पवन शुक्ला
_अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की माँग उत्तर प्रदेश में लगातार तेज़ हो रही है। हापुड़ से वाराणसी तक हुई घटनाओं ने वकीलों की असुरक्षा को उजागर किया है। विधि आयोग और बार काउंसिल अपनी सिफ़ारिशें सरकार को दे चुके हैं। अब ज़रूरत है कि विधानमंडल तुरंत अधिनियम लागू कर न्यायपालिका की रीढ़ को मज़बूती दे।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में वकील समाज का अभिन्न हिस्सा है। अदालत की चौखट पर जब आम नागरिक न्याय की उम्मीद लेकर पहुँचता है, तो उसका सबसे बड़ा सहारा अधिवक्ता ही होता है। अधिवक्ता न केवल अपने मुवक्किल का पक्ष रखते हैं, बल्कि न्यायपालिका और जनसाधारण के बीच एक सशक्त सेतु का कार्य करते हैं। किंतु दुखद है कि जो वर्ग कानून और व्यवस्था की रक्षा करता है, वही आज खुद असुरक्षित है।
अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की शुरुआत जुलाई 2021 में हुई, जब बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसका मसौदा प्रस्तुत किया। इसमें अधिवक्ताओं को हिंसा, धमकी और उत्पीड़न से बचाने के लिए कानूनी सुरक्षा के ठोस प्रावधान रखे गए। 2022 में संसद की स्थायी समिति ने मसौदे की समीक्षा कर संशोधनों की सिफारिश की। इसके बाद मार्च 2023 में राजस्थान पहला राज्य बना जिसने यह अधिनियम पारित कर अधिवक्ताओं को सुरक्षा का कवच दिया और अन्य राज्यों में भी उम्मीद जगाई।
उत्तर प्रदेश में यह माँग 29 अगस्त 2023 की हापुड़ घटना के बाद और तीव्र हो गई। उस दिन पुलिस ने न्यायालय परिसर में निहत्थे अधिवक्ताओं पर बेरहमी से लाठीचार्ज किया। न्याय की रक्षा करने वाले स्वयं न्यायालय परिसर में ही अपमानित और घायल किए गए। यह दृश्य पूरे प्रदेश की बार एसोसिएशनों को झकझोर गया और अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की माँग को और प्रबल बना दिया। इसके विरोध में 4 सितंबर 2023 को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने तीन-दिवसीय हड़ताल की घोषणा की और अदालतों में कामकाज ठप हो गया।
हापुड़ घटना के बाद 5 सितंबर 2023 को योगी सरकार ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति का दायित्व था कि वह अधिवक्ताओं से सुझाव लेकर एक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार करे और सरकार को अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम लागू करने के संबंध में ठोस दिशा-निर्देश दे। 9 सितंबर 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं की समस्याओं को देखते हुए एक न्यायिक समिति गठित की। समिति को 16 सितंबर से बैठकें शुरू करने का निर्देश दिया गया। अधिवक्ताओं ने पुलिस की बढ़ती दखलअंदाजी, मनमानी गिरफ्तारी और सुरक्षा की कमी की शिकायतें कीं। सितंबर के अंत तक 40 से अधिक शिकायतें मिलीं। अक्टूबर 2023 में अंतरिम रिपोर्ट में अधिवक्ताओं पर हमले को न्यायिक कार्यवाही में गंभीर बाधा बताया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने भी अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम का मसौदा तैयार कर राज्य विधि आयोग को सौंपा। विधि आयोग ने नवंबर 2023 में अपनी सिफारिशें दीं, जिनमें अदालत परिसरों में सीसीटीवी कैमरे लगाने, अधिवक्ताओं को सुरक्षित और पक्के चैंबर उपलब्ध कराने, सामूहिक बीमा योजना लागू करने और महामारी जैसी आपात परिस्थितियों में उन्हें न्यूनतम पंद्रह हजार रुपये मासिक आर्थिक सहायता देने का सुझाव शामिल था। आयोग ने यह भी कहा कि किसी अधिवक्ता की गिरफ्तारी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना न हो और गिरफ्तारी की स्थिति में 24 घंटे के भीतर संबंधित बार एसोसिएशन को सूचना दी जाए। अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रारूप में अधिवक्ताओं पर हिंसा, धमकी, उत्पीड़न, संपत्ति का नुकसान और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है। दोषी पाए जाने पर छह महीने से पाँच वर्ष तक की सजा और पचास हजार से दस लाख रुपये तक का जुर्माना होगा, जबकि पुनरावृत्ति की स्थिति में यह सजा दस वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी। अदालत को पीड़ित अधिवक्ता को मुआवजा देने का अधिकार होगा।
