डॉ घनश्याम बादल

डॉ घनश्याम बादल

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लेखक वरिष्ठ हिंदी कवि एवं समीक्षक हैं

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राजनीति

जनगणना में जाति के निहितार्थ

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डॉ घनश्याम बादल जनसंख्या दिवस पर चारों तरफ से एक जैसी ही आवाज़ें भारत में चारों तरफ़ से उठती हैं कि जैसे भी हो, सुरसा के मुख सी बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगे । बेशक, भारत में जनविस्फोट एक बड़ी समस्या है और बावजूद सारे उपाय के जनवृद्धि दर पर नियंत्रण दुष्कर सिद्ध हो रहा है ।    आज़ादी के बाद से ही जनसंख्या हैरतअंगेज तेजी से बढ़ी है। ‌बेतहाशा बढ़ती हुई जनसंख्या ने अच्छी खासी विकास दर को भी बेमानी सिद्ध कर दिया है।    अशिक्षा, गरीबी, रूढ़िवादिता, धार्मिक कट्टरता और अपने संप्रदाय विशेष को हावी करने की कुटिल इच्छा जैसे कितने ही कारण हैं जनसंख्या के निरंतर बढ़ते जाने के । 1947 में 36 करोड़ लोगों का देश महज 78 साल में ही 143 करोड़ जनसंख्या वाले राष्ट्र में बदल गया यानि आज़ादी के बाद भारत की जनसंख्या 3 गुना से भी ज़्यादा बढ़ी ।      प्रतिवर्ष न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की कुल जनसंख्या से भी ज़्यादा लोग हमारे देश की जनसंख्या में जुड़ रहे हैं । स्वाभाविक रूप से इससे खाने, पहनने और रहने की समस्याएं विकराल रूप लेती गईं। राष्ट्रीय सरकारों ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान तो दिया मगर जो प्रतिबद्धता चाहिए थी वह नज़र नहीं आई। इसके पीछे  सबसे बड़ी वजह रही देश के एक खास वर्ग का वोट पैकेज में तब्दील हो जाना।  1911 के बाद 1921 में होने वाली जनगणना चार साल पिछड़ चुकी है लेकिन जल्दी ही भारत में एक बार फिर से जनगणना शुरू होने वाली है । विपक्ष और बिहार में नीतीश कुमार द्वारा बार-बार की जाने वाली मांग के बाद केंद्र सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है कि इस बार इस जनगणना में लोगों का जातिगत ब्यौरा भी दर्ज किया जाएगा ।      जातिगत ब्यौरे का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल आशंकाएं हैं कि यदि इस आंकड़े का उपयोग राजनीतिक लक्ष्य साधना के लिए किया गया तो फिर ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा मुद्दा पीछे छूट जाएगा एवं जातिगत जनगणना एक राजनीतिक औजार बनकर रह जाएगी।     राजनीति के एक खास वर्ग द्वारा लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि कभी धर्मग्रंथों का हवाला देकर तो कभी इस्लामिक स्टेट के सपने दिखाकर वर्ग विशेष के कट्टर धार्मिक नेता बरगलाते हैं और जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि जारी रहती है । हालांकि शिक्षा एवं जागरूकता बढ़ने के साथ जहां उच्च वर्गों में ‘हम दो हमारे दो’ के नारे से जन जागृति आई ,वहीं अब तो ‘बच्चा एक ही अच्छा’ के सिद्धांत पर एक बहुत बड़ा वर्ग चल रहा है. साफ सी बात है इस वर्ग ने जनसंख्या की वृद्धि पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया है हालांकि समाज के भी निचले तबकों में अभी वह जागृति देखने को नजर नहीं आती जो होनी चाहिए । जहां भारत क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया में सातवें नंबर पर है, वहीं जनसंख्या की दृष्टि से शिखर पर है। अब यह समय की मांग है कि सरकारों को निष्पक्ष तरीके से बिना डरे पूरी प्रतिबद्धता के साथ पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर ही देना चाहिए ।     बढ़ती हुई जनसंख्या के दृष्टिगत जनसंख्या नियंत्रण कानून के अंतर्गत इस प्रकार के प्रावधानों का होना आवश्यक हो कि एक सीमित संख्या तक परिवार बढ़ने पर ही लोगों को सब्सिडी, लोन या राशन आदि की सुविधा मिले। निर्धारित संख्या से ऊपर संतान उत्पत्ति पर प्रतिबंधात्मक प्रावधान हों ।    