कविता साहित्य प्रेम की माला July 5, 2013 | Leave a Comment कच्चे धागे प्रेम के, थोड़ा खिचतें ही बिखर जाएँ, चढ़ाओं इस पर धार विश्वास की ताकि पक्के हो जाए। पहनों इसको ध्यान से कहीं उलझन न कोई पड़ जाए, सुलझाओं फिर धैर्य से ताकि सिकुड़न न पड़ पाए।। प्रेम की डोर को तानों उतना ही कि टूटने न पाये, जुड़ने को पड़ी गांठ से फिर […] Read more » प्रेम की माला