वीरेन्द्र सिंह परिहार
बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) के अभियान को लेकर कांग्रेस, राजद समेत दूसरे विपक्षी दलों ने कुछ ऐसा मुद्दा बनाने की कोशिश की- जिसे तिल का ताड़ या राई का पहाड़ ही कहा जा सकता है। इसके लिये उन्होंने संसद में पर्याप्त उत्पात मचाया। बिहार में राहुल और तेजस्वी इसके विरोध में पूरे बिहार की धरती नापते रहे। इसे चुनाव आयोग की मिलीभगत से सत्ताधारी पार्टी द्वारा वोट चोरी बताने का अभियान चलाते रहे। सर्वोच्च न्यायालय में तो याचिकाएं इसके विरोध में दायर हुई हीं। यह बात और है कि इसको लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने न तो चुनाव आयोग के काम पर रोक लगाई और न ही याचिकाकर्ताओं को कोई विशेष राहत ही दी। यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस सम्बन्ध में विरोधी दलों की इस बात को भी मानने से इंकार कर दिया कि आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी नागरिकता तय करने के लिये पर्याप्त आधार हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि वोट जोड़ना और काटना चुनाव आयोग का काम है। बिहार के संदर्भ में चुनाव आयोग सिर्फ यही परीक्षण कर रहा था कि मतदाता सूची में जिन मतदाताओं के नाम दर्ज हैं, वह भारतीय नागरिक है या नहीं।
गजब की बात तो यह कि चुनाव आयोग ने एस.आई.आर. के तहत बिहार में 65 लाख लोगो के नाम काटे। निश्चित रूप से जो फर्जी वोटों, बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के दम पर चुनाव जीतने का संकल्प संजोए बैठे थे, उन्हें तो चुनाव आयोग के इस कदम से भारी आघात पहुँचना स्वाभाविक है। यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार के ही मुस्लिम बहुल इलाकों में 100 लोगो पर 123 प्रतिशत आधार का कवरेज है जबकि पूरे बिहार में यह कवरेज 94 प्रतिशत है। इससे समझा जा सकता है कि यदि आधार को लेकर मतदाता सूचियाँ फाइनल की गई, तो कितना बड़ा फर्जीवाड़ा हो सकता था। यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार में मतदाता सूची में 65 लाख नाम काटने को लेकर भले ही जितना हंगामा मचाया गया हो, पर इस सम्बन्ध में 1 सितम्बर तक यानी पूरे एक महीने में सिर्फ 120 आपत्तिया ही आई। इससे यह समझा जा सकता है कि इस मामले में निर्वाचन आयोग पूरी तरह सही है।
अब एक तरफ तो राहुल गाँधी चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं, कह रहे हैं कि एक ही पते पर कई वोटर्स, डुप्लीकेट और फेक वोटर हैं। कई के मकान नम्बर 0 है। वह तो यहाँ तक कहते हैं कि मोदी वोट चोरी करके प्रधानमंत्री बने हैं। यदि राहुल गाँधी की बाते आंशिक रूप से भी सच है, तो फिर देश में मतदाता सूचियों को गहन परीक्षण की जरूरत है। यह बात और है कि जब चुनाव आयोग राहुल गाँधी से इस सम्बन्ध में शपथ-पत्र माँगता है, तो वह शपथ-पत्र पर अपने आरोप लगाने को तैयार नहीं क्योंकि शपथ-पत्र झूठा होने पर 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। कुल मिलाकर विपक्ष सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। संसद को कई दिनों से बाधित कर रखा है और तमाम उल्टे सीधे आरोप लगा रहा है पर शपथ-पत्र पर अपनी बात कहने को तैयार नहीं। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि रायबरेली और अमेठी जो नेहरू खानदान के विशेष चुनाव क्षेत्र हैं, वहाँ भी बड़ी संख्या में मतदाताओं के मकान नम्बर शून्य लिखे हुये हैं।
भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने इस सम्बन्ध में राहुल गांधी के रवैये को लेकर कई सवाल उठाये हैं। उन्होंने राहुल गांधी से पूँछा है क्या मृत लोगो, पंजीकृत पते पर न रहने वाले लोगों और दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में जिन मतदाताओं के नाम हैं। क्या उनके नाम बने रहना चाहिए, क्या उन्हें दो बार मतदान करने की अनुमति मिलनी चाहिए ? अखिलेश और तेजस्वी जैसे नेता ई.वी.एम. की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की माँग बराबर करते रहते हैं, यानी वह चाहते हैं कि जैसे बिहार समेत देश के अधिकांश हिस्सों में बूथ लूट लिये जाते थे, उसकी शुरूआत फिर से हो जबकि चुनाव आयोग ने ई.वी.एम. के माध्यम से चुनाव कराकर बूथ लूटने की घटनाओं पर अमूमन विराम लगा दिया है। सबसे उल्लेखनीय बात इस सम्बन्ध में 1 सितम्बर को इस सम्बन्ध में सुनवाई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का रवैया रहा जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कह दिया कि हम आधार अधिनियम द्वारा निर्धारित सीमा से आगे आधार को नहीं बढ़ा सकते। शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि हम पट्टूस्वामी फैसले को कायम रखते हुये आधार के सम्बन्ध में पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा कही गई बातों से आगे नहीं जा सकते जिस में यह तय किया गया था कि आधार संख्या अपने आप में नागरिकता या निवास का अधिकार प्रदान नहीं करते। यह भी उल्लेखनीय है कि आधार अधिनियम की धारा 9 कहती है- ‘‘आधार संख्या या उसका प्रमाणीकरण अपने आप में किसी आधार संख्या धारक को नागरिकता या निवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करेगा या उसका प्रमाण नहीं होगा। अब राहुल गांधी गली-मुहल्ले के शोहदो की तर्ज पर भले कहें कि वह एटम-बम फोड़ चुके हैं, अब हाइड्रोजन बम फोड़ने वाले हैं पर सर्वोच्च न्यायालय का रवैया इस सम्बन्ध में यही बताता है कि एस.आई.आर के सम्बन्ध में पूरे देश में जो हंगामा खड़ा करने की कोशिश की गई, उसका निहितार्थ मात्र यही निकलता है- ‘‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया।’’
वीरेन्द्र सिंह परिहार