यह सच है कि ऐसी नीति एकदम लागू नहीं की जा सकती और  इसमें धार्मिक एवं सामाजिक प्रतिरोध भी आड़े आएगा । तब जनसंख्या नियंत्रण कानून को चरण दर चरण लागू करने की नीति अपनाई जा सकती है । जिस प्रकार से कई दूसरे देशों में संतान उत्पत्ति के नियम हैं उसी प्रकार से देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकारों को भी ऐसे प्रावधान अस्तित्व में लाने ही चाहिएं।   तार्किक तो यह होगा कि जबरदस्ती कानून थोपने के बजाय प्रेरक तरीके से जन जागरण अभियान चलाए जाएं खास तौर पर कम शिक्षित या अशिक्षित एवं धार्मिक अंधविश्वास से अधिक प्रभावित लोगों के लिए ऐसे धार्मिक संस्थानों की सहायता ली जा सकती है जो उन्हें बताएं कि संतान केवल ईश्वर की देन नहीं है अपितु यह एक शारीरिक प्रजनन क्षमता का परिणाम है। उन्हें यह समझाया जाए कि जितने अधिक बच्चे होंगे उसी अनुपात में उन्हें उतना ही कम खाना-पीना,  पहनना एवं रहने का स्थान उपलब्ध हो पाएगा जिसके परिणाम स्वरूप उनका जीवन स्तर भी निम्न श्रेणी का ही रहेगा।       स्कूलों एवं कॉलेजों तथा दूसरे प्रशिक्षण संस्थानों में भी विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से जन वृद्धि के दुष्परिणाम एवं उन्हें रोकने की व्यवहारिक उपायों की जानकारी दी जानी जरूरी है ।  यह कार्य केवल सरकारी स्कूलों वह कॉलेजों में ही नहीं अपितु धार्मिक स्कूलों व महाविद्यालय में भी लागू किया जाए । साथ ही साथ कम बच्चे पैदा करने वाले लोगों के लिए मुफ्त शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए इससे भी एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यदि सरकारों में प्रतिबद्धता हो तो बिजली, पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति वाली वस्तुओं की दरें भी एकल परिवारों के सदस्यों की संख्या के आधार पर तय  करने में भी कोई बुराई नहीं है ।     यदि जनसंख्या नियंत्रण पर ढुलमुल नीति जारी रही और प्रतिबंधात्मक व नकारात्मक प्रेरणा देते उपाय नहीं किए गए तो देश में प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधन, रोटी, कपड़ा, मकान और क्रय क्षमता जैसी चीजों में हम नीचे की ओर खिसकते चले जाएंगे । यदि हमें गर्त में जाने से बचना है तो जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही होगा, कैसे भी और किसी भी तकनीक से, उसके लिए चाहे जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना पड़े या लोगों में जन जागरण करके एक चेतना लानी पड़े अथवा कुछ और करना पड़े ।    आज हम उस स्थिति में खड़े हैं जहां एक ओर देश को जहां जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना पड़ेगा, वहीं ऐसी नीतियां भी बनानी पड़ेगी जिसमें जनसंख्या एक बोझ नहीं बल्कि ताकत बनकर सामने आए. चीन का उदाहरण हमारे सामने है. हम इस प्रकार की योजनाएं चलाएं जिसमें देश का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी तरह से दक्षता पूर्वक देश के विकास एवं उन्नयन में निरंतर सहयोग दे सके तो जनसंख्या एक बोझ नहीं, ताकत बन जाएगी।    बुद्धिमता इसी में है कि जो अभी दुनिया में हैं, उन्हें संभाला जाए, उनके जीवन स्तर को उच्च किया जाए, लोगों में नव चेतना एवं जागृति पैदा की जाए और जिन्हें दुनिया में आना है उनके आने को नियंत्रित करके उनके लिए एक बेहतर संसार और बेहतर देश बनाने की ओर कदम बढ़ाया जाए। ‌ साथ ही साथ सह भी तय करना होगा कि जहां जनगणना के आंकड़े यथार्थपरक हों, वहीं उसमें जाति का ब्यौरा जोड़ने के बाद इस बात की भी पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए कि इन आंकड़ों का उपयोग राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए नहीं किया जाएगा अन्यथा राजनीतिक दलों के हाथ में यह एक ऐसा हथियार लग जाएगा जो देश में विभेदीकरण को और अधिक बल देगा तथा इससे जाति संप्रदाय एवं धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर जनसंघर्ष बढ़ने की संभावनाएं भी बलवती होंगी। डॉ घनश्याम बादल 

