आर्थिकी विकसित देशों के सम्पन्न नागरिक भारत में बसने के बारे में कर रहे हैं गम्भीर विचार December 17, 2025 / December 17, 2025 | Leave a Comment भारत की तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था, भारत में तुलनात्मक रूप से सस्ती दरों पर विभिन्न उत्पादों की पर्याप्त उपलब्धता, अति सस्ती दरों पर सेवा भावना के साथ उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एवं भारत की महान संस्कृति Read more » Affluent citizens of developed countries are seriously considering settling in India भारत में बसने के बारे में गम्भीरता से विचार
आर्थिकी क्यों हो रहा है भारतीय रुपए का अवमूल्यन December 8, 2025 / December 8, 2025 | Leave a Comment माह जनवरी 2025 में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूल्य 85.79 रुपया प्रति अमेरिकी डॉलर था। 3 दिसम्बर 2025 को रुपए का बाजार मूल्य लगभग 5 प्रतिशत घटकर 90.19 रुपया प्रति डॉलर हो गया। Read more » Why is the Indian Rupee devaluing भारतीय रुपए का अवमूल्यन
राजनीति चार श्रम संहिताओं को लागू करने के बाद, भारत में रोजगार के लाखों अवसर निर्मित होंगे December 4, 2025 / December 4, 2025 | Leave a Comment भारत में लागू की गई चार श्रम संहिताओं के बाद समस्त कामगारों को नियुक्ति पत्र प्रदान करना अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र में मिलने वाले समस्त लाभ मिल सकें। साथ ही, रोजगार के सम्बंध में लिखित में सबूत उत्पन्न होने से पारदर्शिता तथा श्रमिकों को रोजगार की गारंटी एवं पक्का रोजगार उपलब्ध होगा Read more » 2020 2020 and Code on Occupational Safety 2020 named in offshore wind energy case 2020 एवं व्यावसायिक सुरक्षा After implementation of four labour codes Code on Social Security Code on Wages 2019 Health and Working Conditions Industrial Relations Code 2020 millions of employment opportunities will be created in India with four labour codes औद्योगिक सम्बंध संहिता 2020 चार श्रम संहिता वेतन संहिता 2019 सामाजिक सुरक्षा संहिता स्वास्थ्य और कार्य शर्त संहिता
आर्थिकी भारत की आर्थिक विकास दर ने पूरे विश्व को चौंकाया December 2, 2025 / December 2, 2025 | Leave a Comment 26 की द्वितीय तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 5.6 प्रतिशत रही थी। विशेष रूप से विनिर्माण एवं सेवा के क्षेत्र में वृद्धि दर अतुलनीय रही है। Read more » India's economic growth rate surprised the entire world. भारत की आर्थिक विकास
आर्थिकी भारत का आर्थिक विकास – सहकारिता से समृद्धि की ओर December 1, 2025 / December 1, 2025 | Leave a Comment भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है और हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों का अनुपालन करते हुए ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिक आपस में भाई-चारे के साथ मिलजुलकर रहते आए हैं। Read more » सहकारिता से समृद्धि
राजनीति भारतीय परम्पराओं का अनुपालन कर हमें संयुक्त परिवारों को बचाना होगा November 25, 2025 / November 25, 2025 | Leave a Comment भारत की आर्थिक प्रगति को रोकने, कम करने अथवा प्रभावित करने के उद्देश्य से दरअसल, चार शक्तियों ने हाथ मिला लिए हैं। ये चार शक्तियां हैं, कट्टरवादी इस्लाम, प्रसारवादी चर्च, सांस्कृतिक मार्क्सवाद एवं वैश्विक बाजार शक्तियां। Read more » We have to save joint families by following Indian traditions. कट्टरवादी इस्लाम प्रसारवादी चर्च वैश्विक बाजार शक्तियां संयुक्त परिवारों को बचाना होगा सांस्कृतिक मार्क्सवाद
