
कोरोना महामारी की दुसरी लहर के कमजोर पडते ही किसान आंदोलन से इतर हरियाणा सरकार ने पंचायत, जिला परिषद व ब्लाक समिति के चुनाव करवाने के लिए कमर कस ली है।आपको बता दे कि हरियाणा में 6205 सरपंचों के अलावा 22 जिलों के 416 जिला परिषद सदस्य व 142 ब्लॉक समितियों के 3002 सदस्यों के चुनाव होने हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में पंचायत चुनाव चौधर व रुतबे का प्रतीक माना जाता है। बड़े गांवों में तो राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप साफ तौर पर देखने में आता है। यहां पर सरपंची के चुनावों में प्रत्येक वोटर्स की नब्ज टटोलने के साथ ही हर प्रकार से शह-मात का खेल भी खेला जाता है।
हरियाणा मे पंचायतों ,जिला परिषद व ब्लाक समिति सदस्यों का कार्यकाल फरवरी माह मे ही पूरा हो चुका है।जिसके बाद किसान आंदोलन और कोरोना के कारण चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई। अब एक तरफ जहां कोरोना की रफ्तार धीमी पड़ चुकी है ,वहीं किसान आंदोलन से सरकार की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है।ऐसे मे सरकार ने चुनाव करवाने की प्रक्रिया की गति को बढा दिया है।
राज्य चुनाव आयोग भी पंचायत चुनावों को तय समय पर करवाने को लेकर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने का काम कर रहा है। इसी कड़ी में 30 जून तक सभी पंचायतों में आरक्षण ड्रा की प्रकिया पूरी हो जाएगी और इसके बाद इन चुनावों को लेकर गांवों में सियासी हलचल एकाएक रफ्तार पकड़ लेंगी।
किसान आंदोलन व कोरोना महामारी की वजह से प्रदेश की सियासी गतिविधियों पर लंबे समय से ब्रेक सी लगी हुई है। लेकिन अब हरियाणा में सियासी हलचल एकाएक तेज हो सकती है। फिलहाल प्रदेश में कोरोना की वजह से बिगड़े हालातों पर भी लगभग काबू पा लिया गया है, ऐसे में राजनीतिक हलचल तेज होने के साथ-साथ हरियाणा में चुनावी रण का बिगुल भी बजेगा। इसके साथ ही आने वाला वक्त पूरी तरह से सियासी व चुनावी रंग में रंगा हुआ नजर आएगा।
आपको बता दें कि इस बार प्रदेश सरकार ने राज्य में पहली बार नगर परिषद व पालिकाओं के अध्यक्ष पद के चुनाव सीधी प्रकिया से करवाने का निर्णय लिया है। स्थानीय निकाय चुनावों के लिए प्रधान पद के आरक्षण को लेकर ड्रा प्रकिया मंगलवार को सम्पन्न की गई है। जबकि 6200 पंचायतों के ड्रा की प्रकिया 30 जून तक पूरी की जानी है। इसके साथ ही अभय चौटाला के इस्तीफे के बाद खाली हुई ऐलनाबाद सीट पर भी उपचुनाव होगा।
ऐसे में आने वाला वक्त हरियाणा की सियासत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण तों होगा हीं, वहीं इन चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हो जाएगी। पंचायती राज व स्थानीय निकायों के चुनाव सितम्बर में होने की उम्मीद है। छोटी सरकार में पहली बार अध्यक्ष पद के चुनाव सीधे तौर पर हो रहें हैं ऐसे में लाजमी है कि इन चुनावों में बड़े राजनीतिक घरानों के नए चेहरे चुनावी रण में ताल ठोकते नजर आ सकते हैं।
सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस साल आने वाले छः महीने प्रदेश का सियासी पारा उफ़ान पर रहेगा क्योंकि अगस्त महीने में पंचायत चुनाव करवाए जाने की संभावना है तो सितम्बर में 45 निकायों के चुनाव संभावित है। इसके तुरंत बाद ऐलनाबाद उपचुनाव का बिगुल बज जाएगा। ऐसे में इन चुनावों में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन चुनावों में बड़े नेताओं की सक्रिय भूमिका नजर ना आएं।
●प्रतिष्ठा का प्रतीक मानें जातें हैं पंचायती राज व स्थानीय निकाय के चुनाव
पंचायती राज व स्थानीय निकाय के चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है और रुतबे के इन चुनावों में बड़े नेताओं की भूमिका भी अहम हो जाती है। स्थानीय विधायक के अलावा बड़े नेताओं के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन जाते हैं और वे प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। चूंकि इस बार तो निकाय चुनावों में प्रधान पद का फैसला डायरेक्ट किया जाएगा तो बड़े नेताओं की भूमिका और अधिक बढ़ेगी।