महिला सुरक्षा के नाम पर आश्वासनों की मात्र औपचारिकता नहीं निभाई जाए

संस्कृत में बड़े ही खूबसूरत शब्दों में नारी/स्त्री के बारे में कहा गया है कि-‘ नारीणां तु विशेषेण गुणान् संकीर्तयाम्यहम्। या यथा शक्तितः पूज्या धर्मे पन्थाः स एव सः‌‌।।’ इसका मतलब यह है कि स्त्रियों के गुणों का वर्णन विशेष रूप से करना चाहिए। वे जैसे भी हों, जिस शक्ति से युक्त हों, पूजनीय हैं – यही धर्म का मार्ग है। एक अन्य श्लोक में कहा गया है कि-‘ स्त्री शक्तिः परमं बलम्। या मातरः, या प्रेरकाः, या रक्षिण्यः सदा शुभाः।।’ इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि स्त्री ही परम शक्ति है – वह माँ है, प्रेरणा है, रक्षक है और सदा शुभव है, लेकिन भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को इतना महत्व प्रदान किए जाने, नारी सशक्तीकरण की बातों के बीच भी यदि आज देश की महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो यह हम सभी के लिए एक विडंबना होने के साथ ही साथ बहुत दुखद बात भी है। आज महिलाओं की सुरक्षा की बातें तो कमोबेश सभी सरकारें और राजनीतिक दल, प्रशासन, पुलिस, विभिन्न संगठन करते नजर आते हैं, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर धरातल पर कुछ ठोस नज़र नहीं आता है। आज मीडिया की सुर्खियों में आए दिन हमें महिलाओं के प्रति विभिन्न अपराध, बलात्कार, हिंसा, अश्लील व अनर्गल, अनैतिक टिप्पणियां जैसी अनेक खबरें पढ़ने सुनने को मिलती रहतीं हैं। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जब हम महिलाओं की असुरक्षा पर कोई खबर नहीं पढ़ते सुनते हों। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भी हमारा समाज कहीं न कहीं पुरूष प्रधान समाज ही है और हमारे समाज में आज महिलाओं की समानता, उनके विभिन्न अधिकारों की बातें तो खूब की जातीं हैं, लेकिन उनके लिए होता कुछ खास नहीं है। महिला सुरक्षा के प्रति ऐसी असंवेदनशीलता का परिचय आखिर क्यों ? होना तो यह चाहिए कि महिलाओं की सुरक्षा के प्रति हमारा समाज, हमारी सरकारें,हमारा प्रशासन, हमारे सभी राजनेता मिलजुलकर धरातल पर काम करें। कानून को सख्त होना ही चाहिए। महिला सुरक्षा के नाम पर किन्हीं भी आश्वासनों की मात्र औपचारिकता नहीं निभाई जाए। कहना ग़लत नहीं होगा कि कुछ ठोस हासिल होना चाहिए, महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर। आज महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देश में जगह-जगह तरह-तरह के अभियान, जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं,लेकिन इन  अभियानों में या तो दृष्टि की कमी साफ दिखती है या फिर लापरवाही या कोताही बरती जाती है, इसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। इस क्रम में, पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद में महिलाओं को बलात्कार से बचने के लिए घर पर रहने का आग्रह किया गया। वास्तव में, यह बहुत ही शर्मनाक है कि ये आग्रह अहमदाबाद यातायात पुलिस द्वारा पोस्टर के जरिए किया गया । महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस तरह के अभियान (प्रायोजित पोस्टरों) ने विवाद खड़ा कर दिया है। गुजरात के अहमदाबाद से आई यह खबर हैरान करती है कि यातायात पुलिस की ओर से सुरक्षा अभियान के तहत जागरूकता फैलाने के लिए जिस तरह के संदेशों वाले पोस्टर लगाए गए, उससे तो यही पता चलता है कि या तो ऐसे आयोजन संचालित करने वाले के पास न्यूनतम संवेदना और समझ का अभाव है या फिर वे एक आपराधिक मानसिकता का बचाव कर रहे हैं। पाठकों को बताता चलूं कि शहर के कुछ इलाकों में चिपकाए गए इन पोस्टरों की विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इन पोस्टरों को शहर के कुछ इलाकों में लगाया गया था, जिनमें लिखा था, ‘देर रात पार्टी में न जाएं, आपके साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार हो सकता है। ‘अपने दोस्त के साथ अंधेरे और सुनसान इलाके में न जाएं, अगर उसके साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार हो गया तो ?’ यह सामने आया है कि यह पोस्टर सोला और चांदलोडिया इलाकों में सड़क डिवाइडर पर लगाए गए थे, जिन्हें अब हटा लिया गया है।एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक की एक रिपोर्ट के अनुसार गुजराती में लिखे पोस्टर उक्त इलाकों में ( सोला और चांदलोडिया जैसे इलाकों में) डिवाइडर पर चिपके देखे गए, जिनमें से कई पर ‘सतर्कता’ नामक एक समूह का नाम था और प्रायोजक के रूप में अहमदाबाद यातायात पुलिस का उल्लेख था। इस संबंध में पुलिस उपायुक्त (पश्चिम यातायात) ने स्पष्ट किया कि-‘ट्रैफिक पुलिस ने केवल सड़क सुरक्षा से जुड़े पोस्टरों को प्रायोजित किया था, न कि महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित पोस्टरों को प्रायोजित किया गया था।’ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रैफिक पुलिस ने इन पोस्टरों को एक एनजीओ की ओर से लगाए जाना बताया गया है।जो भी हो, यह साफ दर्शाता है कि आज भी महिलाओं की सुरक्षा के प्रति हम जऱा से भी संवेदनशील नहीं हैं और समाज की सोच बिल्कुल जड़, संकीर्ण हो चुकी है। ताज़ा मामले में अहमदाबाद यातायात पुलिस ने सफाई दी है कि ऐसे संदेशों वाले पोस्टरों में उनका हाथ नहीं है। हालांकि,इसके लिए वास्तव में दोषी कौन है,यह तो जांच पड़ताल के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा, लेकिन यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि यदि ट्रैफिक  पुलिस की जानकारी या सहमति के बिना किसी कथित गैरसरकारी संगठन(एनजीओ) ने ऐसे पोस्टर लगाए, तो सार्वजनिक स्थानों पर लगाए जाने से पहले किसी जिम्मेदार अधिकारी ने इसकी जांच क्यों नहीं की ? सवाल यह भी है कि क्या गुजरात की महिलाएं रात में घर से बेधड़क बाहर निकल सकती हैं या नहीं ?’ सवाल यह भी कि क्या पुलिस और प्रशासन के साथ ही साथ हमारे समाज की जबावदेही तय नहीं होनी चाहिए ? बहरहाल, यह बहुत ही अफसोसजनक है कि जो संगठन और सरकारी महकमे महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करने का दावा करते हैं, वे ही असंवेदनशीलता बरतकर व संकीर्ण व ओछी मानसिकता का परिचय देकर किसी अपराध के लिए पीड़ित को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि लिंग-आधारित हिंसा को रोकने में पुरुषों और महिलाओं की भूमिका के बारे में उन्हें शिक्षित करने से दुर्व्यवहार और भेदभाव की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आ सकती है, लेकिन इसके लिए हमें सभी की(पुलिस , प्रशासन) जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी।आम आदमी को तो आगे आना ही होगा। महिला सशक्तीकरण आज के समाज की आवश्यकता है। अंत में, यही कहूंगा कि हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देश की असली ताकत उसकी महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण में निहित है। जब महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं, तो वे जीवन के हर क्षेत्र में फल-फूल सकती हैं, योगदान दे सकती हैं और प्रगति को गति दे सकती हैं। 

सुनील कुमार महला

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