राजनीति बिहार विधान सभा चुनाव दे रहे हैं कुछ संकेत November 21, 2025 / November 21, 2025 | Leave a Comment हाल ही के समय में कई राज्यों के चुनावों में स्थानीय नागरिकों के बीच यह प्रवृत्ति घर करती जा रही है कि जो राष्ट्रीय अथवा स्थानीय दल उन्हें मुफ्त की आकर्षक योजनाएं प्रस्तुत कर रिझाने का प्रयास करता है, उस दल को उस राज्य में अधिक सफलता मिलती हुई दिखाई दे रही है। Read more » Bihar Assembly elections are giving some clues बिहार विधान सभा चुनाव
आर्थिकी नागरिक कर्तव्यों के अनुपालन से आर्थिक विकास को दी जा सकती है गति November 21, 2025 / November 24, 2025 | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिकों पर करों का बोझ कम करने का ईमानदार प्रयास किया है। सबसे पहिले आयकर की सीमा को 12 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दिया गया Read more » नागरिक कर्तव्यों के अनुपालन
आर्थिकी ऋण के जाल में फंसे देशों से भारत के राज्यों को मिलती है सीख November 13, 2025 / November 13, 2025 | Leave a Comment वैश्विक स्तर पर कई विकासशील एवं अविकसित देशों पर लगातार बढ़ रहे ऋण के दबाव के चलते इन देशों की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। Read more » अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
आर्थिकी भारतीय अर्थव्यवस्था पर ट्रम्प प्रशासन के 50% टैरिफ का कोई असर नहीं November 11, 2025 / November 11, 2025 | Leave a Comment अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर 50 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया गया है। ट्रम्प ने वैसे तो लगभग सभी देशों से अमेरिका को होने विभिन्न उत्पादों पर अलग अलग दर से टैरिफ लगाया है परंतु भारत द्वारा विशेष रूप से रूस से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद के चलते भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भी लगाया हुआ है। विभिन्न देशों से अमेरिका को होने वाले उत्पादों के निर्यात पर टैरिफ को लगाए हुए अब कुछ समय व्यतीत हो चुका है एवं अब इसका असर विभिन्न देशों की अर्थवस्थाओं एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। यह हर्ष का विषय है कि 27 अगस्त 2025 से लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगभग नगण्य सा ही रहा है। माह सितम्बर 2025 में भारत से अमेरिका को विभिन्न उत्पादों का निर्यात लगभग 12 प्रतिशत कम होकर केवल 550 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर नीचे आ गया है। परंतु, भारत का अन्य देशों को निर्यात लगभग 11 प्रतिशत से बढ़कर 3,638 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में किए गए निर्यात से लगभग 7 प्रतिशत अधिक है। सितम्बर 2025 माह में भारत से 24 देशों को निर्यात की मात्रा बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत द्वारा अमेरिका को कम हो रहे निर्यात की भरपाई अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर कर ली गई है। सितम्बर 2025 माह में न केवल निर्यात में पर्याप्त वृद्धि दर्ज की गई है अपितु भारत में अक्टूबर 2025 माह में प्रारम्भ हुए त्यौहारी मौसम, धनतेरस एवं दीपावली उत्सव के पावन पर्व पर, 6,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं की बिक्री भारत में हुई है, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। हर्ष का विषय यह है कि इस कुल बिक्री में 87 प्रतिशत उत्पाद भारत में ही निर्मित उत्पाद रहे हैं। भारत में स्वदेशी उत्पादों की बिक्री का रिकार्ड कायम हुआ है।