आखिर फिनलैंड की तरह हम खुश क्यों नहीं हुए ?

जीवन फूलों की सेज नहीं है। यहां यह पल कहीं न कहीं संघर्ष है, परेशानियां हैं,कष्ट हैं,लेकिन इन संघर्षों, परेशानियों और कष्टों में भी जो व्यक्ति हमेशा सकारात्मक सोच और ऊर्जा से जीवन को बहुत ही सहजता, धैर्य,संयम और खुशी(प्रसन्नता) से जीता है, वही तो वास्तव में असली जीवन है। वास्तव में, जीवन के हर क्षण में आनंद और संतोष का अनुभव करना ही प्रसन्नता है। महात्मा गांधी जी ने कहा है कि ‘प्रसन्नता तब होती है जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, सब एक साथ हों।’ यह ठीक है कि व्यक्ति जब किसी उपलब्धि विशेष, सफलता को प्राप्त कर लेता है तो उसे खुशी या प्रसन्नता का अनुभव होता है, लेकिन यदि वास्तव में देखा जाए तो किसी उपलब्धि या स्थिति विशेष तक पहुंचना ही खुशी नहीं है। दरअसल, खुशी या प्रसन्नता का भाव हमेशा अंतर्मन में निहित होता है, यह(खुशी) आंतरिक होती है, बाह्य नहीं। संपत्ति, पद और प्रतिष्ठा(नेम एंड फेम) या सफलता प्राप्त करना ही खुशी या प्रसन्नता नहीं है, यह इससे भी ऊपर थोड़ा हटकर है। खूब सारी संपत्ति हमें प्रसन्नता दे सकती है, इसी तरह से प्रतिष्ठा से भी हमें खुशी का अहसास हो सकता है, लेकिन यदि प्रसन्नता का भाव देखा जाए तो यह भौतिकता में तो कतई नहीं है। वास्तव में, यह हमारे भावनात्मक और मानसिक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। असल में हमारे भीतर (अंतर्मन) की शांति और संतोष ही असली प्रसन्नता है।हाल ही में ‘विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट’ जारी की गई है। पाठकों को बताता चलूं कि 20 मार्च 2025 गुरूवार को यह रिपोर्ट जारी की गई है, जो यह बताती है कि खुशी सूचकांक में भारत का स्कोर 10 में से 4.389 पर आ गया है, जो पहले 4.054 था। निश्चित रूप से स्कोर बढ़ा है, लेकिन खुशी इतनी नहीं। मामूली सी बढ़ोत्तरी हुई है इसमें।यहां यह भी गौरतलब है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वेलबींग रिसर्च सेंटर ने गैलप, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समाधान नेटवर्क  के साथ साझेदारी में वर्ल्ड हैप्पीनेस डे (20 मार्च) पर वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (डब्ल्यू एच आर) 2025 जारी की है। इस रिपोर्ट में जिन 147 देशों का विश्लेषण शामिल किया गया, उनमें भारत 118वें नंबर है। हालांकि, यह रैंकिंग अभी भी भारत को यूक्रेन, मोज़ाम्बिक और इराक सहित कई संघर्ष-प्रभावित देशों से पीछे रखती है। पूर्व में 143 देशों में यह 126वें स्थान पर था। मतलब यह है कि भारतीय लोग पिछले सालों की तुलना में अब थोड़ा सा अधिक प्रसन्न रहने लगे हैं। यानी विश्व में खुश रहने के मामले में भारत की रैंकिंग में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन यहां यह गौरतलब है कि हमारे पड़ोसी नेपाल (92) और पाकिस्तान (109) प्रसन्नता के मामले में हमसे आगे हैं। क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि जो पाकिस्तान लगातार आर्थिक चुनौतियों, महंगाई, आतंकवाद और अराजकता से जूझ रहा है, वह भी प्रसन्नता के मामले में हमारे देश से आगे है ? रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान का प्रदर्शन भारत से बेहतर रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि हैप्पीनेस इंडेक्स पर उसका स्कोर 4.657 से बढ़कर इस बार 4.768 दर्ज किया गया है, लेकिन उसकी रैंकिंग 108 से गिरकर 109 पर आ गई है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि विभिन्न देशों की प्रसन्नता पर आधारित यह रैंकिंग लोगों के जीवन मूल्यांकन के तीन वर्षों के औसत से