शख्सियत समाज साक्षात्कार ‘राष्ट्रवाद के पथ प्रदर्शक और एकात्म मानव दर्शन के प्रवर्तक- पंडित दीनदयाल उपाध्याय September 23, 2025 / September 23, 2025 | Leave a Comment (25 सितंबर 2025, 109वीं जयंती पर विशेष आलेख) भारत की पावन भूमि सदैव से महापुरुषों की जन्मभूमि रही है। समय-समय पर यहाँ ऐसे युगपुरुष अवतरित हुए जिन्होंने अपने विचारों, कर्मों और त्याग से राष्ट्र को नई दिशा प्रदान की। ऐसी ही पुण्य भूमि पर 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान नामक गाँव […] Read more » एकात्म मानव दर्शन के प्रवर्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय
लेख शख्सियत समाज परमपूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी का वैराग्य नैसर्गिक था September 11, 2025 / September 11, 2025 | Leave a Comment (43वीं पुण्यतिथि 13 सितम्बर 2025 पर विशेष) स्वामी ब्रह्मानंद का व्यक्तित्व महान था। उन्होंने समाज सुधार के लिए काफी कार्य किए। देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जहां स्वयं को समर्पित कर कई आंदोलनों में जेल काटी। आजादी के बाद देश की राजनीति में भी उनका भावी योगदान रहा है। स्वामी जी ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही कार्य किए। समाज के लोगों को शिक्षा की ओर ध्यान देने का आह्वान किया। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज का जन्म 04 दिसंबर 1894 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा नामक गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ था। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज जी के पिता का नाम मातादीन लोधी तथा माता का नाम जशोदाबाई था। स्वामी ब्रह्मानंद के बचपन का नाम शिवदयाल था। स्वामी ब्रह्मानंद ने बचपन से ही समाज में फैले हुए अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरीतियों का डटकर विरोध किया। स्वामी ब्रह्मानंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। इसके पश्चात् स्वामी ब्रह्मानंद जी ने घर पर ही रामायण, महाभारत, गीता, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया। इसी समय से लोग उन्हें स्वामी ब्रह्मानंद से बुलाने लगे। कहा जाता है कि बालक शिवदयाल के बारे में संतों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो राजा होगा या प्रख्यात सन्यासी। बालक शिवदयाल का रुझान आध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा होने के कारण पिता मातादीन लोधी को डर सताने लगा कि कहीं वे साधु न बन जाए। इस डर से मातादीन लोधी ने स्वामी ब्रह्मानंद जी का विवाह सात वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया। आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। लेकिन स्वामी जी का चित्त अब भी आध्यात्मिकता की तरफ था। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग गेरूए वस्त्र धारण कर परम पावन तीर्थ स्थान हरिद्वार में भागीरथी के तट पर ‘‘हर कि पेड़ी’’ पर सन्यास कि दीक्षा ली। संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘‘स्वामी ब्रह्मानंद’’ के रूप में प्रख्यात हुए। संन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने सम्पूर्ण भारत के तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया। इसी बीच उनका अनेक महान साधु संतों से संपर्क हुआ। इसी बीच उन्हें गीता रहस्य प्राप्त हुआ। पंजाब के भटिंडा में स्वामी ब्रह्मानंद जी की महात्मा गांधी जी से भेंट हुई। गांधी जी ने उनसे मिलकर कहा कि अगर आप जैसे 100 लोग आ जायें तो स्वतंत्रता अविलम्ब प्राप्त की जा सकती है। गीता रहस्य प्राप्त कर स्वामी ब्रह्मानंद ने पंजाब में अनेक हिंदी पाठशालाएँ खुलवायीं और गोवध बंदी के लिए आंदोलन चलाये। इसी बीच स्वामी जी ने अनेक सामाजिक कार्य किये 1956 में स्वामी ब्रह्मानंद को अखिल भारतीय साधु संतों के अधिवेशन में आजीवन सदस्य बनाया गया और उन्हें कार्यकारिणी में भी शामिल किया गया। इस अवसर पर देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी सम्मिलित हुए। स्वामी जी सन् 1921 में गाँधी जी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी स्वामी ब्रह्मानंद जी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1928 में गांधी जी स्वामी ब्रह्मानंद के प्रयासों से राठ पधारे। 1930 में स्वामी जी ने नमक आंदोलन में हिस्सा लिया। इस बीच उन्हें दो वर्ष का कारावास हुआ। उन्हें हमीरपुर, हरदोई और कानपूर कि जेलों में रखा गया। उन्हें पुनः फिर जेल जाना पड़ा। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने पूरे उत्तर भारत में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में अलख जगाई। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय स्वामी जी का नारा था उठो! वीरो उठो!! दासता की जंजीरों को तोड फेंको। उखाड़ फेंको इस शासन को एक साथ उठो आज भारत माता बलिदान चाहती है। उन्होने कहा था की दासता के जीवन से म्रत्यु कही श्रेयस्कर है। बरेली जेल में स्वामी ब्रह्मानंद की भेट पंडित जवाहर लाल नेहरू जी से हुई। जेल से छूटकर स्वामी ब्रह्मानंद शिक्षा प्रचार में जुट गए। 1942 में स्वामी जी को पुनः भारत छोडो आंदोलन में जेल जाना पड़ा। स्वामी जी ने सम्पूर्ण बुंदेलखंड में शिक्षा की अलख जगाई आज भी उनके नाम से हमीरपुर में डिग्री कॉलेज चल रहा है। जिसकी नीव स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 1938 में ब्रह्मानंद विद्यालय के रूप में रखी। 1966 में गौ हत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद ने 10-12 लाख लोगों के साथ संसद के सामने आंदोलन किया। गौहत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद को गिरप्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। तब स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया कि अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से संासद रहे। जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे। देश की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतहासिक भाषण दिया था। 