खेत-खलिहान हिन्दी लेखकों की ‘बाजारवाद’ को लेकर गलत समझ – गिरीश मिश्रा November 13, 2010 / December 20, 2011 | 3 Comments on हिन्दी लेखकों की ‘बाजारवाद’ को लेकर गलत समझ – गिरीश मिश्रा पिछले कुछ वर्षों में हिंदी साहित्यकार और पत्रकार बडी संख्या में बाजार और एक अस्त्विहीन अवधारणा ‘बाजारवाद’ के खिलाफ लठ लेकर पडे हैं। कहना न होगा कि इन जिहादियों को न तो अर्थशास्त्र का ज्ञान है और न ही इतिहास का। अर्थशास्त्र में ‘बाजारवाद’ नाम की कोई भी अवधारणा नहीं है। अगर विश्वास न हो […] Read more » Marketism बाजारवाद
खेत-खलिहान लुप्त होता किसान- गिरीश मिश्रा November 13, 2010 / December 20, 2011 | 1 Comment on लुप्त होता किसान- गिरीश मिश्रा यदि वर्तमान भारत, विशेषकर हिंदी पत्रकारिता और साहित्य, को देखें तो किसान को लेकर स्पष्टता का सर्वथा अभाव मिलेगा। अनेक तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार और प्रख्यात साहित्यकार भी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि भारत में किसान नामक प्राणी का अस्त्वि समाप्त हो रहा है। जिसे हम आज किसान कहते हैं वह वस्तुत: खेतिहर है। दोनों […] Read more » Farmer किसान गिरीश-मिश्रा