एशिया का नाटो

0
437

-फख़रे आलम-
japan_flag30Aug1251657188_storyimage

जापान के प्रधानमंत्री ने 30 मई 2014 को सिंगापुर के अपने भाषण में एशियाई देशों के नाटो के गठन का सुझाव दिया था। जापानी प्रधनमंत्री ने सुरक्षा के लिये अमेरिका, जापान, भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के गठजोड़ की चर्चाएं कीं और इस क्षेत्रा में शान्ति प्रक्रिया को बहाल रखने में जापान की योगदान और भूमिकाएं अपना एक स्थान रखता है। साथ में एशियाई देशों के मध्य शान्ति और सौहार्द बनाए रखने के लिए एक गठबंध्न और उस पर जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है।

जापान पर अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबन्ध जिसके अधीन उसके द्वारा युद्ध सामग्री को बेचना और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लगे प्रतिबन्ध के कारण दक्षिणी एशिया की प्रगति और सहयोग जिस के कारण प्रान्त में अस्थाई शान्ति को बनाए रखना। उन्होंने गठबंध्न के सहयोग से एशिया में शान्ति को बनाए रखने का प्रस्ताव भी पेश किया था। जापान के प्रधनमंत्राी का प्रस्ताव भी पेश किया था। जापान के प्रधानमंत्री का इशारा चीन की ओर था जो चीन के विरुद्ध एशियाई देशों का एक मजबूत गठबंधन बनाए जाने के पक्ष में थे। प्रधानमंत्री एक सैनिक गठबंधन बनाने का इरादा रखते हैं। जापानी प्रधानमंत्री महाद्वीप में चीन की बढ़ती शक्ति से बहुत अधिक चिंतित है और अपने देशों के द्वा अतीत में ढाये गये अत्याचारों पर चिंतन नहीं करते है।

उपमहाद्वीप में हथियारों के जमा करने का ओर जापान ने ही महाद्वीप के देशों को समझाया है। जापान अपने नेतृत्व में महाद्वीप का सुरक्षा कवच बनाना चाहता है। आशा कम है कि जापान पर महाद्वीप के देशों का इतना बड़ा विश्वास पैदा होगा क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के द्वारा किए गये विश्वासघात अभी भी बाकी है। जापान ने चीन के वायु सुरक्षा को अमेरिकन समर्थन में तोड़ा है। वह भविष्य के लिये अच्छा नहीं है। अभी स्थिति स्पष्ट होती दिखाई नहीं पड़ रही है कि एशिया महाद्वीप के देश जापान के नेतृत्व में चीन के विरूद्ध इकट्ठा हो भी सकते हैं और इसके लिये कई सम्मेलन का आयोजन भी हो चुका है जिसके तहत आसियान सम्मेलन, आसियान अधिकारी सम्मेलन सहित इन देशों के विदेश मंत्री भी बैठक कर चुके हैं। आश्चर्य की बात यह रही कि जापान के प्रधानमंत्री जब सिंगापुर में अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे, ठीक उसी तसय मलेशिया के प्रधानमंत्री अपने चीन के अधिकारी दौरे पर थे, यह स्थिति दर्शाती है कि दक्षिण एशियाई देश आप में एक नहीं है।

चीन ओर मलेशिया एक मत है कि उपमहाद्वीप में उत्पन्न मनमुटाव को अंतर्राष्ट्रीय विषय नहीं बनाया जाये। मलेशिया और चीन के मध्य अनेकों साझा उद्यम को आगे बढ़ाने पर भी समझौते हुये हैं, यह स्थित उस मुलाकात के बाद उत्पन्न हुई है जब 24 अप्रैल को जापान के प्रधानमंत्री का अमेरिकन राष्ट्रपति से मुलाकत हुई थी। हकीकत में अमेरिकन चीन और जापान के वर्चस्व की लड़ाई में रेफरी का काम कर रहा है और अमेरिका चीन की प्रगति को बाधित करने के लिये जापान का प्रयोग कर रहा है।

22 अप्रैल से 29 अप्रैल के मध्य अमेरिकन राष्ट्रपति ने चार एशियाई देशों का अधिकारिक दौरा किया था। जिसमें उन्होंने आपान, दक्षिण कोरिया, फिलीपाइन्स और मलेशिया भी गये थे। इन चारों देशों के दौरों के अन्त में अमेरिकन राष्ट्रपति ने वेस्ट वाऐन्ट में जो सम्बोधन किया वह अमेरिका के नीति दक्षिण एशिया के सम्बन्ध् में से कुछ भी खुलासा नहीं हुआ। अर्थात् अमेरिका दक्षिण एशिया के अपने नीति का खुलासा नहीं करना चाहता। अमेरिका ने अपने दक्षिण एशिया के नीति को जापान पर छोड़ रखा है।

जापान के प्रधानमंत्री आशावान है कि भारत उनके प्रयास का सहयोग करेगा और चीन के विरुद्ध बनने वाले मार्चों का भारत सहयोगी बनेगा इसी के तहत जापान के प्रधनमंत्राी ने भारत के प्रधानमंत्री को जापान आने का न्योता दिया है। चीन के विदेश मंत्री का और 9 जून की भारत दौरा सम्पन्न हुआ है जिसके अधीन दोनों देशों ने अपनी अपनी पक्ष रखे थे। भारत के प्रधानमंत्री अपने निर्वाचन और प्रधानमंत्री बनने के पक्ष सर्वप्रथम उन्होंने भूटान का अधिकारिक दौरा किया। अब प्रधानमंत्री जापान जाने वाले हैं और उसके बाद भारत के प्रधानमंत्री का चीन जाने का योजना है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress