सब ओलंपिक जीत लिये हैं

मम्मी किसको डाले दाने,

चिड़ियों के अब नहीं ठिकाने|

 

पितृ पक्ष में पापा कहते,

कौये जाने कहां रमाने|

 

तरस गईं हैं कब से दादी,

नील कंठ के दर्शन पाने|

 

मुर्गे अब तैयार नहीं हैं,

सुबह सुबह से बांग लगाने|

 

नहीं दिख रहे अब कठ फोड़े,

कहां चले गये हैं न जाने|

 

था गरीब का भोजन कोदों,

दुर्लभ हैं अब उसके दाने|

 

पापा कितने पैदल चलते,

मां से पूछा है दादा ने|

 

रोटी पर अधिकार जमाया,

चीज़ औ रवर्गर पिज्जा ने|

 

सब ओलंपिक जीत लिये हैं,

बेशर्मी और लाज हया ने|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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