कविता किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं April 15, 2020 / April 15, 2020 | Leave a Comment — अलका सिन्हा भला लगने लगा है साथ में परिवार के रहनाबड़े ही शौक से घर का, हर इक कोना सजा रखनान जाने कब से ख्वाहिश थी दबी-सी, मन में रहती थीसजा बिटिया को दुल्हन सा, मिलन बारात कर लूंकिसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं। मुझे चिढ़ हो गई अस्तित्ववादी […] Read more » किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं
कविता मुलाकात April 11, 2020 / April 11, 2020 | Leave a Comment मुलाकात नहीं हुई है कई रोज से हालांकि हम साथ-साथ रहते हैं। शाम को जल्दी आ जाना डॉक्टर के पास जाना है या फिर, जमा कर दिया है बिजली का बिल- नहीं होती है बात। बरसों-बरस साथ रहते, सोते, खाते दफ्तर जाते- नहीं होती मुलाकात। जिम्मेदारियां निभाते, काम निबटाते, खो जाती है बात। […] Read more » मुलाकात
कविता साहित्य लॉकडाउन के दिनों में April 5, 2020 / April 5, 2020 | Leave a Comment अलका सिन्हा बहुत गुरूर था जिन्हें अपने होने काबीमारी में भी नहीं लेते थे छुट्टीकि कुदरत थम जाएगी उनके बिनासफेद तौलिए से ढकी पीठ वाली कुर्सी पर बैठकरजो बन जाते थे खुदाआज वे सब हाथ बांधे घर में बैठे हैं। असेंशियल सेवाओं में नहीं है कहींउनके काम की गिनती! अलबत्ता उसका नाम है जिसके […] Read more » लॉकडाउन के दिनों में