भारत में स्वदेशी उत्पादों को अपनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से लगातार प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी भारतीय नागरिकों का स्वदेशी उत्पादों को अपनाने का हाल ही में आह्वान किया था। इस आग्रह का अब भारी संख्या में भारतीय नागरिक सकारात्मक उत्तर दे रहे हैं। भारत में लगातार बढ़ रहे उपभोक्ता खर्च के चलते वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में भी लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर है, जो अब लगभग 2 लाख करोड़ प्रति माह के स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय पूंजी बाजार भी सकारात्मक परिणाम देता हुआ दिखाई दे रहा है। सितम्बर 2025 के अंत में सेन्सेक्स 80,267 के स्तर पर था जो 21 अक्टोबर 2025 को बढ़कर 84,426 के स्तर पर पहुंच गया। इसी प्रकार निफ्टी इंडेक्स भी सितम्बर 2025 के अंत में 24,611 के स्तर से बढ़कर 21 अक्टोबर 2025 को 25,868 के स्तर पर पहुंच गया। दीपावली के पावन पर्व पर रिकार्ड तोड़ व्यापार होने एवं पूंजी बाजार के अपने पिछले 52 सप्ताह के लगभग उच्चत्तम स्तर पर पहुंचने के पीछे मुख्य रूप से तीन कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं। (1) भारतीय उपभोक्ताओं में भारतीय उत्पादों के प्रति विश्वास निर्मित हुआ है और वे अब भारत में निर्मित उत्पादों को चीन अथवा अन्य विकसित देशों में निर्मित उत्पादों की तुलना में गुणवत्ता के मामले में बेहतर मानने लगे हैं। (2) विभिन्न भारतीय कम्पनियों द्वारा हाल ही में सितम्बर 2025 को समाप्त तिमाही के घोषित परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं। (3) साथ ही, अक्टूबर 2025 माह में विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारतीय पूंजी बाजार में वपिसी हुई है। वर्ष 2025 में सितम्बर 2025 माह तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि की निकासी की थी, जबकि अक्टूबर 2025 माह में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अभी तक लगभग 7,300 करोड़ रुपए का नया निवेश किया गया है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के पश्चात भी भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर लगातार संकट के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे हैं। भारत में मुद्रा स्फीति की दर लगातार नीचे आ रही है एवं यह सितम्बर 2025 माह में 1.54 प्रतिशत तक नीचे आ चुकी है जो पिछले 8 वर्षों के दौरान अपने सबसे निचले स्तर पर है। जबकि ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर लगाए गए टैरिफ के चलते अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर अब बढ़ती हुई दिखाई दे रही है और अगस्त 2025 माह में यह 2.9 प्रतिशत के स्तर पर रही है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रण में लाने एवं सरकारी ऋण को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों से अमेरिका को होने निर्यात पर टैरिफ की घोषणा की थी। परंतु, भारी मात्रा में टैरिफ बढ़ाने के बावजूद अमेरिका का वित्तीय घाटा कम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। आज अमेरिका में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है जबकि भारत में यह प्रतिवर्ष लगातार कम हो रहा है और इसके वित्तीय वर्ष 2025-26 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.4 प्रतिशत के स्तर पर नीचे पहुंच जाने की सम्भावना है, यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में 4.8 प्रतिशत का रहा था। इसी प्रकार, अमेरिका में सरकारी ऋण 37 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जो लगातार बढ़ता जा रहा है और यह अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद का 120 प्रतिशत है। अर्थात, अमेरिका में आय की तुलना में अधिक मात्रा में व्यय किए जा रहे है। आज अमेरिका में सरकारी ऋण पर ब्याज अदा करने के लिए भी ऋण लिया जा रहा है। दूसरी ओर, भारत में सरकारी ऋण की मात्रा केवल 3.80 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है और यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 80 प्रतिशत है, जो लगातार कम हो रहा है। अमेरिका में सकल बचत की दर 22 प्रतिशत है जबकि भारत में यह 32 प्रतिशत है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है जबकि अमेरिका में यह वर्ष 2024 में केवल 2.8 