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राजनीति

पाकिस्तान न्यौत रहा अपनी तबाही

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युद्ध विराम समझौता तोड़ा  डॉ घनश्याम बादल अभी युद्ध विराम की घोषणा की स्याही सूखी भी नहीं थी की बेगैरत पाकिस्तान ने अपने वचन  से मुकरते हुए भारत पर एक बार फिर ड्रोन हमला किया और एलओसी पर भी भारी गोलीबारी की । हालांकि मुस्तैद भारतीय सेना ने न केवल मुंह तोड़ जवाब दिया है अपितु पाकिस्तान को भारी नुकसान भी झेलना पड़ा है । अब दुनिया को सोचना पड़ेगा कि ऐसे देश का क्या किया जाए जिसके वचन और ज़बान का कोई भरोसा ही न हो ।  अभी कल रात तक देशभर में जोश, गुस्सा, चिंता और दुश्मन को सबक  सिखाने का जज्बा पूरी तरह हावी था । देश के सारे मीडिया चैनल और अखबार अपने-अपने तरीके से युद्ध की खबरों को टीआरपी के मसाले में लपेटकर पेश कर रहे थे । एंकर चीख – चीख कर पाकिस्तान के नेस्तनाबूद होने, वहां के एयर डिफेंस सिस्टम के तबाह होने और कितने ही आतंकवादियों के मरने, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा सेना के खिलाफ शस्त्र उठाने के साथ-साथ युद्ध का जोश परोस रहे थे ।  6 एवं 7 मई की रात को जब भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला करके उन्हें भारी क्षति पहुंचाई तब देश की सेना एवं राजनीतिक नेतृत्व की प्रशंसा के कसीदे सारे देश में काढ़े गए । वास्तव में यह एक बड़ा निर्णय भी था और साहसिक कदम भी।  साथ ही साथ कहा जाए तो 26 पर्यटकों की मौत के बदले कए लिए ऐसा होना जरूरी भी था ।     जिस तरह पहले दिन की रिपोर्ट आई और मीडिया के अनुसार कहा गया कि पाक बदहवास है, वहां घबराहट और भय का माहौल है तो पाकिस्तान की हिम्मत नहीं होनी चाहिए थी भारत पर प्रतिघात करने की ।  लेकिन गीदड़ भभकियों के साथ-साथ पाकिस्तान 8 मई की रात को अपने एयर स्ट्राइक और जम्मू कश्मीर सीमा पर भारी गोलाबारी के साथ अकड़ भरी बेहूदगी दिखाने पर उतर आया।  जिस तरह उसने करीब एक घंटा लगातार हमले किए वह चिंता का सबब था लेकिन हमारे एस 400 के के सुरक्षा चक्र ने उनकी मिसाइलों एवं ड्रोनों को हवा में ही मार गिराया तो एक बार फिर से भारतीयों का सीना गर्व से फूल उठा । उधर पुंछ जम्मू, राजौरी, श्रीनगर, अवंतीपोर जैसे इलाकों में भारी गोलाबारी करके उसने आम नागरिकों के जीवन एवं घरों तथा खेतों को क्षति पहुंचाई और तब तक उसे चैन नहीं पड़ा जब तक भारतीय सेवा ने एक बार फिर से अपने अचूक निशाने के साथ उसके सैन्य ठिकानों पर हमला नहीं बोला।   यदि सूत्रों की मानें तो उसी दिन उसका कराची पोर्ट लगभग तबाह हो गया, लाहौर तक में हमारी मिसाइल गिरी और हमले की फ़िराक में आए उसके दो एफ 16 एवं दो जेट फाइटर 17 नष्ट किए गए, 8 मिसाइल और बड़ी संख्या में उसके ड्रोन भी नष्ट हुए जो उसने आतंक का समर्थन कर रहे तुर्कीए से ले रखे थे । खैर न उसके काम अमेरिकी एफ 16 आए, न चीन के जेट फाइटर 17 उसे सफलता दिला सके साफ़ सी बात है कि सफलताएं साधनों से नहीं साधना एवं प्रशिक्षण से मिलती है  और उस देश में प्रशिक्षण केवल आतंकवादियों को दिया जाता है जो कायरों की तरह छुपकर हमला करते हैं और निर्दोषों की जान ले लेते हैं । नुकसान आतंकवादियों का भी कम नहीं हुआ उनके नौ ठिकाने पहले ही दिन नष्ट हुए और अगले दिन भी 12 ठिकानों को भारी नुकसान हुआ।  