1972 में स्वामी जी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आग्रह पर कांग्रेस से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वीवी गिरि से स्वामी ब्रह्मानंद के काफी निकट संबंध थे। स्वामी जी की निजी संपत्ति नहीं थी। सन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इस प्रण का पालन मरते दम तक किया। स्वामी ब्रह्मानंद अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे। समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वह कहा करते थे मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता की है। कर्मयोगी शब्द का जीवंत उदाहरण यदि भारत देश में है तो स्वामी ब्रह्मानंद का नाम अग्रिम पंक्ति में लिखा है। कर्म को योग बनाने की कला अगर किसी में थी तो वो स्वामी ब्रह्मानंद जी ही थे। स्वामी जी का वैराग्य नैसर्गिक था उनका वैराग्य स्वयं या अपने आप तक सीमित नहीं था। बल्कि उनके वैराग्य का लाभ सारे समाज को मिला। हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले बुन्देलखण्ड के मालवीय नाम से प्रख्यात, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति, सन्त प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी 13 सितम्बर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए। लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी हमें राह दिखाती हैं। आज हम त्यागमूर्ति, संत प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी को उनकी 43वीं पुण्यतिथि 13 सितम्बर 2025 पर नमन करते हुए यही कह सकते हैं कि- ‘‘लाखों जीते लाखों मरते याद कहा किसी की रह जाती, रहता नाम अमर उन्ही का जो दे जाते अनुपम थाती’’ – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » परमपूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी
लेख शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती September 4, 2025 / September 4, 2025 | Leave a Comment 05 सितंबर 2025 शिक्षक दिवस पर विशेष शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आईना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरूप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में कहा जाये तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढता है। और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अन्त तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है। माता-पिता बच्चे को जन्म देते हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज हम किसी भी रूप में नहीं उतार सकते, लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया जाता है। क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है। इसलिये ही शिक्षक को समाज का शिल्पकार कहा जाता है। गुरु या शिक्षक का संबंध केवल विद्यार्थी को शिक्षा देने से ही नहीं होता बल्कि वह अपने विद्यार्थी को हर मोड़ पर उसको राह दिखाता है और उसका हाथ थामने के लिए हमेशा तैयार रहता है। विद्यार्थी के मन में उमडे हर सवाल का जवाब देता है और विद्यार्थी को सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करता है। एक शिक्षक या गुरु द्वारा अपने विद्यार्थी को स्कूल में जो सिखाया जाता हैं या जैसा वो सीखता है वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है जैसा वह अपने आसपास होता देखते हैं। इसलिए एक शिक्षक या गुरु ही अपने विद्यार्थी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है जो हमें गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है यहाँ पर शिक्षक अपने शिक्षार्थी को ज्ञान देने के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त शिक्षा भी देते हैं, जो कि एक विद्यार्थी में उच्च मूल्य स्थापित करने में बहुत उपयोगी है। जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति आता है तो वो भारत की गुणवत्ता युक्त शिक्षा की तारीफ करता है। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहाँ की प्रतिभा दब कर रह जायेगी बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को भी अच्छी शिक्षा नीति में तब्दील कर देता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो किसी भी देश के विकास में शिक्षा के महत्व को अधोरेखांकित करते हैं। वास्तविक रूप में ज्ञान ही शिक्षा का आशय है, ज्ञान का आकांक्षी है- विद्यार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक। एक शिक्षक द्वारा दी गयी शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। प्राचीन काल से आज पर्यन्त शिक्षा की प्रासंगिकता एवं महत्ता का मानव जीवन में विशेष महत्व है। शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहार कुशलता और योग्यता प्रदान करती है। शिक्षक को ईश्वर तुल्य माना जाता है। आज भी बहुत से शिक्षक शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की स्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ ऐसे भी शिक्षक हैं जो शिक्षक और शिक्षा के नाम को कलंकित कर रहे हैं, और ऐसे शिक्षकों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है, जिससे एक निर्धन शिक्षार्थी को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है और धन के अभाव से अपनी पढाई छोडनी पडती है। आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षक वह पथ प्रदर्शक होता है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाता है। आज के समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो गया है। शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। पुराने समय में भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। इससे छात्रों को बडी कठिनाई का सामना करना पड रहा है। शिक्षक ही भारत देश को शिक्षा के व्यवसायीकरण और बाजारीकरण से स्वतंत्र कर सकते हैं। देश के शिक्षक ही पथ प्रदर्शक बनकर भारत में शिक्षा जगत को नई बुलंदियों पर ले जा सकते हैं। गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो एक शिक्षार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना करते हैं और सही मार्ग दिखाते हैं। एक शिक्षार्थी को अपने शिक्षक या गुरु प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ हमको सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गयी शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। आज शिक्षक दिवस है, आज का दिन गुरुओं और शिक्षकों को अपने जीवन में उच्च आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित कर आदर्श शिक्षक और एक आदर्श गुरु बनने की प्रेरणा देता है। – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण
लेख अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस है April 29, 2025 / April 29, 2025 | Leave a Comment (अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, 01 मई 2025 पर विशेष आलेख) हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मई महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मई दिवस भी कहकर बुलाया जाता है। अमेरिका में 1886 में जब मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे करने के लिए हड़ताल की जा रही थी। इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो की हेय मार्केट में बम फोड़ दिया, इसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं, जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गयी। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत शिकागो में ही 1886 से की गयी थी। मौजूदा समय में भारत सहित विश्व के अधिकतर देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून बना हुआ है। अगर भारत की बात की जाए तो भारत में मजदूर दिवस के मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 से हुई। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस है। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है। लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्ट्रियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण हैं। आज जरूरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए। भारत देश में मजदूरों की मजदूरी के बारे में बात की जाए तो यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है, आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्ट्रियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है। जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है। पैसों के अभाव से मजदूर के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है। भारत में अशिक्षा का एक कारण मजदूरों को कम मजदूरी दिया जाना भी है। आज भी देश में ऐसे मजदूर है जो 1500-2000 मासिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार से मानवता का उपहास है। बेशक इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किये हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोई कार्यवाही की जाती है। आज जरुरत है कि इस महंगाई के समय में सरकारों को प्राइवेट कंपनियों, फैक्ट्रियों और अन्य रोजगार देने वाले माध्यमों के लिए एक कानून बनाना चाहिए जिसमे मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय की जानी चाहिए। मजदूरी इतनी होनी चाहिए कि जिससे मजदूर के परिवार को भूंखा न रहना पड़े और न ही मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़े। आज भी हमारे भारत देश में लाखों लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। जब किसी व्यक्ति को बिना मजदूरी या नाममात्र पारिश्रमिक के मजदूरी करने के लिए बाध्य किया जाता है या ऐसी मजदूरी कराई जाती है तो वह बंधुआ मजदूरी कहलाती है। अगर देश में कहीं भी बंधुआ मजदूरी कराई जाती है तो वह सीधे-सीधे बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का उल्लंघन होगा। यह कानून भारत के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन आज भी जनसंख्या के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को नहीं रोका जा सका है। आज भी देश में कमजोर वर्गों का बंधुआ मजदूरी के जरिए शोषण किया जाता है जो कि संविधान के अनुच्छेद 23 का पूर्णतः उल्लंघन है। संविधान की इस धारा के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को शोषण और अन्याय के खिलाफ अधिकार दिया गया है। लेकिन आज भी देश में कुछ पैसों या नाम मात्र के गेहूं, चावल या अन्य खाने के सामान के लिए बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। जो कि अमानवीय है। आज जरूरत है समाज और सरकार को मिलकर बंधुआ मजदूरी जैसी अमानवीयता को रोकने का सामूहिक प्रयास करना चाहिए। आज भी देश में मजदूरी में लैंगिक भेदभाव आम बात है। फैक्ट्रियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है। बेशक महिला या पुरुष फैक्ट्रियों में समान काम कर रहे हों लेकिन बहुत सी जगह आज भी महिलाओं को समान कार्य हेतु समान वेतन नहीं दिया जाता है। फैक्ट्रियों में महिलाओं से उनकी क्षमता से अधिक कार्य कराया जाता है। आज भी देश की बहुत सारी फैक्ट्रियों में महिलाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। महिलाओं से भी 10-12 घंटे तक काम कराया जाता है। आज जरुरत है सभी उद्योगों को लैंगिक भेदभाव से बचना चाहिए और महिला श्रमिक से सम्बंधित कानूनों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इसके साथ ही सभी राज्य सरकारों को महिला श्रमिक से सम्बंधित कानूनों को कड़ाई से लागू करने के लिए सभी उद्योगों को निर्देशित करना चाहिए। अगर कोई इन कानूनों का उल्लंघन करे तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। आज भारत देश में छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम हेतु मजबूर हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ्य