प्रतिशत की रही है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के बावजूद वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर विश्व बैंक द्वारा अनुमानित है। जबकि अमेरिका द्वारा विभिन्न देशों के अमेरिका को निर्यात टैरिफ लगाए जाने के बावजूद अमेरिका में वर्ष 2025 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के नीचे गिरकर 1.6 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। स्पष्टत: अमेरिका द्वारा टैरिफ लागू करने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर तो कोई विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। साथ ही, अमेरिका में बेरोजगारी की दर में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है जो अब बढ़कर 4.3 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है, जबकि भारत में यह दर गिरकर 5.1 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गई है। अमेरिका में बैकों से लिए गए ऋण एवं क्रेडिट कार्ड पर ली गई उधारी की किश्तों के भुगतान में चूक की संख्या में वृद्धि दृष्टिगोचर है। इसके चलते हाल ही 3 वित्तीय संस्थानों को दिवालिया घोषित किया जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण की कीमत में अपार वृद्धि (लगभग 4300 अमेरिकी डॉलर प्रति आउन्स के स्तर पर) दर्शाता है कि विभिन्न देशों का अब अमेरिकी डॉलर पर विश्वास कम हो रहा है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा के भंडार में स्वर्ण की मात्रा को लगातार बढ़ा रहे हैं। प्रहलाद सबनानी Read more »
प्रवक्ता न्यूज़ इस वर्ष नोबेल पुरस्कार प्राप्त सृजनात्मक विनाश के सिद्धांत की जड़ें हिंदू सनातन संस्कृति में हैं November 11, 2025 / November 11, 2025 | Leave a Comment हिंदू सनातन संस्कृति से सम्बंधित वेदों, पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि मानव जीवन की प्राप्ति, 84 लाख योनियों के चक्र के पश्चात प्राप्त होती है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि मानव जीवन की प्राप्ति पिछले जन्मों में किए गए कर्मों को भोगने, भविष्य का निर्माण करने एवं 84 लाख योनियों के चक्र से बाहर निकलकर मोक्ष की प्राप्ति करने के लक्ष्य को हासिल करने के अवसर के रूप में मिलती है। अब, यह इस मानव जीवन में किए गए कर्मों पर निर्भर करता है कि हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी अथवा 84 लाख योनियों के चक्र में एक बार पुनः फंसे रहेंगे। यदि हम अपने कर्मों को लगातार धर्मानुसार करते हैं तो मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। इसी आधार पर ही यह कहा भी जाता है कि मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से ही देवता भी मानव जीवन को प्राप्त करने की कामना करते हैं। मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से मिले इस मानव जीवन को संवारने की दृष्टि से विद्वान संत महात्मा उपदेश देते हैं कि काम एवं अर्थ से सम्बंधित की जाने वाली गतिविधियों को धर्म आधारित होना चाहिए ताकि अंत में मोक्ष की प्राप्ति सम्भव हो सके। अतः काम एवं अर्थ को धर्म एवं मोक्ष के बीच स्थान दिया गया है। धर्म का आशय यहां प्रभु परमात्मा की भक्ति अथवा पंथ (रिलीजन) से कतई नहीं हैं बल्कि धर्म से आश्य यह है कि किसी भी प्रकार के कार्य को सम्पन्न करने में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किए जाने वाले कार्य से किसी भी जीव जंतु अथवा मानव की हानि नहीं हो इसके ठीक विपरीत हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों से समाजजनों की भलाई हो। अर्थात, निर्धारित नियमों का अनुपलान करते हुए व्यक्तिगत एवं सामाजिक कार्यों को सम्पन्न करना ही हमारा धर्म है और यदि हम लगातार धर्म के अनुसार कार्य करते रहेंगे तो मोक्ष की प्राप्ति सम्भव हो सकेगी। इस प्रकार, हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है। किसी