तैयार की जाती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस ‘खुश स्कोर’ में भिन्नता की व्याख्या करने के लिए रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति जीडीपी, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक स्थिति, जीवन जीने की आजादी, उदारता और भ्रष्टाचार जैसे छह संकेतकों को मापा जाता है, लेकिन खुशहाली रैंकिंग इन छह कारकों में से किसी पर भी आधारित नहीं होती है। बहरहाल, यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि प्रति व्यक्ति आय जैसे गणनात्मक पैमाने पर भारत की स्थिति पाकिस्तान से कहीं बेहतर दर्शायी गई है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में जहां वर्ष 2023 में प्रति व्यक्ति आय जहां 2,480.8 डॉलर रही, वहीं पाकिस्तान में यह 1,365.3 डॉलर के स्तर पर ही अटक गई। यहां गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2021 में पाकिस्तान की स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा (जन्म के समय) जहां 56.9 साल थी, वहीं भारत की स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा 58.1 साल थी। इसके अतिरिक्त  ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक, 2024 रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के मामले में पाकिस्तान जहां 135वें नंबर रहा, वहीं भारत का स्थान इसमें 96वां था। बहरहाल, यदि हम यहां ‘विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट’ में  टॉपर्स की लिस्ट की बात करें तो एकबार फिर फिनलैंड (लगातार आठवीं बार) नंबर 1 पर कायम है। गौरतलब है कि फिनलैंड ने 7.74 का प्रभावशाली औसत स्कोर किया, जिससे वैश्विक स्तर पर सबसे खुशहाल राष्ट्र के रूप में अपनी पोजीशन बरकरार रखी है। जानकारों के अनुसार फिनलैंड में दिन में केवल चार घंटे सूरज निकलता है। यहां बहुत ठंड का मौसम रहता है, लेकिन कितनी बड़ी बात है इन सब विकट परिस्थितियों के बावजूद फिनलैंड के लोग दुनिया में सबसे प्रसन्न हैं।सूची में फिनलैंड के बाद डेनमार्क, आइसलैंड, नीदरलैंड,कोस्टा रीका,नार्वे , इजरायल, लक्ज़मबर्ग, मेक्सिको और स्वीडन का स्थान है। वास्तव में,इन देशों ने अपनी स्ट्रांग सोशल सपोर्ट सिस्टम, हाई स्टैंडर्ड ऑफ लीविंग और वर्क-लाइफ बैलेंस के प्रति प्रतिबद्धता के कारण लगातार खुशी रिपोर्ट में टॉप रैंक को प्राप्त किया है।दिलचस्प बात यह है कि कोस्टा रिका और मैक्सिको ने शीर्ष 10 में अपनी शुरुआत की, क्रमशः 6वां और 10वां स्थान हासिल किया। वहीं पर दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका 24वें स्थान पर अपनी सबसे निचली रैंकिंग पर आ गया, वहीं पर यूनाइटेड किंगडम 23वें स्थान पर है। रिपोर्ट में चीन 68वें स्थान पर रखा गया है।पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा दक्षिण एशियाई देशों में म्याँमार (126वाँ), श्रीलंका (133वाँ), बांग्लादेश (134वाँ) का स्थान पर रखे गए हैं। वहीं पर अफगानिस्तान (147वाँ) (लगातार चौथे वर्ष) स्थान पर है। वास्तव में, अफगानिस्तान को दुनिया का सबसे दुखी देश माना गया है। देश की निम्न रैंकिंग का मुख्य कारण अफ़गान महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले संघर्ष हैं, जिन्होंने बताया कि उनका जीवन लगातार कठिन होता जा रहा है।