार्मिक स्थल हो या बहुमंजिला इमारत, अस्पताल हो या स्कूल, मैरिज गार्डन हो या गेम जोन, सिनेमा घर हो या  नाइट क्लब,कहीं भी लोगों की जान सुरक्षित नहीं है। बार-बार हो रहे ऐसे हादसे इस बात की गवाही देते हैं कि व्यवस्थागत स्तर पर सुधार की तत्काल जरूरत है। यदि हम इन चेतावनियों को अनसुना करते रहेंगे तो भविष्य में और भी बड़े हादसे हो सकते हैं।

 सरकार को चाहिए कि वह अपने सभी विभागों को यह स्पष्ट संदेश दे कि सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस दिशा में सख्त कानूनों एवं स्वचालित निगरानी तंत्र का निर्माण किया जाए। इसके साथ ही, फायर फाइटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाना राज्य सरकारों की प्राथमिकता हो। उपकरणों की नियमित जांच और फ्यूल की उपलब्धता सुनिश्चित करना अनिवार्य है, क्योंकि फायर एंड सिक्योरिटी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार भारत में अब भी 96 प्रतिशत फायर स्टेशन जरूरी संसाधनों से वंचित हैं।
 
  हादसा होने पर अफसोस व्यक्त करना और दोषियों को सजा देना ही समाधान नहीं है। त्रासदी से पहले सक्रियता, निरंतर निगरानी और जन जागरूकता से ही हम सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं। गोवा के इस अग्निकांड ने एक बार हमें बाध्य किया है कि हम अपने शहरों, सार्वजनिक स्थानों और मनोरंजन स्थलों को ‘लाक्षागृह’ बनने से रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। सार्वजनिक व निजी दोनों क्षेत्रों में आपातकालीन सेवाओं का समन्वय बेहतर बनाएं। लोक प्रशासन, अग्निशमन विभाग, पुलिस और व्यवसायियों के बीच सामंजस्य बनाकर ही हम सुरक्षा के उच्च मानक स्थापित कर सकते हैं और  ‘लाक्षागृहों’ से लोगों की जान बचा सकते हैं।

ज्ञान चंद पाटनी