लेकिन अधिवक्ता समाज को अपेक्षित परिणाम अब तक नहीं मिले। प्रयागराज में अधिवक्ता अखिलेश शुक्ला की दिनदहाड़े हत्या ने यह संदेश दिया कि पेशेवर दायित्व निभाने वाले वकील भी असुरक्षित हैं। 17 सितंबर 2025 को वाराणसी जिला न्यायालय परिसर में पुलिस और वकीलों के बीच टकराव हुआ, जिसमें उपनिरीक्षक मिथिलेश कुमार गंभीर रूप से घायल हुए और लगभग 70 अधिवक्ताओं पर मुकदमा दर्ज किया गया। इस घटना के बाद अधिवक्ताओं ने काम का बहिष्कार किया और अदालतों का वातावरण तनावपूर्ण हो गया। 19 सितंबर 2025 को चंदौली में अधिवक्ता कमला यादव की हत्या उनके ही भाई द्वारा कर दी गई और मुरादाबाद में एक महिला अधिवक्ता पर रासायनिक हमला हुआ। यह घटनाएँ इस तथ्य को पुष्ट करती हैं कि मौजूदा कानूनी प्रावधान अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इन घटनाओं ने अधिवक्ता बिरादरी के आत्मविश्वास को गहरा आघात पहुँचाया। “हम अपने परिवार और बच्चों को हर रोज़ यह आश्वासन नहीं दे पा रहे कि हम सुरक्षित लौटेंगे। यह स्थिति अधिवक्ता बिरादरी के आत्मविश्वास को तोड़ रही है।” —वाराणसी के एक वरिष्ठ अधिवक्ता (स्थानीय अखबार से बातचीत, 2024)। युवा वकील और कानून पढ़ रहे छात्र-छात्राएँ अब सवाल करने लगे हैं कि क्या न्याय के लिए लड़ना उनके जीवन के लिए खतरा बन जाएगा। जब अधिवक्ता भयभीत रहेंगे, तो कौन नागरिक का पक्ष निर्भीक होकर अदालत में रख पाएगा? “अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना केवल पेशेवर संरक्षण नहीं, बल्कि पूरे समाज के न्याय की सुरक्षा है।” —बार काउंसिल ऑफ यूपी, 2024।
17 सितंबर की वाराणसी घटना के बाद 20 सितंबर 2025 को विधान परिषद सदस्य अशुतोष सिन्हा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम को तत्काल लागू करने की माँग की। उन्होंने कहा कि यदि सरकार अब भी ठोस कदम नहीं उठाती तो अधिवक्ता समाज का धैर्य टूट जाएगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष परेश मिश्रा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर वाराणसी में पुलिस की कथित बर्बरता की मजिस्ट्रेटी जांच और अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के त्वरित क्रियान्वयन की माँग की। आज स्थिति यह है कि बार काउंसिल और विधि आयोग दोनों अपनी रिपोर्ट और सुझाव सरकार को दे चुके हैं, राजस्थान अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम लागू कर उदाहरण प्रस्तुत कर चुका है, किंतु उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं को अब भी सुरक्षा की गारंटी नहीं मिली है। “यदि अधिवक्ता सुरक्षित नहीं होंगे, तो न्यायपालिका की रीढ़ टूट जाएगी। यह केवल वकीलों का प्रश्न नहीं, लोकतंत्र की आत्मा का प्रश्न है।” —उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के चेयरमैन शिव किशोर गौड़।
यहाँ मुद्दा केवल वकीलों की अभिरक्षा और सम्मानजनक वातावरण का नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की आत्मा का है। अधिवक्ता वह दीपक हैं जो अंधेरे में न्याय की लौ जलाए रखते हैं और समाज को अन्याय के अंधकार से मार्गदर्शन देते हैं। यदि यह दीपक डगमगा जाए, तो न केवल अधिवक्ताओं का अस्तित्व संकट में पड़ेगा, बल्कि नागरिकों के न्याय पाने का अधिकार भी कमजोर पड़ जाएगा। हापुड़ की लाठियाँ, प्रयागराज का खून, वाराणसी का टकराव और मुरादाबाद का अमानवीय हमला हमें यह चेतावनी दे रहे हैं कि अब देर की कोई गुंजाइश नहीं है। यह अधिनियम वकीलों के जीवन की ढाल नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सांस है। उत्तर प्रदेश की विधान सभा और विधान परिषद को इस पर अब और मौन नहीं रहना चाहिए। अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित कर न्याय की ज्योति को बचाना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है। यही समय है, यही अवसर है—यदि अभी नहीं तो शायद कभी नहीं।