रहते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है। बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है। जो कि सविधान के विरुध्द है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। बाल-श्रम की समस्या भारत में ही नहीं दुनिया कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। जिसका समाधान खोजना जरूरी है। भारत में 1986 में बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जायेगा। फैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने कड़े कानून होने के बाद भी बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता हैं। और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरुरत है। और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। इसके साथ ही बड़ी उम्र के मजदूरों को कोई भी बाल मजदूर दिखे तो उन्हें खुद बाल मजदूरी रोकने ले लिए आगे आना चाहिए और बाल मजदूरी का विरोध करना चाहिए। अगर देश से बाल मजदूरी रुकेगी तो मजदूर दिवस मनाना भी तभी सार्थक होगा। मजदूर दिवस के अवसर पर सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज को राष्ट्र और समाज की प्रगति, समृद्धि तथा खुशहाली में दिये श्रमिकों के योगदान को नमन करना चाहिए। देश के उत्पादन में वृद्धि और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो उच्च मानक हांसिल किये हैं वह हमारे श्रमिकों के अथक प्रयासों का ही नतीजा है। इसलिए राष्ट्र की प्रगति में अपने श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानकर सभी देशवासियों को उसकी सराहना करनी चाहिए। इसके साथ ही मजदूर दिवस के अवसर पर देश के विकास और निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाने वाले लाखों मजदूरों के कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय और निष्ठा का सम्मान करना चाहिए और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज को सदैव तत्पर रहना चाहिए। – ब्रह्मानंद राजपूत Read more »
लेख स्वास्थ्य-योग सरकार के छोटे-छोटे कदम टीबी मुक्त भारत की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे March 24, 2025 / March 24, 2025 | Leave a Comment (विश्व क्षयरोग दिवस, 24 मार्च पर विशेष आलेख) हर साल हम 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता […] Read more » Small steps taken by the government will prove to be a milestone in the direction of TB free India विश्व क्षयरोग दिवस
राजनीति प्रगतिशील भारत के निर्माण में समर्पित होने का संकल्प लेने का दिन है गणतंत्र दिवस January 26, 2025 / January 27, 2025 | Leave a Comment (76 वें गणतंत्र दिवस पर विशेष आलेख) गणतंत्र शब्द का साधारण अर्थ है ’’लोगों का तंत्र’’ यानी कि जिस संविधान द्वारा हमारे देश में कानून का राज स्थापित है, उस संविधान से ही हमारे देश के तंत्र को मजबूती मिलती है और उसी तंत्र को भारतवासी मानते हैं। इसलिए हमारे देश को गणतांत्रिक देश बोला […] Read more » Republic Day is the day to take a pledge to be dedicated to building a progressive India. प्रगतिशील भारत के निर्माण में समर्पित होने का संकल्प
राजनीति शख्सियत कल्याण सिंह ने श्री राम जन्मभूमि और धर्म के लिए सत्ता का त्याग किया January 5, 2025 / January 7, 2025 | Leave a Comment (कल्याण सिंह जी की 93वीं जन्म-जयंती पर विशेष आलेख) भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत और भारतीय राजनीति में भगवान श्री रामचंद्र जी के हनुमान हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति में अनेकों मिसाल पेश की हैं। हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह का राजनीतिक व व्यक्तिगत जीवन हमेशा से बेदाग रहा है। कल्याण सिंह के कुशल प्रशासन की मिसालें तब तक दी जायेंगी जब तक ये संसार रहेगा। कल्याण सिंह ने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के नेता’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर हिन्दू युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह का व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। कल्याण सिंह को भारतीय राजनीति में बाबूजी के रूप में जाना जाता था। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी सन् 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ जनपद की अतरौली तहसील के मढ़ौली ग्राम के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ। कल्याण सिंह के पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम सीता देवी था। कल्याण सिंह में बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमता थी। कल्याण सिंह बचपन में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए थे और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की शाखाओं में भाग लेने लगे थे। कल्याण सिंह ने विपरीत परिस्थितियों में कड़ी मेहनत कर अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद कल्याण सिंह ने अध्यापक की नौकरी की। और साथ-साथ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ कर राजनीति के गुण भी सीखते रहे। कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में रहकर गांव-गांव जाकर लोगों में जागरुकता पैदा करते रहे। कल्याण सिंह का विवाह रामवती देवी से हुआ। कल्याण सिंह के दो संतान है। एक पुत्र और एक पुत्री, पुत्र का नाम राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया है और पुत्री का नाम प्रभा वर्मा है। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया वर्तमान में उत्तर प्रदेश की एटा लोकसभा सीट से संसद सदस्य हैं। कल्याण सिंह ने अपना पहला विधानसभा चुनाव अतरौली से जीतकर 1967 में उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे। कल्याण सिंह 1967 से लगातार 1980 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच देश में आपातकाल के समय कल्याण सिंह 1975-76 में 21 महीने जेल में रहे। इस बीच कल्याण सिंह को अलीगढ़ और बनारस की जेलों में रखा गया। आपातकाल समाप्त होने के बाद 1977 में रामनरेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। जिसमें कल्याण सिंह को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। सन् 1980 के उत्तर प्रदेश के चुनावों में कल्याण सिंह विधानसभा का चुनाव हार गये। भाजपा के गठन के बाद कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश का संगठन महामंत्री बनाया गया। इस बीच कल्याण सिंह ने गाँव-गाँव, घर-घर जाकर भाजपा को उत्तर प्रदेश में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। कल्याण सिंह 1985 से लेकर 2004 तक लगातार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच कल्याण सिंह दो बार भाजपा के उत्तर प्रदेश से प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में राम मंदिर आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन में कल्याण सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ। और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी। जिसमे कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही। और कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों द्वारा अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया। कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये 6 दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। यहीं से भाजपा को कल्याण सिंह के रूप में हिंदुत्ववादी चेहरा मिल गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ के अतरौली और एटा के कासगंज से विधायक निर्वाचित हुये। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनायी। और उत्तर प्रदेश विधान सभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने। इसके बाद कल्याण सिंह 1997 से 1999 तक पुनः दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल में कानून व्यवस्था एक दम मजबूत थी। इसलिए आज तक उत्तर प्रदेश में लोग कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल की मिसाल देते हैं। 1998 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में 58 सीटें जीती। 1999 में भाजपा से मतभेद के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी। कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। 2002 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने दम पर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से लड़ा और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के चार विधायक चुने गए और कल्याण सिंह ने बड़े स्तर पर पूरे प्रदेश में भाजपा को नुकसान पहुँचाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश की जमीन पर भाजपा कई वर्षो तक कल्याण सिंह की उथल पुथल का और भाजपा के नकारा नेताओं की साजिश का शिकार बनी रही। लेकिन इसका फायदा न कल्याण सिंह को मिल पाया न भगवा पार्टी को। भाजपा और कल्याण सिंह दोनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर चले गए। 2004 में कल्याण सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के आमंत्रण पर भाजपा में वापसी तो कर ली लेकिन, उनको वो पॉवर नहीं मिली जो मंदिर आन्दोलन के समय उनके पास थी। 2004 के आम चुनावों में उन्होंने बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। और कल्याण सिंह पहली बार बुलंदशहर लोकसभा सीट से संसद पहुंचे। 2007 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा। कहने को भाजपा ने 2007 में कल्याण सिंह को भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तो बना दिया लेकिन नाम का, जिसके पास ना तो उम्मीदवार तय करने की पावर थी और ना ही उनके अंडर में उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रबंधन था। इसलिए वो चुनाव में कुछ अच्छा नहीं कर सके। इसके बाद 2009 में पुनः अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मतभेदों के कारण भाजपा का दामन छोड कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। 2009 के लोकसभा चुनावों में एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये। फिर 2009 लोकसभा चुनाव खत्म होते ही मुलायम ने कल्याण से नाता तोड़ लिया। क्योंकि कल्याण सिंह की बजह से मुस्लिम समुदाय के लोग उनसे नाता तोड़ चुके थे। इसके बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी का गठन किया जो कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ विशेष नहीं कर सकी। लेकिन मुलायम के परम्परागत वोट उनके पास वापस आ गए। इसके बाद 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में पुनः वापसी हुई और कल्याण सिंह का परंपरागत लोधी-राजपूत वोट भी भाजपा से जुड़ गया। और 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के कहने पर कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में भाजपा का खूब प्रचार किया। भाजपा ने अकेले अपने दम पर 80 लोकसभा सीटों से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। और नरेंद्र मोदी देश के यशस्वी प्रधानमंत्री बनें। इसके बाद किसी समय देश के भावी प्रधानमंत्री कहे जाने वाले कल्याण सिंह को राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया। इसके बाद कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। लेकिन राजस्थान का राज्यपाल रहते हुए भी कल्याण सिंह का दखल उत्तर प्रदेश की राजनीति में रहा। कल्याण सिंह ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में अपना 05 साल का कार्यकाल पूरा किया और 08 सितम्बर 2019 तक कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल रहे। इसके बाद कल्याण सिंह ने 09 सितम्बर 2019 को लखनऊ में भाजपा की पुनः सदस्यता ली और फिर से भाजपाई हो गए। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कल्याण सिंह का अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावी दखल रहा। 