भी प्राणी का अहित करना तो दूर, बल्कि इसके बारे में कभी सोचा भी नहीं जाता है। समस्त जीवों में प्रभु परमात्मा का वास माना जाता है और सभी जीवों में एक ही आत्मा का निवास मानकर आपस में एकाकार माना जाता है। “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” “सर्वे भवंतु सुखिन:” की भावना का जन्म भी उक्त सिद्धांत के आधार पर ही हुआ है। प्रभु परमात्मा द्वारा निर्धारित की गई उम्र को प्राप्त करने के पश्चात इस जीव को अपना मानुष चोला त्यागकर, इस जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर नयी योनि में जन्म लेना होता है और इसे ही सृजनात्मक विनाश की संज्ञा दी जा सकती है। हाल ही में, वर्ष 2025 के लिए अर्थशास्त्र विषय में नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई है। इस वर्ष यह पुरस्कार श्री जोएल मोक्यर, फिलिप एगियन और श्री पीटर हाविट को “सृजनात्मक विनाश (क्रीएटिव डेस्ट्रक्शन)” एवं “नवाचार संचालित आर्थिक संवृद्धि की व्याख्या” विषय पर शोद्ध करने के लिए संयुक्त रूप से दिया गया है। श्री फिलिप एगियन और पीटर हाविट ने सृजनात्मक विनाश के माध्यम से सतत संवृद्धि के सिद्धांत साझा किए हैं। आपने सृजनात्मक विनाश की व्याख्या करने के लिए एक गणितीय मॉडल तैयार किया है। सृजनात्मक विनाश के अनुसार, जब बाजार में नए और बेहतर उत्पाद आते हैं, तो पुराने उत्पाद बेचने वाली कम्पनियां अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खो देती हैं या बाजार से बाहर हो जाती है। इसे सृजनात्मक कहा जाता है, क्योंकि यह नवाचार पर आधरित है। यद्यपि यह विनाशकारी भी हैं, क्योंकि पुराने उत्पाद अप्रचलित हो जाते हैं और अपना वाणिज्यिक मूल्य खो देते हैं। इस प्रकार बाजार में नई इकाईयों का पदार्पण होता है एवं पुरानी इकाईयों का विनाश हो जाता है। इसे ही सृजनात्मक विनाश की संज्ञा दी गई है। ऐसा आभास हो रहा है कि उक्त सिद्धांत की जड़ें हिंदू सनातन संस्कृति से ही निकलती हैं। जिस किसी जीव ने इस धरा पर जन्म लिया है उसे एक दिन तो अपने जीवन का परित्याग करना ही है। मानव जीवन की प्राप्ति भी कुछ उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए होती है, उन उद्देश्यों की प्राप्ति के पश्चात इस मानव जीवन को छोड़ना ही होता है। उसी प्रकार, सृजनात्मक विनाश के सिद्धांत में भी एक समय सीमा के पश्चात उत्पादों के विनिर्माण हेतु बाजार में जब नयी पीढ़ी की इकाईयों का पदार्पण होता है तो पुरानी पीढ़ी की विनिर्माण इकाईयों को बाजार से बाहर हो जाना होता है। हिंदू सनातन संस्कृति का अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि स्व-सृजक प्रक्रिया एवं रचनात्मक विनाश का सिद्धांत तो भारतीय संस्कृति में पूर्व से ही अंतर्निहित है। भगवान शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो बुरे विचारों का नाश होकर नए विचार जन्म लेते हैं जो प्रकृति का सृजन कर प्रकृति को नई ऊंचाई पर ले जाने में सहायक होते हैं। भगवान शिव भी तांडव नृत्य इस सिद्धांत के आधार पर करते हैं ताकि पृथ्वी पर आवश्यक विनाश हो सके एवं नयी प्रकृति का पुनर्निर्माण हो सके। “शिव तांडव के सृजनात्मक विनाश सम्बंधी सिद्धांत” को ही अर्थशास्त्र में लागू करते हुए कहा गया है कि प्रत्येक उत्पादन इकाई की अपनी एक उम्र तय होती है और इस खंडकाल में सामान्यतः नवाचार होने के चलते पुरानी इकाईयां बंद हो जाती हैं और यहां यह कहा गया है कि इन पुरानी इकाईयों को नष्ट होने देना चाहिए ताकि नवाचार के साथ नई उत्पादन इकाईयों को स्थापित कराया जा सके। यह सिद्धांत शिव तांडव की तरह विभिन्न क्षेत्रों में लगातार चलता रहता है। श्री जोएल मोक्यर ने तकनीकी प्रगति के माध्यम से सतत आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक पूर्व शर्तों की पहचान की है और उन्होंने उन तंत्रों का वर्णन किया है जो वैज्ञानिक सफलताओं और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोगों को एक दूसरे को बढ़ाने तथा एक स्व-सृजक प्रक्रिया बनाने में सक्षम बनाते हैं। उन्होंने सतत संवृद्धि के लिए आवश्यक कारकों की पहचान की हैं। इनमें शामिल हैं – उपयोगी ज्ञान का सतत प्रवाह – जिसमें (1) प्रस्तावात्मक ज्ञान (प्रोपोजीशनल नोलेज), जो दर्शाता है कि कोई व्यक्ति काम क्यों करता है,(2) निर्देशात्मक ज्ञान (प्रेसक्रिप्टिव नोलेज) जो वर्णित करता है कि किसी व्यक्ति द्वारा काम करने के लिए क्या आवश्यक है, शामिल है। इसी प्रकार वाणिज्यिक ज्ञान द्वारा विचारों को वाणिज्यिक उत्पादों में बदला जाता है और इस परिवर्तन के प्रति सामाजिक खुलापन होना चाहिए जो पुराने उत्पादों के स्थान पर नए उत्पादों को स्वीकार करने की इच्छा रखते हों। इसी प्रकार स्व-सृजक प्रक्रिया के अंतर्गत यह कहा जा सकता है कि हिंदू सनातन संस्कृति में मनुष्य का इस धरा पर जन्म 84 लाख योनियों से अपने आप को मुक्त करने के उद्देश्य से होता है अतः उसे ज्ञान रहता है कि उसे किस प्रकार के कर्म इस मानुष जीवन में करना हैं और क्यों करना है। इन निर्धारित कर्मों को करते हुए मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करने हेतु सदैव ही प्रयासरत रहता है। इस ही स्व-सृजक प्रक्रिया कहा जा सकता है। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी पूरे विश्व में भारतीय आर्थिक दर्शन को लागू करने का समय अब आ गया है November 11, 2025 / November 11, 2025 | Leave a Comment आज, वैश्विक स्तर पर कई देशों में विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याएं दिखाई दे रही हैं, जिनका हल ये देश निकाल नहीं पा रहे हैं। आज विश्व के सबसे अधिक विकसित देश अमेरिका में भी मुद्रा स्फीति, बेरोजगारी, ऋण की राशि का असहनीय स्तर पर पहुंच जाना, विदेशी व्यापार में लगातार बढ़ता घाटा, नागरिकों के बीच आय की असमानता का लगातार बढ़ते जाना (अमीर नागरिक और अधिक अमीर हो रहे हैं एवं गरीब नागरिक और अधिक गरीब हो रहे हैं), बजट में वित्तीय घाटे का लगातार बढ़ते जाना एवं इन आर्थिक समस्याओं के चलते देश में सामाजिक ताने बाने का छिन्न भिन्न होना, जैसे, जेलों की पूरी क्षमता का उपयोग और इन जेलों में कैदियों के रखने लायक जगह की कमी होना, तलाक की दर में बेतहाशा वृद्धि होना, मकान की अनुपलब्धि के चलते बुजुर्गों का खुले में पार्कों में रहने को मजबूर होना, आदि ऐसी कई प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं दिखाई दे रही हैं। उक्त समस्याओं के चलते ही अब अमेरिकी अर्थशास्त्रियों द्वारा खुले रूप से कहा जाने लगा है कि साम्यवाद पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं के असफल होने के उपरांत अब पूंजीवाद पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं के भी असफल होने का खतरा मंडराने लगा है, और यह अब कुछ वर्षों की ही बात शेष है। उक्त समस्याओं के हल हेतु अब पूरा विश्व ही भारत की ओर आशाभारी नजरों से देख रहा है और तीसरे आर्थिक मॉडल की तलाश कर रहा है। भारतीय आर्थिक दर्शन का वर्णन चारों वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद), 18 पुराण, उपनिषद, विदुरनीति, कौटिल्य अर्थशास्त्र, थिरुवल्लुवर, मनुस्मृति, शुक्रनीति, डॉक्टर एम जी बोकारे द्वारा लिखित हिंदू अर्थशास्त्र, श्री दत्तोपंत ठेंगढ़ी द्वारा रचित पुस्तक “थर्ड वे” आदि शास्त्रों एवं धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इस प्रकार भारतीय आर्थिक दर्शन की जड़ें सनातन हिंदू संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। भारतीय आर्थिक दर्शन की नीतियों का अनुपालन करते हुए ही प्राचीन काल में भारत में विभिन्न राजाओं द्वारा अपने अपने राज्यों की अर्थव्यवस्था सफलतापूर्वक चलाई जाती रही है। भारतीय आर्थिक दर्शन में “विपुलता के सिद्धांत” की व्याख्या मिलती है जिसके अनुसार, बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति