कविता

और घर पर सारे कैसे हैं

चिट्ठी — वो प्यारे कैसे हैं
और घर पर सारे कैसे हैं

वो घर का सूरज कैसे है
वो चाँद-सितारे कैसे हैं

उस आँगन की रौनक कैसी
बचपन के नज़ारे कैसे हैं

बूढ़ा-सा पेड़ वो पीपल का
वो तट, वो किनारे कैसे हैं

पंख तितली के, अब के सावन
बच्चों ने सँवारे कैसे हैं

कुछ दिये हवा में छोड़ दिए
हैं किसके सहारे कैसे हैं

जो ख़्वाब सजाए मिल कर थे
बेबस, बेचारे कैसे हैं

क्या कहते थे दो नैन सजल
वो बहते धारे कैसे हैं

चिट्ठी — वो प्यारे कैसे हैं
और घर पर सारे कैसे हैं

डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’