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के अधिकतर प्रत्याशी कल्याण सिंह का जयपुर राजभवन में आशीर्वाद लेने जाते रहे। इसी से पता चलता है कि कल्याण सिंह जनमानस में कितने लोकप्रिय रहे है। लोग कल्याण सिंह सरकार की आज भी मिसालें देते हैं। क्योंकि कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के सीएम थे तब राज्य में काफी सुधार और विकास की चीजें हुई थीं। जिससे उनकी लोकप्रियता पिछड़ों सहित सर्वणों में भी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने भाषणों में कल्याण सरकार के कुशल प्रशासन की मिसाल देते हैं। कल्याण सिंह अपने समय पर उत्तर प्रदेश के हिंदुत्ववादी सर्वमान्य नेता थे। उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीति, कुशल प्रशासन और हिंदुत्ववादी छवि के लिए जाने वाले श्रीराम के भक्त कल्याण सिंह ने (21 अगस्त 2021) को 89 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के योद्धा, धर्म के लिए सत्ता का त्याग करने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी की आज 93वीं जन्म-जयंती है। जब जब धर्म के लिए त्याग की चर्चा होगी श्री कल्याण सिंह जी के नाम का विशेष उल्लेख होगा। अयोध्या में आज भव्य रामलला के मंदिर की जो परिकल्पना साकार हुयी है उसमें भी स्वर्गीय श्री कल्याण सिंह जी का योगदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। लेखक ब्रह्मानंद राजपूत Read more » कल्याण सिंह
राजनीति नयासाल, मोदी और तमाम चुनौतियों का सामना December 30, 2024 / December 30, 2024 | Leave a Comment (नववर्ष 2025 पर विशेष आलेख) हर वर्ष नया साल नयी उम्मीदें लेकर आता है और लोगों के लिये नये लक्ष्य लेकर आता है। नया साल जो कार्य पिछले साल में अधूरे रह गए थे उन कार्यों को नयी ऊर्जा से पूर्ण करने की प्रेरणा और आधार देता है। नए साल में हर व्यक्ति को नए अहसास के साथ अपने अधूरे कार्यों को पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए और अपने लिए नए लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए व नयी सोच के साथ उन लक्ष्यों को साकार करने का प्रण लेना चाहिए। नया वर्ष हर व्यक्ति के लिए बीते हुए वर्ष की सफलताओं और उपलब्धियों के साथ-साथ कमियों और गलतियों का मूल्यांकन करने का समय है। यह हमें अपने आप को भावी वर्ष के लिए योजना बनाने, कार्य करने तथा आगामी वर्ष के लिए नये लक्ष्य तय करने का अवसर प्रदान करता है। नए साल की शुरुआत में हर व्यक्ति को भावी वर्ष के लिए नए लक्ष्य बनाने चाहिए और उन्हें पूरा करने की रणनीति बनानी चाहिए। जिससे कि अवसरों को सफलता में बदला जा सके। पूरे विश्व का माहौल हर वर्ष नए साल पर खुशनुमा होता है, हर देश में अपने-अपने तरीके से अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत किया जाता है। भारत देश में बात की जाए तो यहाँ पर भारतीय काल गणना के अनुसार पारंपरिक नया साल (नव विक्रम संवत) होता है जिसकी शुरुआत चैत्र महीने से होती है- उसी के अनुसार भारत में प्रमुख त्योहारों के समय का निर्धारण होता है। भारतीय संस्कृति में नव वर्ष का शुभारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से माना जाता है, लेकिन पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध व विश्वव्यापी अंग्रेजी कलेंडर की मान्यता के चलते भारतीय नव विक्रम संवत मनाने की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। भारत में शादी-विवाह, विभिन्न धार्मिक आयोजनों और अन्य प्रमुख कार्यों का मुहूर्त भी हिन्दू नवसंवत्सर (नव विक्रम संवत) के अनुसार ही निकाला जाता है। भारत देश में अंग्रेजी नववर्ष बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। पिछले कुछ दशकों से भारत देश में भी अंग्रेजी नववर्ष को अंग्रेजों की भांति मनाया जाने लगा था। जिसमें कि जगह-जगह शराब पार्टियों का आयोजन होना, अष्लील नृत्य पार्टी का आयोजन शामिल था। लेकिन पिछले कुछ सालों से भारत देश में भी अंग्रेजी नववर्ष मनाने का स्वरुप बदला है, आज की कुछ युवा पीढ़ी अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत मंदिरों में पूजा पाठ और घरों में धार्मिक आयोजन कर कर रही है जो कि भारतीय संस्कृति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी नववर्ष में पूजापाठ या धार्मिक आयोजनों या जगह-जगह पर भंडारों के आयोजित होने से दुनिया के बाकी समुदाय भी भारतीय संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे है। इसी तरह से भारत के लोग अपनी संस्कृति को सहेज कर रखेंगे तो निश्चित ही आने वाले समय में भारतवर्ष का बोलबाला होगा और भारत देश जगद्गुरु के सिंहासन पर काबिज होगा। अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत हम लोग करते ही है और करना भी चाहिए लेकिन इसी तरह धूमधाम से हमें अपने पारंपरिक नए साल (नव विक्रम संवत) को भी मनाना नहीं भूलना चाहिए। एक हद तक भारत देश के लोगों में अपने पारंपरिक नववर्ष (नव विक्रम संवत) के लिए जागरूकता बढ़ने लगी है लेकिन इस पर अभी और काम होना बाकी है। आज हमें अंग्रेजी नववर्ष को मनाने की जो पाश्चात्य संस्कृति थी उसमे बदलाव कर अपने भारतीय परिवेश में बदलना होगा, तभी हमारी संस्कृति का पूरे विश्व में बोलबाला होगा। हमारे देश के प्रमुख संगठनों, धार्मिक गुरुओं और सरकार को इसके लिए और कदम उठाने की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में उक्त सभी ने भारतीय संस्कृति को बनाये रखने के लिए काफी काम किया है, तभी भारतीय लोगों में राष्ट्रीयता का संचार हुआ है। भारत सरकार और देश के सभी राज्यों की सरकारों को इस नववर्ष में देश के सभी नागरिकों के भले के लिए योजनाएं बनानी चाहिए, जिसमे शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार इस समय देश में बहुत सारी जनहितकारी योजनाएं चला रही है लेकिन शिक्षा, चिकित्सा और बेरोजगारी पर अभी बहुत काम होना बाकी है। देश की मोदी सरकार और सभी राज्य की सरकारों को देश को शिक्षा माफिआ, चिकित्सा माफिआ और भ्रष्टाचार की जड़ों को खत्म करने का अभियान चलाना चाहिए जिससे कि देश में राम राज्य की स्थापना हो सके और लोगों तक मुफ्त