सदैव ही मांग से अधिक रहती थी। इस सिद्धांत के चलते चूंकि उत्पादों की बाजार में पर्याप्त आपूर्ति रहती थी अतः वस्तुओं के बाजार भाव में वृद्धि नहीं दिखाई देती थी, अतः भारत में प्राचीनकाल में मुद्रा स्फीति की समस्या सर्वथा, थी ही नहीं। जबकि, आज विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा स्फीति की समस्या सबसे बड़ी समस्या है जिसका हल निकालने में ये देश सक्षम नहीं दिखाई दे रहे हैं। विपुलता के सिद्धांत के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में ही विभिन्न उत्पादों का उत्पादन किया जाकर स्थानीय हाट बाजार में इन उत्पादों का विक्रय किया जाता था, जिससे स्थानीय स्तर पर ही स्वावलम्बन का भाव जागृत होता था। कुछ इलाकों में 40/50 गांवों के बीच साप्ताहिक हाट की व्यवस्था विकसित की गई थी। इन साप्ताहिक हाटों में लगभग सभी प्रकार के उत्पादों का विक्रय किया जाता था। चूंकि स्थानीय स्तर पर निर्मित विभिन्न उत्पादों की पर्याप्त मात्रा में बाजार में उपलब्धि रहती थी, अतः इन उत्पादों की कीमतें भी अपने आप ही नयंत्रित रहती थीं और इस प्रकार प्राचीन भारत में मुद्रा स्फीति के स्थान पर घटते हुए मूल्य के अर्थशास्त्र का वर्णन मिलता है। पूरे विश्व में, इस संदर्भ में, वर्तमान स्थिति भारतीय आर्थिक दर्शन के ठीक विपरीत दिखाई देती है जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं कही जा सकती है। दरअसल, मुद्रा स्फीति का सबसे बुरा असर गरीब वर्ग पर पड़ता है और आज वैश्विक स्तर पर उत्पादन इकाईयां विभिन्न वस्तुओं की बाजार में आपूर्ति को विपरीत रूप नियंत्रित करती हैं ताकि इन उत्पादों की बाजार में कीमत बढ़ सके एवं इन उत्पादन इकाईयों के लाभ में वृद्धि दर्ज हो सके। पूंजीवाद पर आधारित अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाईयों का मुख्य उद्देश्य ही अधिकतम लाभ कमाना होता है और इस मूल्य वृद्धि से समाज के गरीब एवं मध्यम वर्ग पर कितना बोझ बढ़ रहा है, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं रहता है। प्राचीन भारत में मुद्रा स्फीति की समस्या इसलिए भी नहीं रहती थी क्योंकि प्राचीनकाल में भारतीय आर्थिक दर्शन के अनुसार “प्रतिस्पर्धा के सिद्धांत” का अनुपालन सुनिश्चित होता था। ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले हाट बाजार में उत्पादों के विक्रेताओं के बीच में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रहती थी। उत्पाद बेचने वाले स्थानीय विक्रेताओं की पर्याप्त संख्या रहती थी एवं साथ ही इनके बीच अपने अपने उत्पाद बेचने की प्रतिस्पर्धा रहती थी ताकि अपने अपने उत्पाद शीघ्र ही बेचकर वे अपने अपने ग्रामों में सूरज डूबने के पूर्व वापिस पहुंच सकें। इस प्रकार के कारणों के चलते कई बार तो विक्रेता अपने उत्पादों को सस्ते भाव में बेचना चाहता था अतः बाजार में उत्पादों के मूल्यों में कमी भी दिखाई देती थी। आज, वैश्विक स्तर पर निगमित क्षेत्र में कार्यरत कम्पनियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा तो एक तरह से दिखाई ही नहीं देती है बल्कि वे आपस में मिलकर उत्पादक संघ (कार्टेल) का निर्माण कर लेती हैं और इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों के बाजार मूल्यों को अपने पक्ष में नियंत्रित किया जाता हैं ताकि वे इन उत्पादों के व्यापार से अपने लिए अधिकतम लाभ का अर्जन कर सकें। इस पूंजीवादी नीति से इन कम्पनियों की लाभप्रदता में तो वृद्धि होती है परंतु आम नागरिकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। अतः उक्त पूंजीवादी आर्थिक नीति के चलते आम नागरिकों पर निर्मित होने वाले आर्थिक दबाव को कम करने की दृष्टि से विक्रेताओं द्वारा लाभ अर्जन के संदर्भ में भी भारतीय आर्थिक दर्शन के नियमों का अनुपालन किया जा सकता है। भारतीय आर्थिक दर्शन के अनुसार, “मूल्य सिद्धांत” के