प्रभुनाथ शुक्ल
नूतन साल केवल तारीख़ बदलने का नाम नहीं है। यह समय के कैलेंडर पर एक नई धारा जोड़ने से कहीं अधिक है। यह आत्मा के भीतर जमा धूल को झाड़ने, विचारों की दिशा सुधारने और जीवन को नई दिशा और अर्थ देने का अवसर है। हर वर्ष की तरह अलबिदा होता साल 2025 और जिसके स्वागत के लिए हम बेताब हैं साल 2026 भी हमसे एक प्रश्न करता है, क्या हम सचमुच नए हो पाए, या सिर्फ़ पुराने ढर्रे को नई तारीख़ के साथ ढोते रहे।
नया साल शोर, आतिशबाज़ी और सोशल मीडिया के शुभकामना संदेशों से आगे निकलने की माँग करता है। यह एक आधुनिक सोच चाहता है, जहाँ उत्सव के साथ उत्तरदायित्व, उमंग के साथ विवेक और संकल्प के साथ करुणा हो। उमंग और उत्साह बाहरी नहीं, भीतरी ऊर्जा होनी चाहिए। नूतन साल अक्सर जोश और उमंग का प्रतीक माना जाता है। लोग कहते है इस साल कुछ बड़ा करेंगे। पर आधुनिक सोच यह कहती है कि उमंग का स्रोत बाहर नहीं, भीतर होना चाहिए। क्षणिक उत्साह, जो कुछ दिनों में बुझ जाए, वह परिवर्तन नहीं ला सकता। सच्ची उमंग वह है जो कठिन परिस्थितियों में भी हमें आगे बढ़ने की शक्ति दे।
उत्साह तब सार्थक होता है जब वह निरंतरता में बदल जाए, जब हर सुबह खुद से यह पूछा जाए कि आज मैं बीते कल से थोड़ा बेहतर कैसे बन सकता हूँ।
संकल्प और विकल्प के साथ हमें तैयार होना होगा।
नया साल संकल्पों का मौसम होता है। पर अधिकतर संकल्प शब्दों में ही रह जाते हैं। आधुनिक दृष्टि में संकल्प केवल इच्छा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है।
संकल्प तभी टिकता है जब हम विकल्पों को समझदारी से चुनते हैं। हर दिन हम छोटे-छोटे विकल्प चुनते हैं, सत्य या सुविधा, परिश्रम या बहाना, प्रेम या घृणा। यही विकल्प हमारे पूरे वर्ष की दिशा तय करते हैं। नया साल यह सिखाता है कि बड़े बदलाव बड़े फैसलों से नहीं, बल्कि रोज़ लिए गए सही विकल्पों से आते हैं।
प्रेम और सद्भाव की भावना हमें निजी दायरे से सामाजिक सरोकार तक रखनी चाहिए आज का समय तेज़ है, प्रतिस्पर्धी है और अक्सर संवेदनहीन भी। ऐसे में नया साल हमें प्रेम को नए अर्थ में समझने का अवसर देता है। प्रेम केवल व्यक्तिगत संबंधों तक सीमित नहीं होना चाहिए। सद्भाव का अर्थ असहमति के बावजूद सम्मान। अलग विचार रखने वाले से भी इंसान की तरह पेश आना। आधुनिक समाज में यही सबसे बड़ा उत्सव है। जब हम प्रेम और सद्भाव को जीवन की नीति बनाते हैं, तब नया साल केवल हमारा नहीं रहता, वह समाज का नया साल बन जाता है।
घृणा से मुक्ति सबसे ज़रूरी नववर्ष का संकल्प है कोई एक संकल्प सबसे अधिक ज़रूरी है, तो वह है घृणा को छोड़ने का संकल्प। घृणा हमें थकाती है, हमें संकीर्ण बनाती है और हमारे भीतर के मनुष्य को छोटा करती है। नया साल इस बोझ को उतारने का समय है। आधुनिक सोच यह नहीं कहती कि अन्याय को स्वीकार कर लिया जाए, बल्कि यह कहती है कि संघर्ष में भी मानवीय गरिमा बनी रहे। घृणा छोड़ना कमज़ोरी नहीं, बल्कि मानसिक स्वतंत्रता है।
हमारा लक्ष्य केवल सफलता नहीं, सार्थकता के साथ
नए साल में लक्ष्य तय किए जाते हैं, पैसा, पद, पहचान पर नहीं पर आधुनिक दृष्टि पूछती है इन लक्ष्यों का उद्देश्य क्या है। लक्ष्य केवल सफलता के लिए नहीं, सार्थकता के लिए होने चाहिए। ऐसा लक्ष्य जो केवल हमें नहीं, दूसरों को भी बेहतर जीवन दे सके।
जब लक्ष्य समाज और आत्मा दोनों के साथ जुड़ते हैं, तब सफलता अहंकार नहीं बनती, बल्कि सेवा का माध्यम बनती है।
परिवर्तन डरने की नहीं, गढ़ने की चीज। लोग परिवर्तन चाहते हैं, लेकिन उससे डरते भी हैं। नया साल परिवर्तन का प्रतीक है, पर आधुनिक सोच कहती है कि परिवर्तन बाहर नहीं, भीतर से शुरू होना चाहिए।
यदि सोच नहीं बदली, तो हालात बदलने से भी कुछ नहीं बदलेगा। परिवर्तन का अर्थ पुरानी गलतियों से सीखना, नई राह चुनना और ज़रूरत पड़ने पर खुद को फिर से गढ़ लेना। क्षमा और दया आत्मा की सफ़ाई के साथ नया साल मनाने से पहले ज़रूरी है। क्षमा और दया इसी सफ़ाई के साधन हैं। क्षमा दूसरों के लिए नहीं, हमारे अपने मन के लिए होती है। दया दूसरों को नहीं, हमें इंसान बनाए रखती है।
जब हम क्षमा करते हैं, तब हम अतीत की ज़ंजीरों से मुक्त होते हैं। यही सच्ची नववर्ष की शुरुआत है।
शील और सौहार्द आधुनिकता का नैतिक आधार हैं।
आधुनिक होने का अर्थ मूल्यहीन होना नहीं है। शील, विचार, भाषा और आचरण की मर्यादा, आज पहले से अधिक आवश्यक है। सौहार्द वह सेतु है जो विविधताओं को जोड़ता है। नया साल हमें यह याद दिलाता है कि सभ्यता की पहचान ऊँची इमारतों से नहीं, बल्कि ऊँचे चरित्र से होती है।
नूतन वर्ष हम नूतन सोच, समझ के साथ मनाएं।
नया साल मनाने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद से ईमानदार संवाद करें शोर, भीड़, तमाशा, दिखावा से दूर, एक शांत संकल्प के साथ आगे बढ़ें। घृणा, से अधिक प्रेम, कम शिकायत, अधिक प्रयास, कम अहंकार, अधिक करुणा अपनाएं नया साल तब सचमुच नया होगा, जब हम अपने भीतर कुछ नया और न्यायपन लाएंगे। यही आधुनिक सोच है, यही समय की माँग है, और यही नए साल का सच्चा उत्सव। फिर नए संकल्प और उमंग के साथ हमें तैयार हो जाना चाहिए।
!!समाप्त!!
संप्रति:-
प्रभुनाथ शुक्ल