सुनील कुमार महला
भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है, जो बहुत बार बड़े जान-माल के नुकसान का कारण बनती है। भूकंप पृथ्वी के स्थलमंडल या इसके ऊपरी मेंटल में ऊर्जा के अचानक मुक्त होने के कारण आते हैं। गौरतलब है कि भूकंप के तीन मुख्य प्रकार होते हैं, जिनमें क्रमशः टेक्टोनिक, ज्वालामुखीय और पतन भूकंपों को शामिल किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि टेक्टोनिक भूकंप जहां टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल के कारण आते हैं, वहीं दूसरी ओर ज्वालामुखी भूकंप ज्वालामुखी से मैग्मा और राख के बाहर निकलने, चट्टानों के पिघलकर खिसकने के कारण आते हैं। वहीं पर पतन भूकंप भूमिगत गुफाओं और खदानों में आने वाले छोटे भूकंप होते हैं जो सतह पर चट्टान के विस्फोट से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के कारण होते हैं। वास्तव में सबसे बड़े भूकंप तब आते हैं जब दो प्लेटें आपस में टकराती हैं।
ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार ‘भूकंप पृथ्वी के भीतर दोषों के साथ अचानक होने वाली हलचल का परिणाम है। यह हलचल भूकंपीय तरंगों के रूप में संग्रहित ‘लोचदार तनाव’ ऊर्जा को मुक्त करती है, जो पृथ्वी के माध्यम से फैलती है और जमीन की सतह को हिला देती है।’ जब कभी भी बड़े भूकंप आते हैं तो उस स्थिति में भूकंपीय तरंगें पूरी पृथ्वी से होकर गुजरती हैं और जब भूकंपीय तरंगें पृथ्वी से होकर गुजरती हैं, तो वे अपवर्तित हो जाती हैं, या मुड़ जाती हैं, जैसे प्रकाश की किरणें कांच के प्रिज्म से होकर गुजरने पर मुड़ जाती हैं और पृथ्वी पर जान-माल के नुकसान का बड़ा कारण बनतीं हैं। अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश भूकंप टेक्टोनिक प्लेट सीमाओं से जुड़े होते हैं और इनमें हलचल ही भूकंप का वास्तविक व प्रमुख कारण है।
बहरहाल, हाल ही में तिब्बत के एक क्षेत्र में आए शक्तिशाली भूकंप में 100 से अधिक जानें गईं हैं, वहीं सैंकड़ों लोग इसमें घायल हो गए हैं। इस भूकंप के झटके हिमालय के पार नेपाल, भूटान और यहां तक कि उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में भी महसूस किए गए। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (यूएसजीएस) के अनुसार, 7.1 तीव्रता का यह भूकंप स्थानीय समयानुसार सुबह 9:05 बजे 10 किलोमीटर (6.2 मील) की गहराई पर आया था और इसके बाद 40 से ज्यादा आफ्टरशॉक्स भी आए। यह भी आशंका जताई गई है कि अभी भूकंप से मृतकों की संख्या में और इजाफा हो सकता है। हालांकि, विभिन्न बचाव और पुनर्वास कार्यों को लगातार प्राथमिकता दी जा रही है और भूकंप के बाद आने वाली द्वितीयक आपदाओं को रोकने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम क्षेत्र में तैनात की गई है, लेकिन बावजूद इसके धरती पर बार-बार आ रहे भूकंपों से एक बड़ा गंभीर खतरा संपूर्ण विश्व पर लगातार मंडरा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इस प्राकृतिक आपदा ने तिब्बत और पड़ोसी देशों को गहरी चोट दी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि शिगाज़े क्षेत्र, जो कि तिब्बत का पवित्र धार्मिक केंद्र और पंचेन लामा की पारंपरिक पीठ है, भारी क्षति झेल रहा है। डिंगरी काउंटी, जो माउंट एवरेस्ट के उत्तरी आधार शिविर के करीब है, सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में शामिल है। जानकारी के अनुसार यहां के 27 गांवों में 6,900 की आबादी रहती है, जिनमें से अधिकांश बेघर हो गए हैं। इतना ही नहीं,तिब्बत का झिजांग प्रांत भूकंप के एक और झटके से फिर थर्राया, इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर करीब 4 आंकी गई है। इसका केंद्र जमीन के अंदर करीब 10 किलोमीटर की गहराई तक था। तिब्बत के साथ ही साथ नेपाल में भी भूकंप का यह झटका महसूस किया गया, जिसकी तीव्रता करीब 4.2 आंकी गई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि नया साल-2025 एशिया के लिए भूकंप की बुरी खबर लेकर आया,जिसके कारण तिब्बत, चीन, नेपाल, भारत में काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। इस भूकंप से कई इमारतें ढह गईं हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई हैं।