में नहीं सस्ते में इन सुविधाओं की पहुंच हो सके। भारत के लोगों को मुफ्त में सुविधाओं की जरूरत नहीं है, बल्कि सस्ते दामों में भारत की सरकारों को ये सुविधायें देश के अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचानी चाहिए तभी देश में अंत्योदय का सपना साकार होगा। भारतीय लोग मुफ्त की योजनाओं की जगह आत्मनिर्भर बनकर भारतीय झंडा गाड़ना चाहते हैं। पिछले दस सालों में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अनेक नई शुरूआतें की गईं हैं तथा कई महत्वपूर्ण योजनाएं आरंभ की गई हैं। जिनका लाभ भी आम लोगों को मिला है लेकिन अभी भी मोदी सरकार को अपनी बहुत सारी योजनाओं को उनकी परिणति तक पहुंचाना होगा और अच्छे परिणाम देने होंगे। जिससे देश के हर व्यक्ति तक विकास पहुँच सके। नरेंद्र मोदी सरकार को शासन को सभी स्तरों पर कुशल, पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त, जवाबदेह और नागरिक अनुकूल बनाना होगा। जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से प्रयासरत हैं। वर्ष 2025 में मोदी सरकार को महिलाओं की सुरक्षा के साथ-साथ बेहतर लैंगिक संवेदनशीलता भी सुनिश्चित करनी होगी और जातिगत भेदभाव को जमीनी स्तर से खत्म करने की लोगों में अलख जगानी होगी। इसके अलावा देश में मोदी सरकार को ठेकेदारी प्रथा और आउटसोर्सिंग को देश से समाप्त करने की पहल करनी चाहिये क्योंकि ठेकेदारी प्रथा और आउटसोर्सिंग- गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों का शोषण करने का माध्यम बन गया है। ठेकेदारी प्रथा और आउटसोर्सिंग के तहत जो लोग कार्य करते हैं उनसे लगातार वसूली की जाती है, जिसमें सरकारी तंत्र के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल है। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में ठेकेदारी प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगानी चाहिए। कहा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र को उपलब्धियों की नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए तहेदिल से और एकाग्रचित होकर प्रयास करना होगा। जो कि उनके हर प्रयास में दिखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिये वर्ष 2025 में अनेक उपलब्धियां गढ़ने का अवसर है। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सम्पूर्ण देश का नागरिक एक सशक्त, एकजुट एवं समृद्ध भारत के निर्माण की दिशा में मिलकर काम करने का संकल्प लें तो देश को आगे बढ़ने से कोई ताकत नहीं रोक सकती। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने बीते वर्षों में अनेक उपलव्धियाँ हांसिल की हैं, साथ-साथ अनेक सफलताएं भी पायी हैं। इन सफलताओं और उपलब्धियों में मोदी सरकार को अपनी गलतियों और कमियों पर पर्दा नहीं डालना चाहिए। बल्कि अपनी गलतियों और कमियों का मूल्यांकन करके भावी वर्ष के लिए रणनीति बनानी चाहिए। जिससे कि गलतियों और कमियों को सुधारकर अवसरों में बदला जा सके। – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » Modi and many challenges to face New Year
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार अटल जी का सार्वजनिक जीवन बेदाग और साफ सुथरा रहा December 27, 2024 / December 27, 2024 | Leave a Comment (युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती 25 दिसम्बर 2024 पर विशेष आलेख) भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को वो सही मायने में भारत रत्न थे। इन सबसे भी बढ़कर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी एक अच्छे इंसान थे। जिन्होंने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के प्रधानमंत्री’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और जिसका उन्होंने अपने अंतिम समय तक निर्वहन किया। बेशक अटल बिहारी वाजपेयी जी कुंवारे थे लेकिन देश का हर युवा उनकी संतान की तरह था। देश के करोड़ों बच्चे और युवा उनकी संतान थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का बच्चों और युवाओं के प्रति खास लगाव था। इसी लगाव के कारण पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी बच्चों और युवाओं के दिल में खास जगह बनाते थे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। सब के चहेते और विरोधियों का भी दिल जीत लेने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा था इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा। तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता था। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी की बातें और विचार सदां तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में जवान सोच झलकती थी। यही झलक उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बनाती थी। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तब विपक्ष भी उनकी तर्कपूर्ण वाणी के आगे कुछ नहीं बोल पाता था। अपनी कविताओं के जरिए अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे। उनकी कविताएँ उनके प्रशंसकों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेगी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटल जी के पिता का नाम पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापक थे। कृष्ण बिहारी वाजपेयी साथ ही साथ हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के रहने वाले थे। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे ब्रज सहित आगरा से खास लगाव था। अटल बिहारी वाजपेयी जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाने वाले विक्टोरिया कालेज में हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डी. ए. वी. महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता और कवि थे। ये गुण उन्हें उनके पिता से वंशानुगत मिले। अटल बिहारी वाजपेयी जी को स्कूली समय से ही भाषण देने का शौक था और स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्य पाठ और भाषण जैसी प्रतियोगिताएं में हमेशा हिस्सा लेते थे। अटल बिहारी वाजपेयी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बनें और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लम्बे समय तक राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने लंबे समय तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम किया। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। अटल जी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ की और से संसदीय दल के नेता रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को प्रभावित किया। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के संसद में दिए ओजस्वी भाषण को सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनको भविष्य का प्रधानमंत्री तक बता दिया था। और आगे चलकर पंडित जवाहर लाल नेहरू की भविष्यवाणी सच भी साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा सम्बन्ध मधुर रहे। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में विजय श्री के साथ बांग्लादेश को आजाद कराकर पाक के 93 हजार सैनिकों को घुटनों के बल भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करवाने वाली देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी को अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दुर्गा की उपमा से सम्मानित किया था। और 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। आपातकाल की वजह से इंदिरा गाँधी को 1977 के लोकसभा चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी। और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी जिसके मुखिया स्वर्गीय मोरारजी देसाई थे। और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री रहते हुये पूरे विश्व में भारत की छवि बनायीं। और विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। अटल जी 1977 से 1979 तक देश के विदेश मंत्री रहे। 1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन अटल जी 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया। 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गयी। लेकिन इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा। अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की। लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गयी जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली। कारगिल युध्द की विजयश्री का पूरा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को दिया गया। कारगिल युध्द में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनायी। और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन पाँच वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। और राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू की। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। 2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा। लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। लेकिन वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनायी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ्य रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया। अटल जी को देश-विदेश में अब तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया। भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। अटल जी भारत देश के लोगों के जीवन में अपनी महान उपलब्धियों और अपने विचारों का ऐसा उजाला डाल कर गए हैं जो कि देश के नौजवानों को सदां राह दिखाते रहेंगे। अटल जी सदा मुस्कराहट का परिधान पहने रहते थे उनकी मुस्कुराहट उनकी आत्मा के गुणों को दर्शाती थी उनकी आत्मा सच में एक पवित्र आत्मा थी जिसे दैवीय शक्ति प्राप्त थी। अटल जी की ईमानदारी, शालीनता, सादगी और सौम्यता हर किसी का दिल जीत लेती थी। उनके जीवन दर्शन और कविताओ ने भारत के युवाओं को एक नई प्रेरणा दी। करोङो लोगों के वह रोल मॉडल हैं। भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में देश के आर्थिक विकास और गरीब वर्ग के सामाजिक कल्याण के लिए उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह को राष्ट्र हमेशा याद करेगा। उनकी अटल आवाज और उनके किये महान कार्य हमेशा राष्ट्र के बीच अमर रहेंगे। Read more » 100th birth anniversary of great man Atal Bihari Vajpayee अटल जी युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार सावन के तीसरे सोमवार को लगता है आगरा का सुप्रसिद्ध कैलाश मेला August 5, 2024 / August 5, 2024 | Leave a Comment हमारे भारत देश में एक समृद्ध आध्यात्मिक और धार्मिक विरासत के साथ, कई धर्मों का पालन किया जाता है। नतीजतन धार्मिक त्योहारों की एक बड़ी संख्या को मनाया जाता है। ऐसा ही एक त्योहार आगरा का सुप्रसिद्ध कैलाश मेला है। आगरा का यह सुप्रसिद्ध कैलाश मेला हर वर्ष सावन महीने के तीसरे सोमवार को लगता […] Read more »
लेख माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग May 16, 2024 / May 16, 2024 | Leave a Comment (मातृ दिवस 12 मई 2024 पर विशेष आलेख) आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दर्शाता है, वह माँ ही होती है पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है। लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं। Read more » Heaven is found at mother's feet मातृ दिवस 12 मई
लेख माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग May 13, 2024 / May 13, 2024 | Leave a Comment (मातृ दिवस 12 मई 2024 पर विशेष आलेख) आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दर्शाता है, वह माँ ही होती है पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है। लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं। लेखक – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » Heaven is found at mother's feet