अन्य देशों में क्रमशः सिएरा लियोन (146वाँ), लेबनान (145वाँ), मलावी (144वाँ) और ज़िम्बाब्वे (143वाँ) का प्रदर्शन सबसे निम्नतम रहा है। वास्तव में,अफगानिस्तान के बाद, सिएरा लियोन और लेबनान क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे दुखी देश हैं। इन देशों ने संघर्ष, गरीबी और सामाजिक अशांति सहित महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना किया है। पाठकों को बताता चलूं कि यह रैंकिंग लोगों के जीवन मूल्यांकन के 3-वर्षीय औसत पर आधारित है, जिसमें प्रतिक्रियादाता अपने वर्तमान जीवन को 0 से 10 के पैमाने पर रेट करते हैं। यहां यदि हम हैप्पीनेस के निर्धारक कारकों की बात करें तो इनमें क्रमशः विश्वास, सामाजिक संबंध, शेयर्ड मील और सामुदायिक दयालुता जैसे कारक शामिल  हैं, जो सामान्यतः धन से भी अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2025 में विश्व प्रसन्नता दिवस की थीम: ‘केयरिंग एंड शेयरिंग’ रखी गई थी तथा ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस डे'(विश्व प्रसन्नता दिवस) की पहल सर्वप्रथम भूटान द्वारा की गई थी, जिसने 1970 के दशक से ही ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (जीएनएच) को जीडीपी से अधिक प्राथमिकता दी है। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि जुलाई 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 मार्च को ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस डे’ के रूप में मनाने का निर्णय अंगीकृत किया गया था। बहरहाल, यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर हमारा देश प्रसन्नता के मामले में इतना पीछे क्यों है ? जबकि हमारे देश की स्थिति नेपाल और पाकिस्तान से तो हर मायने में बहुत ज्यादा बेहतर है। दरअसल, इसके पीछे कुछ कारण निहित हैं। कारण यह है कि आज हम अपनी परेशानियों को ज़्यादा बड़ा बना कर देखते हैं। यह भी कि हमारे देश में ‘जीवन की स्वतंत्रता’ के पैमाने अन्य देशों की तुलना में कुछ अलग हैं, जिनको शायद इस रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया, इसलिए हम प्रसन्नता के मामले में पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों से भी पिछड़ गए। आज हम प्रकृति के भी उतने निकट नहीं रह गये हैं,जितने कि आज से पच्चीस तीस पहले थे।बहरहाल, वास्तव में यह क्रूर मज़ाक नहीं तो और क्या है कि युद्धों में मटियामेट फिलिस्तीनी और यूक्रेनी लोग भी भारतीयों से कहीं ज़्यादा खुशहाल व प्रसन्न हैं। बहरहाल, हमें यहां जरूरत इस बात की है कि प्रसन्नता के मामले में हम फिनलैंड से कुछ सीखें। कहना ग़लत नहीं होगा कि फिनलैंड दुनिया भर में खुशी के सूचकांक में हर बार शीर्ष पर रहता है। संभवतः, यह प्रवृत्ति इसलिए है, क्योंकि फिनलैंड के लोग सरल सुखों का आनंद लेते हैं-जैसे स्वच्छ हवा , शुद्ध पानी और जंगल में घूमना -पूरी तरह से, लेकिन हमारे यहां दूसरी चीजें हैं। मसलन, हम घंटों घंटों तक ट्रैफिक जाम में फंसे रहते हैं, लोकल ट्रेनों में धक्के खा रहे होते हैं। हमारे यहां प्रदूषण का स्तर भी कुछ कम नहीं है। हमारे यहां मेट्रो सीटीज में बहुत प्रदूषण है। शहरों में अस्वच्छता भी है।हमारे यहां आज भी भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं, लेकिन फ़िनलैंड में सब कुछ ठीक चलता है; मसलन, वहां पर सार्वजनिक सेवाएँ सुचारू रूप से चलती हैं, अपराध और भ्रष्टाचार का स्तर कम है, और सरकार और जनता के बीच एक अर्जित विश्वास है। यह सब मिलकर एक कार्यशील समाज और सभी का ख्याल रखने की संस्कृति बनाने के लिए काम करता है। फ़िनलैंड में 40 से ज़्यादा राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो हाइकिंग रूट, नेचर ट्रेल और कैम्पफ़ायर साइट्स से भरे हुए हैं, जहाँ आप तारों के नीचे एक रात बिता सकते हैं। फ़िनलैंड के सभी जंगल अलग-अलग आकार और साइज़ में आते हैं ; हरे-भरे दक्षिणी जंगलों से लेकर उत्तर के आर्कटिक अजूबों तक, बहुमुखी प्रतिभा और विविधता खिलती है। प्रकृति से लोगों का विशेष जुड़ाव है,जो उन्हें प्रसन्न और खुश रहने में मदद करता है।