5 बड़े आतंकवादी मारे गए,मारे तो बहुत गए होंगे मगर पांच तो बड़े कुख्यात रहे।    इस बीच पाकिस्तान ने भारत के एयर बेस ठिकानों को भी निशाना बनाने की कोशिश की।  पठानकोट, जालंधर व जैसलमेर जैसे सैन्य ठिकानों पर उसने हमले करने की कोशिश की पर मुंह की खाई । कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस संघर्ष में पाकिस्तान के हाथ कुछ नहीं आया । सारी हेकड़ी भी निकल गई बदनामी तो ख़ैर उसकी पहले से ही दुनिया भर में है ।    बहुत सारे संसाधनों का नष्ट होना इस देश के लिए ऐसा ही है जैसे कंगाली में आटा गीला होना जिस अनाड़ीपन से पाकिस्तान ने हमले किए वह भी वहां की सेना के तकनीकी प्रशिक्षण एवं क्षमता पर बड़े सवाल खड़े कर गया।  ख़ैर युद्ध विराम की घोषणा हो गई है और इस सारे प्रकरण में सबसे ज्यादा भद्द पिटी है शहबाज शरीफ सरकार की, जो इस स्थिति में भी वहां नहीं रही कि वह अपनी सेना को युद्ध विराम के लिए भी मना सके आशंकाएं तो यह भी है कि 1999 की तरह ही इस बार भी वहां के जनरल ने अपनी मनमर्जी चलाते हुए यह संघर्ष शुरू किया ।  ख़ैर यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है वहां लोकतंत्र और सेना के बीच हमेशा से कुश्ती होती रही है जो आगे भी चलेगी और यदि वहां की सरकार ने सेवा की लगाम नहीं कसी तो  हो सकता है आने वाले कुछ महीनो में ही शाहबाज शरीफ भी इमरान खान की तरह ही या तो किसी जेल में दिन काट रहे हों या अपने बड़े भाई नवाज शरीफ की तरह विदेश जाने को मजबूर हो जाएं।    भले ही बयान वीर लोग इस युद्ध विराम की आलोचना करें लेकिन सच यही है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता बल्कि समस्याओं की वजह से युद्ध होते हैं और युद्ध के बाद समस्याएं मुंह बाए  लड़ने वालों के सामने खड़ी होती हैं।      अभी इस युद्ध विराम पर बहुत अधिक कुछ कहना ठीक नहीं होगा । अब भारत अपनी कितनी शर्तें मनवा पाया और पाकिस्तान अपनी नाक कितनी बचा पाया इसका पता तो 12 मई को दोनों देशों के बीच होने वाले वाली बैठकों के बाद ही पता चल पाएगा।  इस सीज फायर के पीछे जिस तरह अमेरिका एवं ईरान तथा सऊदी अरब सक्रिय होकर लगे इसके लिए इन देशों की भी प्रशंसा करनी होगी अन्यथा यह भी बहुत संभव था कि दक्षिण एशिया भी रूस एवं यूक्रेन की तरह युद्ध की लपटों से लंबे समय तक झुलस सकता था।   हां, एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत इस युद्ध विराम से पैदा हुई शांति से भ्रांति या गफलत में न रहे।  हमारे पड़ोसी का इतिहास हम जानते हैं इसलिए 24 घंटे हमें उसकी सेना, आई एस आई,  वहां के दहशतगर्द और देशभर में फैली उनकी स्लीपिंग सेल्स पर न केवल निगाह रखनी होगी बल्कि उनका एक परमानेंट इलाज भी ढूंढना होगा अन्यथा स्थिति में तो संघर्ष होते रहेंगे सीज फायर भी होते रहेंगे और समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहेगी । उम्मीद है हमारा वर्तमान मजबूत संकल्प वाला नेतृत्व और क्षमतावान सेना देश की उम्मीद पर खरा उतरते रहेंगे। 

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