महिमा सामंत

महिमा सामंत

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महिमा सामंत एक इंजीनियरिंग कॉलेज में रसायन शास्त्र की प्राध्यापिका हैं, जिनकी गहरी रुचि मूल्य-आधारित शिक्षा, छात्र व्यक्तित्व निर्माण और समाजोन्मुखी शोध में है। शिक्षण कार्य के साथ-साथ वे साहित्य, लेखन और अनुसंधान में भी समान रूप से सक्रिय हैं। अब तक उन्होंने कई समीक्षात्मक शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं और Springer तथा American Chemical Society के अंतर्गत आने वाली प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं की समीक्षक के रूप में कार्य कर रही हैं। उनके लेखन में शिक्षा के अदृश्य भावनात्मक एवं नैतिक पहलुओं की गहरी समझ, संवेदनशील दृष्टिकोण और अनुभवजन्य दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वे मानती हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं, बल्कि मूल्य, प्रेरणा और जीवन-दृष्टि देने की प्रक्रिया है। उनकी रचनाएँ—"एक मौन मार्गदर्शक" साहित्य कुंज में, "पहला क़दम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले" हिन्दी कुंज में, “रिश्तों में फूल खिले जब सास-बहू बने माँ-बेटी” परिकल्‍पना समय में प्रकाशित हुई हैं; "चेहरे से स्क्रीन तक: रिश्तों की बदलती तस्वीर" नयी गूंज में स्वीकार की गई है; और अंग्रेज़ी लेख "They Remember You, Not the Syllabus" Teachers Plus में स्वीकार किया गया है।

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