हम भारतीयों को यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि प्रकृति के साथ निकटता रचनात्मकता और नवीनता को बढ़ावा देती है।वास्तव में, कहना ग़लत नहीं होगा कि फ़िनलैंड की कम तनाव वाली जीवनशैली रचनात्मकता को बढ़ावा देती है, जिससे यह दुनिया के सबसे नवोन्मेषी देशों में से एक बन गया है। सच तो यह है कि फिनलैंड की खुशहाली का कारण, वहां के समाज में विश्वास और स्वतंत्रता का उच्च स्तर है। फिनलैंड के सबसे अधिक खुश व प्रसन्न होने के पीछे एक कारण यहां की आबादी भी है। दरअसल,आबादी कम होने के कारण लोगों को मिलने वाली सुविधाएं काफी अच्छी होती हैं। यह भी कि फिनलैंड के निवासी अपने पड़ोसियों से अपनी तुलना नहीं करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि सच्ची खुशी की ओर पहला कदम दूसरों से अपनी तुलना करने के बजाय अपने खुद के मानक निर्धारित करना है, जो कि फिनलैंड के लोगों ने करके दिखाया है। इतना ही नहीं,फिनलैंड के निवासी न तो प्रकृति के लाभों को नज़रअंदाज़ करते हैं और न ही विश्वास का कम्यूनिटी सर्कल को तोड़ते हैं, इसलिए वे हमेशा खुश और प्रसन्न रहते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा फिनलैंड में काम-जीवन संतुलन पर बहुत ज़ोर दिया जाता है, जिसमें काम के घंटे कम करना, माता-पिता को छुट्टी देने की उदार नीतियाँ और पर्याप्त छुट्टी का समय शामिल है। यह दृष्टिकोण फिन्स को अवकाश, परिवार और व्यक्तिगत गतिविधियों को प्राथमिकता देने की अनुमति देता है, जिससे समग्र कल्याण और संतुष्टि को बढ़ावा मिलता है। इतना ही नहीं, फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली समानता, सुलभता और बालकों के समग्र विकास को प्राथमिकता देती है। फिनलैंड में लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण, एक समावेशी समाज में योगदान करते हैं। यहां की सौना संस्कृति भी उनकी(फिनलैंड वासियों) प्रसन्नता का एक बड़ा कारण है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि सौना, फिनिश संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है, जो विश्राम, सामाजिक मेलजोल और कायाकल्प के लिए एक पोषित परंपरा के रूप में कार्य करता है। देश में तीन मिलियन से अधिक सौना के साथ, फिनिश लोग सौना स्नान को अपने स्वास्थ्य का एक मूलभूत पहलू मानते हैं, जो सामाजिक संबंधों और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हुए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं, फिनलैंड में भ्रष्टाचार का स्तर दुनिया में सबसे कम है, जिससे सार्वजनिक संस्थाओं में विश्वास बढ़ता है और नागरिकों में निष्पक्षता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलता है। पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक शासन फिनलैंड की एक भरोसेमंद और विश्वसनीय समाज के रूप में प्रतिष्ठा में योगदान करते हैं। फिनलैंड में समुदाय में भावना बहुत ही प्रबल है। वास्तव में,​फिनिश समाज समुदाय और सामूहिक कल्याण पर बहुत ज़ोर देता है। घनिष्ठ पड़ोस से लेकर जीवंत सामाजिक मंडलियों तक, फिनिश लोग रिश्तों, एकजुटता और आपसी सहयोग को प्राथमिकता देते हैं, जिससे एक दूसरे से जुड़ाव और जुड़ाव की भावना पैदा होती है जो समग्र खुशी को बढ़ाती है। अंत में यही कहूंगा कि यदि हमें भी प्रसन्नता में नंबर वन बनना है तो हमें फिनलैंड से प्रेरणा लेते हुए बहुत से सुधार अपने यहां करने होंगे तभी हम प्रसन्नता सूचकांक में सिरमौर देश बन सकते हैं।

सुनील कुमार महला

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress