आर्थिकी

एक और घोटाले ने बढ़ाई केंद्र सरकार की आफत

 यूपीए-२ को घोटालों की सरकार कहें तो किसी को अचरज नहीं होगा| अपने ढ़ाई वर्ष से अधिक के कार्यकाल में संप्रग सरकार में जितने घोटाले हुए उतने आज़ादी के बाद से अब तक नहीं हुए| सरकार में शामिल मंत्रियों की कारगुजारियों को यूँ तो मीडिया तथा कैग सार्वजनिक करता रहा है तथा उच्च न्यायालय भी सरकार को समय-समय पर झिडकी देता रहा है किंतु ताज़ा घटनाक्रम राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने में हुए घोटाले बाबत विश्व बैंक की रिपोर्ट है जिसने सरकार को पुनः मुसीबत में ड़ाल दिया है| गौरतलब है कि १ मार्च २०१२ को आई विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने में भारी मात्र में भ्रष्टाचार एवं गड़बड़ियां हो रही हैं| करोड़ों रुपये की घूसखोरी भी इन योजनाओं में देखने को मिल रही है| वर्ल्ड बैंक इंस्टीट्यूशनल इंटीग्रिटी यूनिट की यह रिपोर्ट विश्व बैंक की मदद से बन रहे राष्ट्रीय राजमार्गों पर आधारित है| इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि प्रोग्रेसिव कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और पीसीएल-एमवीआर ज्वाइंट वेंचर भ्रष्टाचार कर रहे हैं| इन कंपनियों पर फर्जी वाउचर देकर १४.७१ करोड़ अग्रिम भुगतान लेने, दूसरे चरण में भी फर्जी वाउचरों की मदद से १४.६४ करोड़ और २६.४४ करोड़ अग्रिम लेकर अन्य प्रोजेक्ट्स पर खर्च करने का आरोप है|

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोजेक्ट से जुड़े ठेकेदार फर्जी बिल लगाकर विश्व बैंक का पैसा हज़म कर रहे हैं| लखनऊ-मुज्जफ्फरपुर हाइवे योजना में ठेकेदार ने फर्जी बिलों के ज़रिये विश्व बैंक को ४० करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लगाई| यही नहीं ठेकेदार विश्व बैंक का रूपया जो वह राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने हेतु स्वीकृत करता है, उसे किसी अन्य योजना में लगाकर लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं| दिलचस्प तथ्य यह है कि रिपोर्ट में जिस सड़क निर्माण कंपनी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं वह हैदराबाद के एक कांग्रेस सांसद की है जिसे एनएचएआई ने पहले तो काली सूची में डाला किन्तु कुछ समय बाद उसे काली सूची से बाहर कर दिया गया| यहाँ तक कि एनएचएआई के अधिकारियों को भी ठेका लेने हेतु रिश्वत दी गई है|

 

रिपोर्ट में विश्व बैंक की सहायता से बन रही तीन सड़क परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की बात सामने आई है| ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर के तहत लखनऊ-मुजफ्फरपुर के बीच बन रही सड़क के अतिरिक्त ग्रांड ट्रंक रोड इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट तथा नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट फेस-३ में भ्रष्टाचार पर विश्व बैंक ने भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है| विश्व बैंक की यह रिपोर्ट तत्काल वित्त मंत्रालय को भेज दी गई है और वित्त मंत्रालय ने कॉपी; कार्रवाई के आदेश के साथ सड़क एवं परिवहन मंत्रालय को भेज दी है| विश्व बैंक के रुपये को चूना लगाने वाली कंपनियों या ठेकेदारों का क्या होगा यह तो वक़्त ही बताएगा? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट में जिस कंपनी को काली सूची में डाला गया था उसी को ठेके दिए गए, इसमें किसका हाथ है? चूँकि कंपनी के मालिक हैदराबाद से कांग्रेस सांसद है लिहाज़ा इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन घोटालों में उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं सरकार में शामिल मंत्रियों का हाथ न हो| पहले भी सरकारी योजनाओं में हुए भ्रष्टाचार के मामलों में मनमोहन सरकार के मंत्रियों की भागीदारी पकड़ में आती रही है|

 

चूँकि यह घोटाला विश्व बैंक द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण हेतु दिए गए धन में हुआ है, लिहाज़ा यह संभावना भी बनती नज़र आ रही है कि विश्व बैंक आगे से भारत की किसी भी परियोजना को धन-राशि मुहैया न करवाए या धन-राशि दे तो उसकी उच्चस्तरीय मानिटरिंग करे| यह कितना शर्मनाक है कि विश्व बैंक भारत सरकार को देश की तरक्की हेतु यथासंभव मदद करता है और सरकारी सूत्र उस मदद का बेजा फायदा उठाकर देश की छवि पर बट्टा लगाते हैं| वित्त मंत्रालय ने आगे की जांच भले ही सड़क एवं परिवहन मंत्रालय को सौंप दी हो किन्तु इससे किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा, इसमें संदेह है| करोड़ों रुपये के इस घोटाले की भी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि छुपे हुए सच से पर्दा उठ सके| विश्व बैंक के भारत में भ्रष्टाचार के एक और बड़े घोटाले का खुलासा करने से अन्य देश भी अब भारत सरकार की परियोजनाओं में धन-राशि लगाने से पहले कई बार सोचेंगे| राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाले से यक़ीनन भारत को दूरगामी परिणामों से दो-चार होना पड़ेगा|