अंतर्गत, विक्रेता द्वारा स्वयं के द्वारा निर्मित वस्तु की उत्पादन लागत पर 5 प्रतिशत की दर से लाभ जोड़कर उस वस्तु का विक्रय मूल्य तय किया जाना चाहिए एवं यदि उस वस्तु का निर्यात किसी अन्य देश को किया जा रहा है तो उस वस्तु के उत्पादन लागत पर 10 प्रतिशत की दर से लाभ जोड़कर उस वस्तु का विक्रय मूल्य तय किया जाना चाहिए। इस नीति के अनुपालन से प्राचीन भारत में विभिन्न उत्पादों के बाजार मूल्य लम्बे समय तक स्थिर रहते थे एवं इनके मूल्यों में वृद्धि लगभग नहीं के बराबर दिखाई देती थी। आज पूंजीवादी नीतियों के अंतर्गत विभिन्न उत्पादों के विक्रय मूल्यों पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। विशेष रूप से दवाईयों के मूल्य के सम्बंध में नीति का उल्लेख यहां किया जा सकता है। केन्सर एवं दिल की बीमारी से सम्बंधित दवाईयों के बाजार मूल्य लाखों रुपयों में तय किए जाते हैं क्योंकि इन दवाईयों को बेचने का एकाधिकार “पैटेंट कानून” के अंतर्गत केवल इन दवाईयों का उत्पादन करने वाली कम्पनियों के पास रहता है। केवल लाभ कमाना ही इन कम्पनियों का मुख्य उद्देश्य है, जबकि सनातन हिंदू संस्कृति में किसी अस्वस्थ नागरिक को दवाई उपलब्ध कराने का कार्य सेवा कार्य की श्रेणी में रखा गया है। उक्त वर्णित दवाईयों की बाजार में उपलब्धता बढ़ाकर एवं इन दवाईयों के विक्रय मूल्य को नयंत्रित रखकर कई जीवन बचाए जा सकते हैं। परंतु, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत तो लाभ कमाना ही मुख्य उद्देश्य है। आज विश्व के कई देशों में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण करती हुए दिखाई दे रही है एवं इन देशों के पास बेरोजगारी की समस्या को हल करने का कोई उपाय भी सूझ नहीं रहा है। भारत के प्राचीन ग्रंथो में बेरोजगारी की समस्या के संदर्भ के किसी प्रकार का जिक्र भी नहीं मिलता है। “स्वयं के नियोजन के सिद्धांत” का अनुपालन करते हुए उस समय पर विभिन्न परिवारों द्वारा स्थापित अपने उद्यमों को ही आगे आने वाली पीढ़ी आगे बढ़ाती जाती थी, इससे युवाओं में “नौकरी” करने का प्रचलन भी नहीं था। अपने पारम्परिक व्यवसाय में ही युवा पीढ़ी रत हो जाती थी अतः बेरोजगारी की समस्या भी बिलकुल नहीं पाई जाती थी। आज पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत कोरपोरेट जगत की स्थापना के चलते नागरिकों में “नौकरी” का भाव जागृत किया गया है। आज प्रत्येक युवा नौकरी की कतार में लगा हुआ दिखाई देता है, लगभग 30 वर्ष की आयु होते होते जब उसे उसकी चाहत के अनुसार नौकरी नहीं मिल पाती है तो वह अपने जीवन के लिए समझौता कर लेता है और किसी भी संस्थान में किसी भी प्रकार की नौकरी करने को मजबूर हो जाता है। कई इंजीनियर एवं पोस्ट ग्रैजूएट युवा, मजबूरी में आज विभिन्न उत्पादों की डिलीवरी करने एवं टैक्सी चलाने जैसे कार्यों को भी करते हुए दिखाई देते हैं। आज यदि अपने पुश्तैनी व्यवसाय को यह युवा आगे बढ़ा रहे होते तो सम्भवतः उनकी आमदनी भी अधिक होती और उक्त प्रकार के कार्य करने हेतु वे मजबूर भी नहीं होते। भारत के प्राचीन ग्रंथों में “शून्य ब्याज दर के सिद्धांत” का भी वर्णन मिलता है। राज्यों के पास धन के भंडार भरे रहते थे एवं समाज में यदि किसी नागरिक को अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए धन की आवश्यकता रहती थी तो वह राजा से धन उधार लेकर अपना व्यवसाय स्थापित कर सकता था एवं राजा द्वारा नागरिकों को दी गई उधार की राशि पर किसी प्रकार का ब्याज नहीं लिया जाता था। क्योंकि, यह उस राज्य के राजा का कर्तव्य माना जाता था कि वह अपने राज्य के नागरिकों को उचित मात्रा में व्यवसाय करने के लिए धन उपलब्ध कराए। इस प्रकार, भारत के प्राचीन खंडकाल में ब्याज की दर भी शून्य रहा करती थी। इससे, स्थानीय नागरिक भी अपना व्यवसाय स्थापित करने की ओर प्रेरित होते थे एवं नौकरी करने का चलन नहीं के बराबर रहता था। प्रहलाद सबनानी Read more »