कहना ग़लत नहीं होगा कि इसने हमें फ्रांस के 16वीं सदी के प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी याद दिलाई है। पाठकों को बताता चलूं कि नास्त्रेदमस ने 2025 में और भी कई चुनौतियों और आपदाओं का जिक्र अपनी पुस्तक ‘लेस प्रोफेइट्स'(1555)में किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लेस प्रोफेइट्स में 900 से ज्यादा कविताएं हैं, जिन्हें रहस्यमय तरीके लिखा गया है। दावा किया जाता है कि इन कविताओं में नेपोलियन का उदय, विश्व युद्ध और आधुनिक तकनीक की प्रगति जैसी प्रमुख वैश्विक घटनाओं की भविष्यवाणी की गई थी, जो ठीक साबित हुईं हैं। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि तिब्बती पठार, जो यूरेशियन और भारतीय टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव क्षेत्र में स्थित है, पहले से ही भूकंपीय रूप से संवेदनशील माना जाता है। गौरतलब है कि भारतीय उपमहाद्वीप विनाशकारी भूकंपों का इतिहास रहा है। भूकंपों की उच्च आवृत्ति और तीव्रता के पीछे प्रमुख कारण यह है कि भारतीय प्लेट लगभग 47 मिमी/वर्ष की दर से एशिया की ओर बढ़ रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत की लगभग 58 प्रतिशत भूमि भूकंप की चपेट में है।विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत में लगभग 200 मिलियन शहरवासी तूफानों और भूकंपों के संपर्क में होंगे। बहरहाल, हाल ही में आए भूकंप के बारे में मीडिया रिपोर्ट्स यहां तक बतातीं हैं कि भूकंप के कारण एक ही साथ 5 देशों की धरती डोल गई। केवल भारत ही नहीं नेपाल, बांग्लादेश, चीन भी इस भूकंप की चपेट में आ गए।यह भी बताया जा रहा है और तिब्बत में भूकंप से 3600 घर तबाह हो गए।माउंट एवरेस्ट भी कांपा गया बताया जा रहा है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने 150 आफ्टरशॉक्स आने तक की बात भी कही है। तिब्बत ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में 7 जनवरी 2025 की सुबह 6:35 मिनट पर भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। 7.1 की तीव्रता से आए इस भूकंप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के लोग दहशत में गए। सच तो यह है कि असम से लेकर बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।
बहरहाल कहना ग़लत नहीं होगा कि ज्वालामुखी विस्फोट, पृथ्वी का सिकुड़ना, बलन तथा भ्रंश (पृथ्वी का संपीड़न तथा पृथ्वी पर तनाव),अपरदन द्वारा उच्च प्रदेशों से शैलचूर्ण अपरदित होकर निम्न प्रदेशों में निक्षेपित होने से संतुलन बिगड़ने, पृथ्वी शैलों में तनाव,प्लेट विवर्तनिकी, पृथ्वी पर बहुत अधिक जलीय भार पैदा होने पर (बड़े बांध निर्माण आदि),बम-विस्फोट, ट्रेन के चलने से तथा कारखानों में भारी मशीनों के चलने से(कृत्रिम भूकंप) आदि के कारण अक्सर भूकंप आते हैं। यहां यह कि हिमखंडों या शिलाओं के खिसकने तथा गुफाओं की छतों के धंसने या खानों की छतों के गिरने से भी भूकंप आते हैं। विभिन्न मानवीय गतिविधियां जैसे खनन, परमाणु विस्फोट, भवन निर्माण, कार्बन प्रग्रहण और भंडारण,भूतापीय प्रचालन आदि भी भूकंप के लिए जिम्मेदार हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि भूकंप प्राकृतिक आपदा जरूर है लेकिन मानवीय गतिविधियां भी इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। आज मानव प्रकृति में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करने लगा है, यह ठीक नहीं है। भूकंप आता है तो कुछ सावधानियां बरतकर इससे बचा जा सकता है। मसलन, जब भी भूकंप आए और यदि आप घर में हैं तो फर्श पर बैठ जाएं।घर में किसी मजबूत टेबल या फर्नीचर, मजबूत चारपाई के नीचे बैठकर हाथ से अपने सिर और चेहरे को ढकें।भूकंप के झटके आने तक घर के अंदर ही रहें और झटके रुकने के बाद ही घर से बाहर निकलें।अगर रात में भूकंप आया है और आप बिस्तर पर लेटे हैं तो लेटे रहें, और तकिए से सिर ढक लें। भूकंप के समय घर के सभी बिजली स्विच को ऑफ कर दें और गैस को भी बंद रखें।अगर भूकंप के दौरान मलबे के नीचे दब जाएं तो किसी रुमाल या कपड़े से अपने मुंह को ढंके और खुद की मौजूदगी को जताने के लिए किसी चीज से आवाज़ निकालने की कोशिश करें, ताकि बचाव दल आपको तलाश सके।कुछ भी उपाय ना हो तो चिल्लाते रहें और हिम्मत ना हारें।भूकंप के वक्त घर से बाहर हैं तो विशेषकर ऊंची इमारतों और बिजली के खंभों आदि से दूर रहें। यदि आप ड्राइविंग कर रहे हैं तो गाड़ी को रोक लें और गाड़ी से बाहर ना निकलें। किसी भी पुल या फ्लाइओवर पर अपनी गाड़ी खड़ी ना करें।भूकंप के समय अगर आप घर में हैं तो बाहर ना निकलें, घर के कोने में या सही जगह ढूंढें, किसी मजबूत स्तंभ का सहारा लें और बैठ जाएं, इधर उधर न भागें।भूकंप के वक्त मलबे में दबने की स्थिति में माचिस बिल्कुल ना जलाएं क्यों कि इससे आग लगने का खतरा हो सकता है। भूकंप के समय कांच, खिड़कियों, दरवाज़ों और दीवारों से दूर रहें। लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें। इतना ही नहीं, कमज़ोर सीढ़ियों का इस्तेमाल न करें।मलबे में दब जाएं तो ज़्यादा हिले-डुले नहीं और धूल-मिट्टी आदि ना उड़ाएं।भूकंप के दौरान अधिक पैनिक न हों और किसी भी तरह की अफवाह न फैलाएं। ऐसा करके भूकंप से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है।
सुनील कुमार महला