विविधा वनपुत्रों की यही त्रासदी उनकी नियति March 30, 2014 | 3 Comments on वनपुत्रों की यही त्रासदी उनकी नियति -अमरेन्द्र किशोर- ओडिशा के कालाहांडी और नुआपाड़ा जिले की पहाड़िया जनजाति आजादी मिलने के ६७ साल बाद भी सरकारी तौर से जनजाति के दर्जा पाने से वंचित रहे हैं। यानि विकास की मुख्यधारा से पूरी तरह से दूर रहे पहाड़िया जनजाति के लोग सरकार की ओर से आदिवासियों को दी जानेवाली सुविधाओं से महरूम हैं। उल्लेखनीय […] Read more » forest residents problems वनपुत्रों की यही त्रासदी उनकी नियति
चुनाव राजनीति राजनीति और नैतिकता March 27, 2014 / March 30, 2014 | 6 Comments on राजनीति और नैतिकता -अमरेन्द्र किशोर- भारतीय राजनीति और समाज का यह परिवर्तन का दौर है। बदलाव के बयार में कुछ भ्रम है, पशोपेश है और कुछ अंतर्विरोध है। बहुत कुछ कहने और ज्यादा से ज्यादा दिखा सकने की कवायद है। लिहाजा समाज के कई वर्गों में आपसी धींगामुश्ती है, एक पर दूसरे की छींटाकशी है और दूसरे को […] Read more » politics and morality राजनीति और नैतिकता
आर्थिकी वादे हैं वादों का क्या ? July 29, 2011 / December 8, 2011 | Leave a Comment अमरेंद्र किशोर डेनमार्क के पत्रकार टॉम हैनमान की एक फिल्म कॉट इन माइक्रो-डेट चर्चाओं में है। बीते 30 नवम्बर को नार्वे टेलीविजन में इस फिल्म के प्रसारण के बाद पूरे विश्व भर में बहस गहराता जा रहा है कि गरीबों के उत्थान एवं उनकी समृद्धि के लिए चलाये जा रहे माइक्रो-फाइनेंस (लघु ऋण) का अर्ध्द-सत्य […] Read more » कॉट इन माइक्रो-डेट डॉ0 मोहम्मद युनूस
समाज कंडोम के उचित उपयोग ढ़ूँढने की जरूरत September 30, 2009 / December 26, 2011 | 6 Comments on कंडोम के उचित उपयोग ढ़ूँढने की जरूरत आज से सात साल पहले वाराणसी के एक पत्रकार श्री राजीव दीक्षित के एक खोजपूर्ण रिर्पोट को लेकर जमकर बावेला मचा। उक्त रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया था कि परिवार नियोजन कार्यक्रम को सफल बनाने के गरज से मुफ्त में बाटाँ जानेवाला कंडोम दम्पतियों के बेडरूम में जाने के बजाय साड़ी बुनकरों […] Read more » Condom कंडोम
खेत-खलिहान बेमौसम भी करें पानी की चिंता September 30, 2009 / December 26, 2011 | 2 Comments on बेमौसम भी करें पानी की चिंता बसंत आते ही पानी की चिंता हमें सताने लगती है। पानी की कमी की वजह से पलायन जैसी खबरें सुर्खियों में सजती हैं। जल संकट के नाम पर विचार गोष्ठियों का आयोजन होता है। इस संकट से निजात पाने के लिए सरकारी महकमों में हल्ला तूफान मचता है और बारिश आते ही हम जल संकट […] Read more » Unseasonable बेमौसम
खेत-खलिहान कितने भयावह हैं आहरों को मिटाने के नतीजे! September 29, 2009 / December 26, 2011 | 1 Comment on कितने भयावह हैं आहरों को मिटाने के नतीजे! झारखंड के लोक गीतों और लोक कथाओं में जहाँ जल स्त्रोंतों की स्तुति छलकती है वहीं सरकार द्वारा गठित विभिन्न आयोगों के रिपार्ट से इस बात की जानकारी मिलती है कि वहाँ कभी सिंचाई की बड़ी अच्छी व्यवस्था थी। उल्लेखनीय है कि 1860 ई0 में अंग्रजों ने भीषण अकाल के बाद ईस्ट इण्डिया इरीगेशन एण्ड […] Read more » Dangerous भयावह